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Delhi University ने की जनजातीय अध्ययन केंद्र के स्थापना की घोषणा, मिलेंगे ये लाभ - Center for Tribal Studies

दिल्ली विश्वविद्यालय ने जनजातीय अध्ययन केंद्र के स्थापना की घोषणा की है. इसके माध्यम से भारतीय जनजातियों की विभिन्न लोक परंपराओं और उनके ज्ञान का दस्तावेजीकरण करने के साथ इसके प्रसार का भी काम किया जाएगा.

Center for Tribal Studies
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Published : Aug 9, 2023, 5:37 PM IST

नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस पर 9 अगस्त को दिल्ली विश्वविद्यालय ने जनजातीय अध्ययन केंद्र (सीटीएस) की स्थापना की घोषणा की है. यह केंद्र भारत-केंद्रित परिप्रेक्ष्य के माध्यम से जनजातीय प्रथाओं, संस्कृति, भाषा, धर्म, अर्थव्यवस्था, समानताओं और प्रकृति के साथ संबंधों की विविधता को समझने के लिए प्रतिबद्ध होगा. इस केंद्र की गवर्निंग बॉडी का गठन करते हुए इसका अध्यक्ष, दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस के निदेशक प्रो. प्रकाश सिंह को नियुक्त किया गया है.

उनके साथ प्रतिष्ठित शिक्षाविदों, कैंपस ऑफ ओपन लर्निंग की निदेशक प्रोफेसर पायल मागो, विधि संकाय से प्रोफेसर के. रत्नाबली और भूगोल विभाग से प्रोफेसर वी.एस. नेगी को इसका सदस्य नियुक्त किया गया है. वहीं, बाहरी विशेषज्ञों के रूप में आंध्र प्रदेश केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर टीवी कट्टीमनी और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ ट्राइबल स्टडीज के निदेशक प्रो. चंद्रमोहन परशीरा को नियुक्त किया गया है, जिनसे केंद्र को ज्ञानवर्धक जानकारी मिलेगी.

समसामयिक मुद्दों को आगे बढ़ाने में बड़ा कदम: इस मौके पर गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष प्रो. प्रकाश सिंह ने कहा कि अध्ययन केंद्र की स्थापना जनजातीय समुदायों के समग्र विकास और कल्याण के संदर्भ में वर्तमान के साथ-साथ भविष्य की प्रगति के लिए प्रासंगिक समसामयिक मुद्दों को आगे बढ़ाने और समाधान करने में एक परिवर्तनकारी कदम साबित होगा. अध्ययन केंद्र के निदेशक के रूप में विश्वविद्यालय ने एंथ्रोपोलॉजी विभाग के एचओडी प्रो. सौमेंद्र मोहन पटनायक को और संयुक्त निदेशक के रूप में एंथ्रोपोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अविटोली जी. को नियुक्त किया गया है.

अखिल भारतीय होगा दृष्टिकोण: अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष ने बताया कि इस केंद्र के कामकाज को गति प्रदान करने के लिए एक अंत:विषय अनुसंधान समिति बनाई गई है. इसके सदस्य विधि संकाय की डॉ. सीमा सिंह और हंसराज कॉलेज के इतिहास विभाग से डॉ. संतोष हसनू हैं. जनजातीय मामलों में इनका ज्ञान और विशेषज्ञता, इस केंद्र को आगे बढ़ाने में सहायक होगी. इस केंद्र का दृष्टिकोण पूर्वोत्तर भारत, मध्य भारत, दक्षिण भारत और द्वीपीय क्षेत्रों आदि की क्षेत्रीय विविधताओं पर उचित विचार के साथ अखिल भारतीय होगा. उन्होंने बताया कि वर्तमान में जनजातीय अध्ययन केंद्र, दिल्ली विश्वविद्यालय के एंथ्रोपोलॉजी विभाग से कार्य करेगा.

स्वदेशी ज्ञान का अध्ययन: प्रोफेसर प्रकाश सिंह ने बताया कि जनजातीय अध्ययन केंद्र, कई जनजातीय नेताओं की भूमिका और योगदान को उजागर करने का प्रयास करेगा. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई गुमनाम जनजातीय नेताओं के प्रयासों को भी प्रकाश में लाएगा. यह केंद्र अपने अनुसंधानात्मक प्रयासों द्वारा भारतीय जनजातियों की विभिन्न लोक परंपराओं और उनके स्वदेशी ज्ञान का अध्ययन और दस्तावेजीकरण करेगा और जनता के लिए सामान्य रूप से और शिक्षाविदों तथा विद्यार्थियों के बीच इस जानकारी का प्रसार करने की दिशा में भी काम करेगा.

यह भी पढ़ें-Independence day 2023: आखिर प्रधानमंत्री लाल किले से ही क्यों फहराते हैं तिरंगा, जानें क्या है इतिहास

दिया जाएगा व्यावहारिक शैक्षणिक प्रोत्साहन: उन्होंने बताया कि विमुक्त, घुमंतू जनजातियों और विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजीस) की जरूरतों के बीच अंतर को पाटने में भी यह केंद्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. साथ ही इस केंद्र से संरक्षण, विकास, वन और विशेष स्वास्थ्य आवश्यकताओं के विशेष संदर्भ में सार्वजनिक नीति को व्यावहारिक शैक्षणिक प्रोत्साहन भी दिया जाएगा. यह केंद्र उन जनजातियों को सशक्त बनाने के दिल्ली विश्वविद्यालय के दृष्टिकोण का एक प्रमाण है, जो भारत की कुल आबादी का आठ प्रतिशत से अधिक हैं.

यह भी पढ़ें-DU UG Admission 2023: डीयू में अबतक 62 हजार दाखिला, जानिए एडमिशन के लिए कौन सा कॉलेज रहा टॉप नंबर पर

नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस पर 9 अगस्त को दिल्ली विश्वविद्यालय ने जनजातीय अध्ययन केंद्र (सीटीएस) की स्थापना की घोषणा की है. यह केंद्र भारत-केंद्रित परिप्रेक्ष्य के माध्यम से जनजातीय प्रथाओं, संस्कृति, भाषा, धर्म, अर्थव्यवस्था, समानताओं और प्रकृति के साथ संबंधों की विविधता को समझने के लिए प्रतिबद्ध होगा. इस केंद्र की गवर्निंग बॉडी का गठन करते हुए इसका अध्यक्ष, दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस के निदेशक प्रो. प्रकाश सिंह को नियुक्त किया गया है.

उनके साथ प्रतिष्ठित शिक्षाविदों, कैंपस ऑफ ओपन लर्निंग की निदेशक प्रोफेसर पायल मागो, विधि संकाय से प्रोफेसर के. रत्नाबली और भूगोल विभाग से प्रोफेसर वी.एस. नेगी को इसका सदस्य नियुक्त किया गया है. वहीं, बाहरी विशेषज्ञों के रूप में आंध्र प्रदेश केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर टीवी कट्टीमनी और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ ट्राइबल स्टडीज के निदेशक प्रो. चंद्रमोहन परशीरा को नियुक्त किया गया है, जिनसे केंद्र को ज्ञानवर्धक जानकारी मिलेगी.

समसामयिक मुद्दों को आगे बढ़ाने में बड़ा कदम: इस मौके पर गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष प्रो. प्रकाश सिंह ने कहा कि अध्ययन केंद्र की स्थापना जनजातीय समुदायों के समग्र विकास और कल्याण के संदर्भ में वर्तमान के साथ-साथ भविष्य की प्रगति के लिए प्रासंगिक समसामयिक मुद्दों को आगे बढ़ाने और समाधान करने में एक परिवर्तनकारी कदम साबित होगा. अध्ययन केंद्र के निदेशक के रूप में विश्वविद्यालय ने एंथ्रोपोलॉजी विभाग के एचओडी प्रो. सौमेंद्र मोहन पटनायक को और संयुक्त निदेशक के रूप में एंथ्रोपोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अविटोली जी. को नियुक्त किया गया है.

अखिल भारतीय होगा दृष्टिकोण: अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष ने बताया कि इस केंद्र के कामकाज को गति प्रदान करने के लिए एक अंत:विषय अनुसंधान समिति बनाई गई है. इसके सदस्य विधि संकाय की डॉ. सीमा सिंह और हंसराज कॉलेज के इतिहास विभाग से डॉ. संतोष हसनू हैं. जनजातीय मामलों में इनका ज्ञान और विशेषज्ञता, इस केंद्र को आगे बढ़ाने में सहायक होगी. इस केंद्र का दृष्टिकोण पूर्वोत्तर भारत, मध्य भारत, दक्षिण भारत और द्वीपीय क्षेत्रों आदि की क्षेत्रीय विविधताओं पर उचित विचार के साथ अखिल भारतीय होगा. उन्होंने बताया कि वर्तमान में जनजातीय अध्ययन केंद्र, दिल्ली विश्वविद्यालय के एंथ्रोपोलॉजी विभाग से कार्य करेगा.

स्वदेशी ज्ञान का अध्ययन: प्रोफेसर प्रकाश सिंह ने बताया कि जनजातीय अध्ययन केंद्र, कई जनजातीय नेताओं की भूमिका और योगदान को उजागर करने का प्रयास करेगा. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई गुमनाम जनजातीय नेताओं के प्रयासों को भी प्रकाश में लाएगा. यह केंद्र अपने अनुसंधानात्मक प्रयासों द्वारा भारतीय जनजातियों की विभिन्न लोक परंपराओं और उनके स्वदेशी ज्ञान का अध्ययन और दस्तावेजीकरण करेगा और जनता के लिए सामान्य रूप से और शिक्षाविदों तथा विद्यार्थियों के बीच इस जानकारी का प्रसार करने की दिशा में भी काम करेगा.

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दिया जाएगा व्यावहारिक शैक्षणिक प्रोत्साहन: उन्होंने बताया कि विमुक्त, घुमंतू जनजातियों और विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजीस) की जरूरतों के बीच अंतर को पाटने में भी यह केंद्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. साथ ही इस केंद्र से संरक्षण, विकास, वन और विशेष स्वास्थ्य आवश्यकताओं के विशेष संदर्भ में सार्वजनिक नीति को व्यावहारिक शैक्षणिक प्रोत्साहन भी दिया जाएगा. यह केंद्र उन जनजातियों को सशक्त बनाने के दिल्ली विश्वविद्यालय के दृष्टिकोण का एक प्रमाण है, जो भारत की कुल आबादी का आठ प्रतिशत से अधिक हैं.

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