नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन की दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम के तहत ट्रायल कोर्ट से उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों को रद्द करने की मांग की गई थी. (Tahir Hussain's filing petition rejected) अदालत ने 15 नवंबर को दोनों पक्षों को निर्देश दिया था कि वह 2 दिनों के भीतर 3 पन्नों से अधिक की अपनी लिखित दलीलें पेश करें. इसके बाद न्यायाधीश ने हुसैन की याचिका पर आदेश 15 नवंबर को सुरक्षित रख लिया था.
न्यायमूर्ति अनु मल्होत्रा की पीठ ने सुनवाई के दौरान ताहिर हुसैन की ओर से पेश अधिवक्ता नवीन मल्होत्रा, नीलांश मल्होत्रा और ऋत्विक मल्होत्रा ने तर्क दिया. उन्होंने कहा कि 'अपराध की आय' पीएमएलए के तहत एक अपराध का मूल है और यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं था कि हुसैन ने अपराध की आय से कुछ अर्जित किया था. जो इसके लिए एक अपराध होना आवश्यक था. इसलिए इस मामले में आरोप तय नहीं हो सकते.
मल्होत्रा ने तर्क दिया था, ''अर्जित संपत्ति कहां है?'' उन्होंने तर्क दिया था कि ताहिर हुसैन ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कुछ भी नहीं कमाया है. उन्होंने आगे तर्क दिया कि हुसैन से एक भी संपत्ति जुड़ी नहीं है और जीएसटी कर उल्लंघन पीएमएलए के तहत अपराध की आय नहीं है.
इसके विपरीत प्रवर्तन निदेशालय के वकील जोहेब हुसैन ने आवेदन का विरोध किया और तर्क दिया कि भारतीय दंड संहिता की धारा.120B (आपराधिक षडयंत्र) एक स्वतंत्र अपराध है और हुसैन ने षडयंत्र में दंगों के उद्देश्य के लिए धन उत्पन्न किया और उसका उपयोग किया.
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जोहेब ने कोर्ट में कहा कि "साजिश रची गई है" और ताहिर हुसैन के खिलाफ एक स्पष्ट मामला बनाया गया है. उन्होंने कहा कि आरोप तय करने के चरण में एजेंसी के पास रिकॉर्ड पर पर्याप्त सबूत हैं, इसलिए ताहिर हुसैन की याचिका टिकती नहीं है. यह भी कहा गया कि हुसैन ने कथित रूप से इस्तेमाल किए गए बैंक खाते भी पीएमएलए की धारा 8(5) के तहत एक संपत्ति होगी.
3 नवंबर को कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने आप के पूर्व पार्षद के खिलाफ पीएमएलए की धारा 3 और 4 के तहत आरोप तय किए. अदालत ने उन्हें सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत वैधानिक जमानत देने से भी इनकार कर दिया था.
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