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Ghaziabad Ramlila: अंग्रेजों के दौर में शुरू हुई थी 'सुल्लामल रामलीला', आज भी मंचन देखने आते हैं लाखों लोग - sulamal ramlila

सुल्लामल रामलीला गाजियाबाद की धरोहर है. आज भी दूरदराज के इलाकों से लोग रामलीला का मंचन देखने के लिए पहुंचते हैं. साल दर साल सुल्लामल रामलीला का स्वरूप विशाल होता जा रहा है.

अंग्रेजों के दौर में शुरू हुई थी 'सुल्लामल रामलीला'
अंग्रेजों के दौर में शुरू हुई थी 'सुल्लामल रामलीला'
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Oct 13, 2023, 4:35 PM IST

अंग्रेजों के दौर में शुरू हुई थी 'सुल्लामल रामलीला'

नई दिल्ली/गाजियाबाद: गाजियाबाद के घंटाघर स्थित रामलीला मैदान में लगने वाली 'सुल्लामल रामलीला' केवल दिल्ली-एनसीआर नहीं, बल्कि पश्चिम उत्तर प्रदेश की प्राचीन और प्रमुख रामलीलाओं में से एक है. अंग्रेजों के दौर से इस रामलीला का आयोजन होता आ रहा है. आज भी लाखों की संख्या में लोग रामलीला का मंचन देखने के लिए पहुंचते हैं.

अंग्रेजों के दौर में शुरू हुई थी 'सुल्लामल रामलीला', आज भी मंचन देखने आते हैं लाखों लोग
अंग्रेजों के दौर में शुरू हुई थी 'सुल्लामल रामलीला', आज भी मंचन देखने आते हैं लाखों लोग

सुल्लामल रामलीला कमेटी के अध्यक्ष वीरेंद्र कुमार वीरू का कहना है कि उस्ताद सुल्लामल द्वारा 123 वर्ष पहले साल 1900 में रामलीला की शुरुआत की गई थी. उस्ताद सुल्लामल अपने शागिर्दों के साथ रामलीला का मंचन करते थे. शुरुआत में रामलीला का मंचन शहर में होता था जबकि समापन घंटाघर में होता था. शहर के बीचो-बीच घंटा घर रामलीला मैदान ही सबसे बड़ी जगह थी. ऐसे में कुछ सालों बाद रामलीला का मंचन यहां होना शुरू हो गया.

सुल्लामल रामलीला गाजियाबाद की धरोहर है. साल दर साल सुल्लामल रामलीला का स्वरूप विशाल होता जा रहा है.
सुल्लामल रामलीला गाजियाबाद की धरोहर है. साल दर साल सुल्लामल रामलीला का स्वरूप विशाल होता जा रहा है.

वीरू बताते हैं कि जब वह छोटे थे तो अपनी मां के साथ रामलीला देखने जाया करते थे. आज जहां बड़ी-बड़ी इमारतें बनी हुई है, वहां कभी सुनसान जंगल होते थे. लोग वहां से निकालते हुए भी शाम के वक्त घबराते थे. अब वक्त बहुत बदल गया है. टेक्नोलॉजी का दौर है. कुछ बेहतर और अलग करने के लिए कई विकल्प मौजूद है. बदलते दौर के साथ अब रामलीला भी बदली है. अब रामलीला में प्रोफेशनल कलाकार मंचन की जिम्मेदारी संभालते हैं. पहले तो स्थानीय लोग ही मंचन किया करते थे. जिसमें में मुख्य किरदार उस्ताद कहलाता था जबकि अन्य लोग शागिर्द.

उस्ताद सुल्लामल द्वारा 123 वर्ष पहले साल 1900 में रामलीला की शुरुआत की गई थी.
उस्ताद सुल्लामल द्वारा 123 वर्ष पहले साल 1900 में रामलीला की शुरुआत की गई थी.

वीरू ने बताया कि हर साल लोगों की संख्या बढ़ रही है. ऐसे में दर्शकों को आसानी से मंचन दिख सके, इसलिए इस साल 1200 स्क्वायर फीट की एलईडी लगाई गई है. उनका कहना है कि उस्ताद सुल्लामल द्वारा रामायण लिखी गई थी. शुरुआत में कई वर्षों तक इसी रामायण से रामलीला का मंचन हुआ. पुराने लोग बताते हैं कि रामायण खड़ी बोली में लिखी गई थी. उस वक्त के लोग इस रामायण से किए गए मंचन को बेहद पसंद किया करते थे.

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अंग्रेजों के दौर में शुरू हुई थी 'सुल्लामल रामलीला'

नई दिल्ली/गाजियाबाद: गाजियाबाद के घंटाघर स्थित रामलीला मैदान में लगने वाली 'सुल्लामल रामलीला' केवल दिल्ली-एनसीआर नहीं, बल्कि पश्चिम उत्तर प्रदेश की प्राचीन और प्रमुख रामलीलाओं में से एक है. अंग्रेजों के दौर से इस रामलीला का आयोजन होता आ रहा है. आज भी लाखों की संख्या में लोग रामलीला का मंचन देखने के लिए पहुंचते हैं.

अंग्रेजों के दौर में शुरू हुई थी 'सुल्लामल रामलीला', आज भी मंचन देखने आते हैं लाखों लोग
अंग्रेजों के दौर में शुरू हुई थी 'सुल्लामल रामलीला', आज भी मंचन देखने आते हैं लाखों लोग

सुल्लामल रामलीला कमेटी के अध्यक्ष वीरेंद्र कुमार वीरू का कहना है कि उस्ताद सुल्लामल द्वारा 123 वर्ष पहले साल 1900 में रामलीला की शुरुआत की गई थी. उस्ताद सुल्लामल अपने शागिर्दों के साथ रामलीला का मंचन करते थे. शुरुआत में रामलीला का मंचन शहर में होता था जबकि समापन घंटाघर में होता था. शहर के बीचो-बीच घंटा घर रामलीला मैदान ही सबसे बड़ी जगह थी. ऐसे में कुछ सालों बाद रामलीला का मंचन यहां होना शुरू हो गया.

सुल्लामल रामलीला गाजियाबाद की धरोहर है. साल दर साल सुल्लामल रामलीला का स्वरूप विशाल होता जा रहा है.
सुल्लामल रामलीला गाजियाबाद की धरोहर है. साल दर साल सुल्लामल रामलीला का स्वरूप विशाल होता जा रहा है.

वीरू बताते हैं कि जब वह छोटे थे तो अपनी मां के साथ रामलीला देखने जाया करते थे. आज जहां बड़ी-बड़ी इमारतें बनी हुई है, वहां कभी सुनसान जंगल होते थे. लोग वहां से निकालते हुए भी शाम के वक्त घबराते थे. अब वक्त बहुत बदल गया है. टेक्नोलॉजी का दौर है. कुछ बेहतर और अलग करने के लिए कई विकल्प मौजूद है. बदलते दौर के साथ अब रामलीला भी बदली है. अब रामलीला में प्रोफेशनल कलाकार मंचन की जिम्मेदारी संभालते हैं. पहले तो स्थानीय लोग ही मंचन किया करते थे. जिसमें में मुख्य किरदार उस्ताद कहलाता था जबकि अन्य लोग शागिर्द.

उस्ताद सुल्लामल द्वारा 123 वर्ष पहले साल 1900 में रामलीला की शुरुआत की गई थी.
उस्ताद सुल्लामल द्वारा 123 वर्ष पहले साल 1900 में रामलीला की शुरुआत की गई थी.

वीरू ने बताया कि हर साल लोगों की संख्या बढ़ रही है. ऐसे में दर्शकों को आसानी से मंचन दिख सके, इसलिए इस साल 1200 स्क्वायर फीट की एलईडी लगाई गई है. उनका कहना है कि उस्ताद सुल्लामल द्वारा रामायण लिखी गई थी. शुरुआत में कई वर्षों तक इसी रामायण से रामलीला का मंचन हुआ. पुराने लोग बताते हैं कि रामायण खड़ी बोली में लिखी गई थी. उस वक्त के लोग इस रामायण से किए गए मंचन को बेहद पसंद किया करते थे.

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