नई दिल्ली: वर्ष 2019 में जामिया विश्वविद्यालय के अंदर घुसकर पुलिस द्वारा कथित तौर पर की गई मारपीट के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस को जिम्मेदार ठहराया है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि स्टूडेंट्स पर अतिरिक्त बल प्रयोग को बिल्कुल सही नहीं ठहराया जा सकता और इसके लिए संबंधित अधिकारियों की जवाबदेही बनती है. कोर्ट साल 2019 में जामिया में सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुए अलग-अलग कथित हिंसा के याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था.
छात्रों की तरफ दाखिल याचिका पर बहस करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि मौजूदा मामले में पुलिस ने जिस तरह से कार्रवाई की वह जरूरी नहीं थी. इसलिए कोर्ट इस मामले में एक रिटायर्ड जजों की कमेटी बनाएं और रिपोर्ट के बाद अन्य राहत की मांग पर भी विचार करें. जयसिंह की दलील पर न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति तलवंत सिंह की बेंच को दिल्ली पुलिस के वकील ने बताया कि एनएचआरसी पहले ही इस मामले में एक रिपोर्ट तैयार कर चुकी है. बेंच ने इस पर निर्देश दिया कि वह रिपोर्ट 4 सप्ताह के भीतर सभी याचिकाकर्ताओं को उपलब्ध कराई जाए. कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी जोड़ा कि पुलिस द्वारा जब भी अत्यधिक बल प्रयोग या गैर जरूरी कार्रवाई को उचित नहीं ठहराया जा सकता.
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पुलिस को विश्वविद्यालय के अंदर जाने की नहीं थी जरूरत : इंदिरा जयसिंह ने कहा कि एनएचआरसी की रिपोर्ट ने उनकी याचिका में मांगी गई राहत को खत्म नहीं किया है, उन्होंने जोड़ा कि पुलिस ने जामिया कैंपस के अंदर जरूरत से ज्यादा बल प्रयोग किया, जबकि वाइस चांसलर ने पुलिस को विद्यालय में प्रवेश की अनुमति नहीं दी थी और स्टूडेंट विरोध प्रदर्शन खत्म कर कैंपस में वापस लौट चुके थे. जय सिंह ने दावा किया कि इस मामले में अभी तक कोई fact-finding कमेटी नहीं बनी है. इसलिए कोर्ट इसके लिए कमेटी बना सकते हैं. इसी मामले में गांधी याचिका का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने भी अपनी दलीलें लिखित तौर पर कोर्ट में सबमिट की है.
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