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गाजियाबाद के कवि ने नोटबंदी के 6 साल पूरे होने पर लिखी कविता, बताया नोटों का दर्द

नोटबंदी के 6 साल पूरे होने के बाद भी इसके सही और गलत होने की बहस जारी है. वहीं दूसरी तरफ नोटबंदी को लेकर गाजियाबाद के कवि आर.पी.शर्मा ने कविता लिखी (ghaziabad poet wrote poem on demonetisation) है जिसमें उन्होंने नोटों का दर्द पिरोया है.

ghaziabad poet wrote poem on demonetisation
ghaziabad poet wrote poem on demonetisation
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Published : Nov 8, 2022, 2:09 PM IST

नई दिल्ली/गाजियाबाद: भारत में नोटबंदी की घोषणा को 6 साल पूरे हो चुके हैं पर नोटबंदी की यादें आज भी लोगों के दिलों में ताजा है. 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में नोटबंदी का ऐलान किया था, जिसके बाद से 500 और 1,000 के नोट चलन से बाहर कर दिए गए थे. इसके बाद अगले कई महीनों तक पूरे देश में काफी अफरा-तफरी का माहौल था. लोगों को पुराने नोटों को नए नोटों से बदलवाने के लिए बैंकों की लाइन में घंटों लगना पड़ता था जिससे रोजमर्रा की चीजों को खरीदने के लिए भी लोगों को काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही थी.

सरकार के इस कदम को लेकर लोगों की अपनी-अपनी राय थी, लेकिन सरकार ने यह फैसला कालाधान पर रोक लगाने के लिए किया था. इस नोटबंदी के विषय को लेकर गाजियाबाद के कवि आर.पी.शर्मा ने कविता (ghaziabad poet wrote poem on demonetisation) लिखी है-

कवि आर.पी.शर्मा

आठ नवंबर को एक भयानक काली रात आई थी,
जिसने पांच सौ और हजार के नोटों को मौत की सजा सुनाई थी,
कल रात पांच सौ और हजार के नोट मेरे सपने में आए,
आंखों में आंसू लिए बड़ा फीका से मुस्कुराए,
मैं झट से उठा उनको गले लगाने को,
वह पीछे हटते हुए बोले- शर्मा जी, क्या तैयार हो जेल जाने को,
हमारे साथ तो आतंकियों से भी बुरा हुआ सलूक,
हमें तो बिना वार्निंग के ही कर दिया गया शूट,
अरे एहसान फरामोशों, हमसे तो रखते अच्छा व्यवहार,
याद करो कि, बिना हमारे पूरा नहीं होता था कोई लेनदेन और व्यापार,
पूरा का पूरा सिस्टम हमें ही चलाते थे,
हम ही थे जो दलबदलूओं को भाते थे,
हमारे ही कारण तुम ऊंची कुर्सी तक पहुंच पाते थे,
क्योंकि जमीन से लेकर ज़मीर खरीदने तक हम ही काम आते थे,
हम तुम्हारा ज़मीर नहीं थे कि यूं ही मार दिया,
पहले गले लगाया फिर मिट्टी में गाड़ दिया,
मित्रों- यह कहते-कहते नोटों की आंखों से आंसू बहने लगे,
वे फूट-फूट कर रोने लगे और कहने लगे,
वास्तव में यह इंसान कितना निराला है,
खुद करता है काले काम और कहता है कि नोट काला है,
खुद करता है काले काम और कहता है कि नोट काला है.

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार और काले धन की समस्या को दूर करने के उद्देश्य से 500 और 1,000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया था. इस कदम का उद्देश्य भारत को 'कम नकदी' वाली अर्थव्यवस्था बनाना था. इस कदम को खराब योजना और निष्पादन बताते हुए कई विशेषज्ञों ने इसकी आलोचना की थी.

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नई दिल्ली/गाजियाबाद: भारत में नोटबंदी की घोषणा को 6 साल पूरे हो चुके हैं पर नोटबंदी की यादें आज भी लोगों के दिलों में ताजा है. 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में नोटबंदी का ऐलान किया था, जिसके बाद से 500 और 1,000 के नोट चलन से बाहर कर दिए गए थे. इसके बाद अगले कई महीनों तक पूरे देश में काफी अफरा-तफरी का माहौल था. लोगों को पुराने नोटों को नए नोटों से बदलवाने के लिए बैंकों की लाइन में घंटों लगना पड़ता था जिससे रोजमर्रा की चीजों को खरीदने के लिए भी लोगों को काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही थी.

सरकार के इस कदम को लेकर लोगों की अपनी-अपनी राय थी, लेकिन सरकार ने यह फैसला कालाधान पर रोक लगाने के लिए किया था. इस नोटबंदी के विषय को लेकर गाजियाबाद के कवि आर.पी.शर्मा ने कविता (ghaziabad poet wrote poem on demonetisation) लिखी है-

कवि आर.पी.शर्मा

आठ नवंबर को एक भयानक काली रात आई थी,
जिसने पांच सौ और हजार के नोटों को मौत की सजा सुनाई थी,
कल रात पांच सौ और हजार के नोट मेरे सपने में आए,
आंखों में आंसू लिए बड़ा फीका से मुस्कुराए,
मैं झट से उठा उनको गले लगाने को,
वह पीछे हटते हुए बोले- शर्मा जी, क्या तैयार हो जेल जाने को,
हमारे साथ तो आतंकियों से भी बुरा हुआ सलूक,
हमें तो बिना वार्निंग के ही कर दिया गया शूट,
अरे एहसान फरामोशों, हमसे तो रखते अच्छा व्यवहार,
याद करो कि, बिना हमारे पूरा नहीं होता था कोई लेनदेन और व्यापार,
पूरा का पूरा सिस्टम हमें ही चलाते थे,
हम ही थे जो दलबदलूओं को भाते थे,
हमारे ही कारण तुम ऊंची कुर्सी तक पहुंच पाते थे,
क्योंकि जमीन से लेकर ज़मीर खरीदने तक हम ही काम आते थे,
हम तुम्हारा ज़मीर नहीं थे कि यूं ही मार दिया,
पहले गले लगाया फिर मिट्टी में गाड़ दिया,
मित्रों- यह कहते-कहते नोटों की आंखों से आंसू बहने लगे,
वे फूट-फूट कर रोने लगे और कहने लगे,
वास्तव में यह इंसान कितना निराला है,
खुद करता है काले काम और कहता है कि नोट काला है,
खुद करता है काले काम और कहता है कि नोट काला है.

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार और काले धन की समस्या को दूर करने के उद्देश्य से 500 और 1,000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया था. इस कदम का उद्देश्य भारत को 'कम नकदी' वाली अर्थव्यवस्था बनाना था. इस कदम को खराब योजना और निष्पादन बताते हुए कई विशेषज्ञों ने इसकी आलोचना की थी.

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