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क से कागज, क से कैलेंडर और क से कबाड़, ऐसा है सरकारी संस्था का हाल

दिल्ली सचिवालय में कागज से तैयार कैलेंडर शुक्रवार को कबाड़ियों को थमा दिया गया. इसकी तादाद हजारों में थी. प्रति कैलेंडर छपाने में तीन से चार सौ रुपये का खर्च आता है.

दिल्ली सचिवालय में कागज से तैयार कैलेंडर को कबाड़ियों को थमा दिया गया
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Published : May 31, 2019, 9:03 PM IST

नई दिल्ली: क से कागज, क से कैलेंडर और क से कबाड़. डिजिटल जमाने के इस युग में कागज का कम से कम इस्तेमाल करने को लेकर बताया जाता है. पर्यावरण संरक्षण के लिए अपेक्षा की जाती है कि लोग कागज का बेजा इस्तेमाल ना करें. पर्यावरण को बचाने में पेड़ का कितना योगदान है, यह हम सब जानते हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि अधिकारी इनसे सबक नहीं ले रहे हैं.

दिल्ली सचिवालय में कागज से तैयार कैलेंडर शुक्रवार को कबाड़ियों को थमा दिया गया. इसकी तादाद हजारों में थी. प्रति कैलेंडर छपाने में तीन से चार सौ रुपये का खर्च आता है. साथ ही साथ इनके कागजों लिए कई पेड़ों की बलि चढ़ जाती है. ये कैलेंडर पर्यावरण को बचाने के लिए दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल कमिटी से छपवाए थे. मतलब जिस मकसद से इस कैलेंडर को छापा गया था वो तो पूरा हुआ नहीं बल्कि इसे छपवाने से उल्टा पर्यावरण का नुकसान ही होता दिख रहा है.

दिल्ली सचिवालय में कागज से तैयार कैलेंडर को कबाड़ियों को थमा दिया गया

कबाड़ी को दे दिया गया कैलेंडर
दिल्ली सरकार के अधीन आने वाले दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल कमिटी ने वर्ष 2018-19 के लिए हजारों की तादात में कैलेंडर बनवाए थे. इस कैलेंडर के लिए में जो तस्वीरें तारीखों के साथ थी, वह स्कूली बच्चों ने पर्यावरण की जागरूकता से संबंधित बनाए थे. सैकड़ों की तादात में ऐसी तस्वीरों में से चुनिंदा 14 तस्वीरों को कैलेंडर में जगह मिली. जिसमें यह तस्वीर भी थी कि पृथ्वी को प्रदूषण से कैसे बचाएं? हरा भरा अपने आसपास कैसे रखें? पर्यावरण व प्रदूषण से लड़ने के जो भी उपाय हो सकते हैं, तकरीबन उन मुख्य उपायों की तस्वीरों से युक्त कैलेंडर आज कबाड़ी को थमा दिया गया.

कैलेंडर को रद्दी के भाव में हटा दिया
सरकारी दफ्तर में और आम लोगों के लिए बनवाए गए इस कैलेंडर का वितरण सही से नहीं हो पाया और जब यह पुराना हो गया तो इसे कबाड़ियों को थमा कर उसे रद्दी के भाव कर हटा दिया.

करोड़ों रुपये खर्च करता है पर्यावरण विभाग
बता दें कि दिल्ली का कुल क्षेत्रफल 1483 किलोमीटर है और इस क्षेत्रफल में मात्र 22 फीसद ही हिस्सा ही हरा-भरा है. प्रति वर्ष मानसून के दौरान हरियाली का दायरा बढ़ाने के लिए वन एवं पर्यावरण विभाग करोड़ों रुपये खर्च कर लाखों की तादात में पौधे लगाता है. इस वर्ष भी पर्यावरण मंत्री इमरान हुसैन ने अलग-अलग विभागों को कुल 23 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य दिया है.

नई दिल्ली: क से कागज, क से कैलेंडर और क से कबाड़. डिजिटल जमाने के इस युग में कागज का कम से कम इस्तेमाल करने को लेकर बताया जाता है. पर्यावरण संरक्षण के लिए अपेक्षा की जाती है कि लोग कागज का बेजा इस्तेमाल ना करें. पर्यावरण को बचाने में पेड़ का कितना योगदान है, यह हम सब जानते हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि अधिकारी इनसे सबक नहीं ले रहे हैं.

दिल्ली सचिवालय में कागज से तैयार कैलेंडर शुक्रवार को कबाड़ियों को थमा दिया गया. इसकी तादाद हजारों में थी. प्रति कैलेंडर छपाने में तीन से चार सौ रुपये का खर्च आता है. साथ ही साथ इनके कागजों लिए कई पेड़ों की बलि चढ़ जाती है. ये कैलेंडर पर्यावरण को बचाने के लिए दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल कमिटी से छपवाए थे. मतलब जिस मकसद से इस कैलेंडर को छापा गया था वो तो पूरा हुआ नहीं बल्कि इसे छपवाने से उल्टा पर्यावरण का नुकसान ही होता दिख रहा है.

दिल्ली सचिवालय में कागज से तैयार कैलेंडर को कबाड़ियों को थमा दिया गया

कबाड़ी को दे दिया गया कैलेंडर
दिल्ली सरकार के अधीन आने वाले दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल कमिटी ने वर्ष 2018-19 के लिए हजारों की तादात में कैलेंडर बनवाए थे. इस कैलेंडर के लिए में जो तस्वीरें तारीखों के साथ थी, वह स्कूली बच्चों ने पर्यावरण की जागरूकता से संबंधित बनाए थे. सैकड़ों की तादात में ऐसी तस्वीरों में से चुनिंदा 14 तस्वीरों को कैलेंडर में जगह मिली. जिसमें यह तस्वीर भी थी कि पृथ्वी को प्रदूषण से कैसे बचाएं? हरा भरा अपने आसपास कैसे रखें? पर्यावरण व प्रदूषण से लड़ने के जो भी उपाय हो सकते हैं, तकरीबन उन मुख्य उपायों की तस्वीरों से युक्त कैलेंडर आज कबाड़ी को थमा दिया गया.

कैलेंडर को रद्दी के भाव में हटा दिया
सरकारी दफ्तर में और आम लोगों के लिए बनवाए गए इस कैलेंडर का वितरण सही से नहीं हो पाया और जब यह पुराना हो गया तो इसे कबाड़ियों को थमा कर उसे रद्दी के भाव कर हटा दिया.

करोड़ों रुपये खर्च करता है पर्यावरण विभाग
बता दें कि दिल्ली का कुल क्षेत्रफल 1483 किलोमीटर है और इस क्षेत्रफल में मात्र 22 फीसद ही हिस्सा ही हरा-भरा है. प्रति वर्ष मानसून के दौरान हरियाली का दायरा बढ़ाने के लिए वन एवं पर्यावरण विभाग करोड़ों रुपये खर्च कर लाखों की तादात में पौधे लगाता है. इस वर्ष भी पर्यावरण मंत्री इमरान हुसैन ने अलग-अलग विभागों को कुल 23 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य दिया है.

Intro:एक्सक्लुसिव स्टोरी

नई दिल्ली. क से कागज, क से कैलेंडर और क से कबाड़. डिजिटल जमाने के इस युग में कागज का कम से कम इस्तेमाल करने को लेकर बच्चों को बताया जाता है. बड़ों से भी अपेक्षा की जाती है कि वह कागज का बेजा इस्तेमाल ना करें. क्योंकि एक छोटी सी नोटबुक तैयार करने में एक पेड़ की बलि चढ जाती है. पर्यावरण को बचाने में पेड़ का कितना योगदान है, यह हम सब जानते हैं. काश सरकार भी इससे भली-भांति अवगत होती.




Body:दिल्ली सचिवालय में कागज से तैयार कैलेंडर शुक्रवार को कबाड़ियों को थमा दिया गया. इसकी तादाद हजारों में थी. प्रति कैलेंडर छपाने में तीन से चार सौ रुपये का खर्च आता है. वह तो बेकार हुआ ही, लेकिन जिस पेड़ से कागज बना और उस कागज से कैलेंडर बना , वह भी कबाड़ में चला गया. वाकई एक जिम्मेदार एजेंसी जब ऐसा करती है तो दुख होता है.

दिल्ली सरकार के अधीन आने वाले दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल कमिटी ने वर्ष 2018-19 के लिए हजारों की तादात में कैलेंडर बनवाए थे. इस कैलेंडर के लिए में जो तस्वीरें तारीखों के साथ थी, वह स्कूली बच्चों ने पर्यावरण की जागरूकता से संबंधित बनाए थे. सैकड़ों की तादात में ऐसी तस्वीरों में से चुनिंदा 14 तस्वीरों को कैलेंडर में जगह मिली. जिसमें यह तस्वीर भी थी कि पृथ्वी को प्रदूषण से कैसे बचाएं? हरा भरा अपने आसपास कैसे रखें? पर्यावरण व प्रदूषण से लड़ने के जो भी उपाय हो सकते हैं, तकरीबन उन मुख्य उपायों की तस्वीरों से युक्त कैलेंडर आज कबाड़ी को थमा दिया गया.

सरकारी दफ्तर में तथा आम लोगों के लिए बनवाए इस कैलेंडर का वितरण सही से नहीं हो पाया और जब यह पुराना हो गया तो इसे कबाड़ियों को थमा कर उसे रद्दी के भाव कर हटा दिया.


Conclusion:बता दें कि दिल्ली का कुल क्षेत्रफल 1483 किलोमीटर है और इस क्षेत्रफल में मात्र 22 फीसद ही हिस्सा ही हरा-भरा है. प्रति वर्ष मानसून के दौरान हरियाली का दायरा बढ़ाने के लिए वन एवं पर्यावरण विभाग करोड़ों रुपए खर्च कर लाखों की तादात में पौधे लगाता है. इस वर्ष भी पर्यावरण मंत्री इमरान हुसैन ने अलग-अलग विभागों को कुल 23 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य दिया है. मगर जिस तरह पेड़ भी कट रहे हैं और उस उससे इस्तेमाल के लिए बने कागज का जिस तरह बेजा इस्तेमाल सरकारी महकमा करता है तो आम लोग कैसे अंकुश लगाएंगे यह बड़ा सवाल बन जाता है.

समाप्त, आशुतोष झा
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