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Dwijapriya Sankashti Chaturthi: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी को मनाने का ये है शुभ मुहूर्त, भूलकर भी ना करें ये 6 काम

फाल्गुन माह की संकष्टी चतुर्थी उदया तिथि के अनुसार 9 फरवरी को मनाई जाएगी. फाल्गुन द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का शुभारंभ 9 फरवरी को सुबह 6 बजकर 23 मिनट से होगा, जबकि समापन 10 फरवरी सुबह 7 बजकर 58 मिनट पर होगा.

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Published : Feb 9, 2023, 12:02 AM IST

आचार्य शिव कुमार शर्मा, ज्योतिषाचार्य

नई दिल्ली/गाजियाबाद: बीते सोमवार से फाल्गुन माह का आगाज हो चुका है. फाल्गुन माह की संकष्टी चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी भी कहते हैं. फाल्गुन मास की संकष्टी चतुर्थी 9 फरवरी (गुरुवार) को है. बता दें कि द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन विधि-विधान से माता गौरी और भगवान गणेश की पूजा करने का विशेष महत्व है. इस दिन माता गौरी और भगवान गणेश की पूजा करने से सभी दुख दूर होते हैं और जीवन में सुख, समृद्धि और स्थिरता प्राप्त होती है. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी को लेकर मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से जीवन की सभी समस्याओं का अंत होता है. साथ ही अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है.

ऐसे करें पूजा: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन प्रातः काल स्नान के बाद लाल रंग के कपड़े पहने और व्रत का संकल्प लें. मंदिर में दीपक जलाएं और पूरब या उत्तर दिशा की ओर करके पूजन करें. इसके बाद लकड़ी की चौकी पर आसन बिछाकर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें और भगवान गणेश के सामने धूप-दीप जलाकर दूर्वा अर्पित करें. गौरी गणेश की विधि-विधान से पूजा करें और इस दौरान 'ॐ गणेशाय नमः' या 'ॐ गं गणपतये नमः' मंत्र का जाप करें. पूजन के बाद भगवान गणेश को मिठाई या लड्डू का भोग लगाए. अंत में भगवान गणेश की आरती करें. संकष्टी चतुर्थी का व्रत शाम के समय चंद्रदर्शन के बाद ही खोला जाता है. चांद निकलने से पहले गणपति की पूजा करें और चंद्रमा को अर्घ्य दें. व्रत कथा कहें या सुनें. पूजन समाप्ति और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही अन्न का दान करें.

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त: उदया तिथि के अनुसार द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 9 फरवरी को मनाई जाएगी. फाल्गुन द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का शुभारंभ 9 फरवरी को सुबह 6 बजकर 23 मिनट से होगा, जबकि समापन 10 फरवरी सुबह 07.58 मिनट पर होगा.

इन बातों का रखें विशेष ध्यान: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत पर भगवान गणपति की पूजा करते समय भगवान गणेश की मूर्ति को उत्तर या पूर्व दिशा में ही रखें. भगवान गणेश की खंडित प्रतिमा या फिर फटी गली हुई फोटो की पूजा ना करें. वहीं, मंदिर में भगवान गणेश की दो मूर्तियों का एक साथ पूजन ना करें और ना ही मंदिर में एक साथ दो मूर्तियां रखें. भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए पूजा अर्चना के दौरान लाल रंग के ही कपड़े पहने. इसके अलावा द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर तामसिक भोजन का सेवन ना करें. किसी भी तरह के नशे जैसे शराब, गुटखा, सिगरेट आदि से भी पूर्णतया दूर रहें. वहीं, पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मकर संक्रांति, अमावस्या, चतुर्दशी, पूर्णिमा और एकादशी तिथि के दिन संबंध नहीं बनाने चाहिए. इस दिन ऐसा करना पाप माना गया है. हिंदू धर्म प्रत्येक व्यक्ति का सम्मान और उससे प्रेम से व्यवहार करना सिखाता है. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर विशेष तौर पर ख्याल रखें कि किसी से गलत वाणी का प्रयोग ना करें. ना ही किसी पर गुस्सा करें. अपशब्द का प्रयोग करने से भी पूर्णता बचें.

ये भी पढ़ें: Nagpur Pitch : नागपुर टेस्ट से पहले पिच पर घमासान, ऑस्ट्रेलियाई मीडिया ने लगाए आरोप

आचार्य शिव कुमार शर्मा, ज्योतिषाचार्य

नई दिल्ली/गाजियाबाद: बीते सोमवार से फाल्गुन माह का आगाज हो चुका है. फाल्गुन माह की संकष्टी चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी भी कहते हैं. फाल्गुन मास की संकष्टी चतुर्थी 9 फरवरी (गुरुवार) को है. बता दें कि द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन विधि-विधान से माता गौरी और भगवान गणेश की पूजा करने का विशेष महत्व है. इस दिन माता गौरी और भगवान गणेश की पूजा करने से सभी दुख दूर होते हैं और जीवन में सुख, समृद्धि और स्थिरता प्राप्त होती है. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी को लेकर मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से जीवन की सभी समस्याओं का अंत होता है. साथ ही अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है.

ऐसे करें पूजा: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन प्रातः काल स्नान के बाद लाल रंग के कपड़े पहने और व्रत का संकल्प लें. मंदिर में दीपक जलाएं और पूरब या उत्तर दिशा की ओर करके पूजन करें. इसके बाद लकड़ी की चौकी पर आसन बिछाकर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें और भगवान गणेश के सामने धूप-दीप जलाकर दूर्वा अर्पित करें. गौरी गणेश की विधि-विधान से पूजा करें और इस दौरान 'ॐ गणेशाय नमः' या 'ॐ गं गणपतये नमः' मंत्र का जाप करें. पूजन के बाद भगवान गणेश को मिठाई या लड्डू का भोग लगाए. अंत में भगवान गणेश की आरती करें. संकष्टी चतुर्थी का व्रत शाम के समय चंद्रदर्शन के बाद ही खोला जाता है. चांद निकलने से पहले गणपति की पूजा करें और चंद्रमा को अर्घ्य दें. व्रत कथा कहें या सुनें. पूजन समाप्ति और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही अन्न का दान करें.

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त: उदया तिथि के अनुसार द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 9 फरवरी को मनाई जाएगी. फाल्गुन द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का शुभारंभ 9 फरवरी को सुबह 6 बजकर 23 मिनट से होगा, जबकि समापन 10 फरवरी सुबह 07.58 मिनट पर होगा.

इन बातों का रखें विशेष ध्यान: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत पर भगवान गणपति की पूजा करते समय भगवान गणेश की मूर्ति को उत्तर या पूर्व दिशा में ही रखें. भगवान गणेश की खंडित प्रतिमा या फिर फटी गली हुई फोटो की पूजा ना करें. वहीं, मंदिर में भगवान गणेश की दो मूर्तियों का एक साथ पूजन ना करें और ना ही मंदिर में एक साथ दो मूर्तियां रखें. भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए पूजा अर्चना के दौरान लाल रंग के ही कपड़े पहने. इसके अलावा द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर तामसिक भोजन का सेवन ना करें. किसी भी तरह के नशे जैसे शराब, गुटखा, सिगरेट आदि से भी पूर्णतया दूर रहें. वहीं, पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मकर संक्रांति, अमावस्या, चतुर्दशी, पूर्णिमा और एकादशी तिथि के दिन संबंध नहीं बनाने चाहिए. इस दिन ऐसा करना पाप माना गया है. हिंदू धर्म प्रत्येक व्यक्ति का सम्मान और उससे प्रेम से व्यवहार करना सिखाता है. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर विशेष तौर पर ख्याल रखें कि किसी से गलत वाणी का प्रयोग ना करें. ना ही किसी पर गुस्सा करें. अपशब्द का प्रयोग करने से भी पूर्णता बचें.

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