नई दिल्ली/गाजियाबाद: विक्रम संवत 2080 में श्रावण के दो महीने हैं. हिंदी मास में 12 महीने होते हैं. चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, मार्गशीर्ष, पौष ,माघ और फाल्गुन. ये महीने चंद्रमास कहलाते हैं. चंद्रमा की गति से इनका निर्धारण होता है. चंद्र मास लगभग 29 दिन का होता है. तीन वर्ष के पश्चात लगभग एक महीना कम हो जाता है. इस एक महीने की अवधि को पूरा करने के लिए शास्त्रों में अधिक मास अथवा लौंद मास का निर्धारण किया जाता है, इसलिए 3 वर्षों पश्चात एक महीना अधिक होकर अधिकमास कहलाता है.
अध्यात्मिक गुरु और ज्योतिषाचार्य शिवकुमार शर्मा के मुताबिक, शास्त्रीय गणना के अनुसार हमेशा केवल श्रावण मास ही अधिक मास नहीं होता है, बल्कि अधिक मासों में सभी क्रम आगे बढ़ता रहता है. श्रावण मास इस बार 19 वर्ष के बाद दोबारा आया है. भगवान कृष्ण ने कहा था कि अधिक मास का स्वामी मैं स्वयं हूं. अर्थात इसलिए इसको अधिक मास को पुरुषोत्तम मास कहा गया है.
दिनांक 18 जुलाई से यह पुरुषोत्तम मास आरंभ होकर 16 अगस्त तक रहेगा. एक विशेष बात यह है कि पुरुषोत्तम मास में कोई सक्रांति नहीं होती है. कर्क की संक्रांति 16 जुलाई को थी और सिंह की सक्रांति 17 अगस्त को है.
पुरुषोत्तम मास में ये कार्य न करें:-
- पुरुषोत्तम मास अथवा लौंद के महीने में विवाह कार्य, गृह प्रवेश और भूमि पूजन नहीं करना चाहिए.
- पुरुषोत्तम मास में व्रत, त्योहार मनाना वर्जित है.
- पुरुषोत्तम मास में मद्यपान, मांसाहार ना करें.
- असत्याचरण ना करें. झूठ नहीं बोले.
- किसी के साथ छल कपट ना करें.
पुरुषोत्तम मास में क्या करें?
- लौंद के महीने में यद्यपि विवाह मुहूर्त, गृह प्रवेश, मुहूर्त आदि नहीं होते हैं, लेकिन उनसे संबंधित विवाह से संबंधित वार्तालाप, अपनाना, गोद भरना आदि, रिंग सेरेमनी आदि विवाह से पूर्व होने वाले कार्य कर सकते हैं.
- इसी प्रकार भूमि पूजन, गृह प्रवेश वर्जित है किंतु मकान प्लाट लेना उसकी रजिस्ट्री कराना, मरम्मत कराना शुभ होता है.
- पुरुषोत्तम मास में ईश्वर भक्ति अवश्य करनी चाहिए.
- पने इष्ट देव का पूजन मंत्र जाप विशेष अनुष्ठान करें.
- गुरु मंत्र का जाप अथवा कोई मंत्र सिद्धि कर सकते हैं.
- यज्ञ, हवन ,भागवत कथा, अखण्ड रामायण का पाठ, सत्यनारायण व्रत कथा आदि सभी इस मास में शुभ होते हैं.
- विष्णु सहस्त्रनाम, गोपाल सहस्रनाम, महामृत्युंजय जाप रुद्राभिषेक आदि कार्य करना शुभ होता है.
- पुरुषोत्तम मास में अतिथि सेवा, मातृ पितृ भक्ति, गुरु की भक्ति बहुत श्रेष्ठ होती है. वैसे तो उपरोक्त नियम हमारे समाज में हमेशा के लिए ही सर्वश्रेष्ठ होते हैं, लेकिन इन दिनों में किया गया गुरु, माता-पिता, अतिथि के प्रति कर्तव्य विशेष फलदाई होते हैं.
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