नई दिल्ली: 1857 की क्रांति में गाजियाबाद का अहम योगदान रहा है. 1976 से पहले गाजियाबाद जिला जनपद मेरठ का तहसील हुआ करता था. इस क्रांति के दौरान गाजियाबाद की हिंडन नदी पर क्रांतिकारियों और अंग्रेजों के बीच भीषण युद्ध हुआ था, जिसमें क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे. इस युद्ध को हिंडन युद्ध के नाम से भी जाना जाता है. युद्ध इतना भीषण था कि अंग्रेजों को पीछे हटना पड़ा था. इस युद्ध की एक निशानी आज भी गाजियाबाद में है.
दरअसल, गाजियाबाद के हिंडन विहार में अंग्रेजों का एक छोटा-सा कब्रिस्तान है, जिसमें तीन कब्रें हैं. इस कब्रिस्तान को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित किया गया है. कब्रिस्तान पर ताला लटका हुआ है, जबकि बाहर एएसआई के बोर्ड लगे हैं. इस बारे में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के इतिहास के प्रोफेसर डॉ. कृष्ण कांत शर्मा ने बताया कि 10 मई 1857 को मेरठ से क्रांति की शुरुआत हुई थी, जो आसपास के क्षेत्रों में तेजी से फैली. वहीं, 30 और 31 मई, 1857 के बीच हिंडन युद्ध लड़ा गया था. स्वतंत्रता संग्राम में इसे एक अहम युद्ध माना जाता है.
उन्होंने बताया कि अंग्रेजों ने एक किताब में लिखा है कि कैसे एक भारतीय क्रांतिकारी सैनिक अपने प्राणों को हथेली पर रखकर गोला-बारूद के ऊपर कूद पड़ा था. इससे वहां रखे गोला-बारूद में विस्फोट हो गया था. इस घटना में अंग्रेजों के सेना के कप्तान सहित कई सिपाही मारे गए थे, जिनकी कब्र हिंडन नदी के किनारे हैं. हालांकि, बाद में अंग्रेजों ने अपनी सफाई में कहा था कि हिंडन नदी के किनारे जो कैप्टन और सिपाही मारे गए थे उनकी मौत तेज धूप और लू के चलते हुई थी.
उन्होंने कहा कि वहीं एक अंग्रेज ने यह भी लिखा है कि हिंडन युद्ध के दौरान भारतीय क्रांतिकारियों ने बड़ी वीरता दिखाई थी. ऐसी वीरता उन्होंने पहले कभी नहीं देखी थी. हिंडन विहार में मौजूद कब्रिस्तान इस बात की गवाही देता है कि हिंडन युद्ध में अंग्रेज मारे गए थे, न की गर्मी और लू से.
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