नई दिल्ली/गाजियाबाद: 15 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा. क्योंकि, 14 जनवरी की रात्रि 12 बजे के बाद 2:44 बजे सूर्य देव मकर संक्रांति में विचरण करना आरंभ करेंगे. शास्त्रों में इस दिन दान का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है. शीत ऋतु का प्रकोप और उत्तरायण होता सूर्य का संधि काल, यह समय बहुत ही जटिल होता है. इस पर्व के दिन दान योग्य पात्र व्यक्तियों को गर्म कपड़े, कंबल, वस्त्र, खिचड़ी, तिल का तेल आदि गर्म प्रवृत्ति की वस्तुओं का दान करने से व्यक्ति की कुंडली में सूर्य नारायण प्रबल होते हैं.
ज्योतिषाचार्य शिवकुमार शर्मा के मुताबिक, यदि आपकी कुंडली में सूर्य बलवान है तो सारी महत्वाकांक्षाएं और इच्छाएं पूर्ण होती है. सूर्य पिता और चंद्रमा माता कारक ग्रह है. मकर संक्रांति सूर्य का पर्व है. ऐसे में सूर्य भगवान अर्थात पिता को कृपा का पात्र बनने के लिए, अपनी इच्छा शक्ति बढ़ाने के लिए पिता को प्रसन्न करने के साथ-साथ सूर्य के पर्व मकर संक्रांति के दिन गरीबों को दान करें और उनका आशीर्वाद लें.
शिवकुमार शर्मा के मुताबिक, भारतवर्ष में विशेष रूप से उत्तर भारत में यह पर्व मनाने की परंपरा है. यह परंपरा कब से चली आ रही है इसका पता नहीं है. लेकिन इस दिन बहुत सी महिलाएं अपने किसी बड़े बुजुर्ग को मनाती हैं. मनाने का अर्थ होता है कि उनको यथायोग्य सम्मान देकर, वस्त्र उपहार, भोजन सामग्री आदि दान करती हैं. ऐसा करने से बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद उनके साथ रहता है.
कैसे करें मकर संक्रांति के पूजन: मकर संक्रांति अर्थात मकर राशि में सूर्य का आगमन होने से सूर्य का गति उत्तर की ओर बढ़ने लगती है. यह संक्रांति उत्तरायण की है. सूर्य उत्तर की ओर अपनी गति को आरंभ कर देते हैं, इसलिए इस दिन सूर्य की विशेष पूजा करनी चाहिए. प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि से निवृत होकर शुद्ध पवित्र वस्त्र पहनकर अपनी पूजा स्थान में गायत्री मंत्र का जाप करें. सूर्य चालीसा, आदित्य हृदय स्तोत्र, राम रक्षा स्तोत्र आदि का पाठ करें. उसके पश्चात तांबे के लोटे में गंगाजल, रोली गुड़ आदि डाल करके सूर्य को अर्घ्य दें और उनका दर्शन करें.
यदि मौसम अनुकूल नहीं है सूर्य दिखाई नहीं दे रहे हैं तो प्रणाम करके सात परिक्रमा करें क्योंकि सूर्यनारायण अपने सात घोड़े के रथ पर विराजमान होकर उत्तर दिशा की ओर प्रस्थान करने वाले हैं. इस दिन गंगा स्नान करने का भी बहुत महत्व है. गंगा जी में स्नान करें, क्योंकि सूर्य पितरों का भी प्रतीक है इसलिए पितरों की सद्गति की प्रार्थना करते हुए उनके निमित्त जलांजलि दें.