नई दिल्ली/गाजियाबाद: धर्मांतरण मामले के सामने आने के बाद एनसीआर के अभिभावक काफी डरे हुए हैं. खासकर बच्चों को लेकर उनकी चिंता बढ़ गई है. इसको देखते हुए माता-पिता अपने बच्चों को मोबाइल के इस्तेमाल से दूर रखने की कोशिश में जुटे हैं. अधिकतर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा मोबाइल का इस्तेमाल कम से कम करे.
हालांकि, ऑनलाइन स्टडी की वजह से मोबाइल एक मजबूरी बन गया है. फिर भी अभिभावकों के लिए ऑनलाइन गेमिंग के जरिए धर्मांतरण का मामला सामने आने के बाद बड़ी चुनौती आ गई है. ईटीवी भारत ने मनोचिकित्सक से जानने की कोशिश की है कि अभिभावकों को ऐसा क्या करना चाहिए, जिससे उनका बच्चा मोबाइल या अपनी जिंदगी में जो कुछ कर रहा है उसके बारे में अपने परिवार को बताए. आइए जानते हैं.
मोबाइल बना अभिभावकों का सिरदर्द: इंदिरापुरम निवासी महिला करुणा त्यागी ने बताया कि यह बहुत ही गंभीर विषय है. ऑनलाइन धर्मांतरण की घटना सुनने के बाद हम काफी गंभीर हैं. बच्चों को लेकर इस समय डर की स्थिति है. कई बार हमारे बच्चे एकांत में मोबाइल अपने पास रखते हैं. यह खतरनाक साबित होता है. इससे बच्चा गलत लोगों के संपर्क में आ सकता है. उन्होंने कहा कि मोबाइल पर होने वाले प्रोपेगेंडा से अभिभावक काफी डर गए हैं. हम आम तौर पर अब ध्यान रखते हैं कि बच्चा कौन सा गेम खेल रहा है.
वहीं, वसुंधरा निवासी सुनैना भारद्वाज ने बताया कि जबसे हमने यह मामला सुना है तब से काफी चिंता बढ़ गई है. बच्चे ऑनलाइन गेम खेल रहे हैं और उस के माध्यम से चैट भी करते हैं. हम इस बात का ध्यान रखते हैं कि हमारा बच्चा ऑनलाइन या ऑफलाइन काम कर रहा है. बच्चे को रूम में अकेले कभी भी मोबाइल इस्तेमाल करने के लिए नहीं दे रहे हैं. हमने यह भी सुना था कि मोबाइल देखकर बच्चे कई और खतरनाक कदम भी उठा चुके हैं. कई बार हम लोगों से भी गलती होती है कि बच्चों को हम समय नहीं दे पाते है. यह मामला सुनने के बाद हमारी चिंता बढ़ गई है. हमेशा अभिभावकों को इस बात का डर बना रहता है कि बच्चा कहीं कोई गलत कदम न उठा ले. हमने खुद अपने बच्चों का टाइम शेड्यूल सेट किया हुआ है. बच्चों को कभी भी अकेले में मोबाइल इस्तेमाल करने के लिए नहीं देते हैं.
मनोचिकित्सक से जानिए सलूशन: मनोचिकित्सक आर चंद्रा बताते हैं कि इन मामलों को कई एंगल से देखा जाना चाहिए. खासकर जब हम गेमिंग की बात कर रहे हैं. कई गेम ऐसे होते हैं, जिसमें आपस में लोगों का इंटरेक्शन होता है. कई गेमिंग एप ऐसे होते हैं, जिनमें चैटिंग भी होती है. वह चैटिंग किसी और को भी नहीं पता चलती, क्योंकि इसमें प्राइवेसी भी होती है. कई बच्चे ऐसे होते हैं, जिनकी पर्सनैलिटी स्ट्रांग होती है. वह किसी के बहकावे में नहीं आते हैं. कुछ बच्चे ऐसे होते हैं कि वह बहुत जल्दी बहकावे में आ जाते हैं. दूसरी तरह की पर्सनैलिटी वाले बच्चे हैं वह बच्चे गुनाह का शिकार जल्दी हो जाते हैं.
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उन्होंने कहा कि सभी तरह की समस्याओं के लिए परिवार को एक काम करना है. वह काम यह है कि बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार करें. इसका मतलब यह नहीं है कि बच्चों से कह दे कि हम तुम्हारे दोस्त हैं. बल्कि बच्चे को अपने व्यवहार से महसूस करवाना होता है कि माता-पिता या करीबी लोग उसके दोस्त हैं, जिससे वह उनकी बात माने और सभी बातें बताए. बच्चे कई बार सीधी बात के अलावा इशारों में भी बातें बताते हैं. उन इशारों को समझना अभिभावकों के लिए बेहद जरूरी है. अगर समय रहते बच्चे के बारे में जान लिया जाए तो ऐसी घटनाएं नहीं होंगी.
बच्चों के दोस्तों की भी रखे जानकारी: उन्होंने आगे बताया कि बच्चे अपने स्कूल दोस्त या फिर दूसरे दोस्तों को भी अपनी बातें बताते हैं. उन दोस्तों से भी अगर बच्चों के अभिभावक बात करें तो बच्चे के बारे में काफी जानकारी ली जा सकती है. यह भी पता लगाया जा सकता है कि बच्चा कहीं किसी अनजान व्यक्ति से बातचीत नहीं करता है. इस तरह कोशिश की जा सकती है कि बच्चे अपने अभिभावकों से हर बात खुलकर कर पाए.
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