नई दिल्ली/गाजियाबादः देवशयनी एकादशी के बाद चातुर्मास में ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु शेषशैय्या पर विश्राम करते हैं और देवोत्थान एकादशी को वे पुन:जागृत होकर के सृष्टि का क्रम चलाते हैं. लेकिन उसके पीछे श्रावण में भगवान शिव, भादो में भगवान श्री कृष्ण, अश्विन में पितृ देवता और मां दुर्गा तथा कार्तिक में मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के कार्यों को पूर्ण करते रहते हैं. इसलिए यह सृष्टि क्रम निरंतर चलता रहता है. 29 जून से चातुर्मास शुरू हो रहे हैं.
ज्योतिषाचार्य आचार्य शिव कुमार शर्मा के मुताबिक प्राचीन काल में मंगल कार्य जैसे वैवाहिक कार्य, गृह प्रवेश भूमि पूजन आदि उत्सवों में अपने सभी पारिवारिक जन, रिश्तेदार एकत्र होते हैं जो दूरदराज से आते थे. उस समय नदी नालों पर पुल और यातायात की उचित व्यवस्था नहीं थी. घने जंगल, नदी, नालों के चलते यातायात के साधन नहीं थे. इसलिए चातुर्मास को भगवान की भक्ति के लिए अच्छा माना गया था. वर्तमान में यह सब नगण्य हो गया है. पंचांगकार भी अब चातुर्मास में गृह प्रवेश, भूमि पूजन और विवाह के मुहूर्त प्रकाशित करने लगे हैं. जो इस प्रकार हैंः
गृह निर्माण हेतु भूमि पूजन मुहूर्त
अगस्त | 21, 26, 28, 31 |
सितंबर | 4 |
अक्टूबर | 22, 25 |
नवंबर | 23 |
गृह प्रवेश मुहूर्त
अगस्त | 23, 26, 31 |
सितंबर | 10, 11 |
अक्टूबर | 20, 22, 24, 25 |
नवंबर | 5, 9, 10, 11, 23 |
विवाह मुहूर्त
पंजाब, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश आदि प्रांतो को शास्त्रों में द्विगर्त कहा गया है. पंचांगकारों ने द्विगर्त प्रांतों में विशेष विवाह मुहूर्त लिखे हैं. क्योंकि पंजाब, हिमाचल प्रदेश और कश्मीर के बहुत से लोग समस्त भारतवर्ष में फैले हुए हैं. इसलिए इन वैवाहिक शुभ मुहूर्तों को अपनाकर अपने बालक बालिकाओं विवाह कर सकते हैं.
जुलाई | 2, 3, 4, 5, 9, 10, 14 |
अगस्त | 20, 21, 22 ,24 ,26, 30 |
सितंबर | 2, 3, 7, 12, 20, 21, 22, 23, 24, 25, 26 |
अक्टूबर | 18, 20, 22, 23, 24, 27, 31 |
नवंबर | 1, 6, 7, 10, 19 |
नोटः उपरोक्त तिथियां शुभ कार्यों में ग्रहों की विद्वान गण एवं जनसाधारण इन पर विचार करने का प्रयास करें.
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