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Asian Para Games: बिस्तर पर लेट कर गुजार दिया डेढ़ दशक, अब देश के लिए जेवेलिन थ्रो में जीता मेडल

कुछ कर गुजरने का जज्बा अगर हममें हो तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं होता. इसका उदाहरण गाजियाबाद के प्रदीप कुमार ने एशियाई पैरा खेल में सिल्वर मेडल हासिल कर दिखाया है. Asian Para Games 2023, Ghaziabad para athlete pradeep kumar

बिस्तर पर लेट कर गुजार दिया डेढ़ दशक
बिस्तर पर लेट कर गुजार दिया डेढ़ दशक
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Nov 7, 2023, 7:39 PM IST

बिस्तर पर लेट कर गुजार दिया डेढ़ दशक

नई दिल्ली/गाजियाबाद: गाजियाबाद के मुरादनगर क्षेत्र के सुठारी गांव के रहने वाले प्रदीप कुमार ने एशियाई पैरा खेल में सिल्वर मेडल हासिल किया. चीन के हांगझोऊ में आयोजित एशियन पैरा गेम्स के F-54 कैटिगरी में भाला फेंकते हुए मेडल हासिल किया है. जिंदगी की तमाम चुनौतियों और मुश्किलों से लड़कर प्रदीप ने देश का नाम ऊंचा किया है.

प्रदीप की जिंदगी बहुत ही संघर्ष भरी है. 12 अप्रैल 2003 प्रदीप की जिंदगी का सबसे बुरा दिन था. जिंदगी में सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था लेकिन इस दिन प्रदीप को गोली मार दी गई. दरअसल, उन्होंने एक महिला से की जा रही छेड़छाड़ का विरोध किया था. जिसके बाद बदमाशों ने उन्हें गोली मारी दी. प्रदीप की हस्ती खेलती जिंदगी एक बिस्तर तक सिमट कर रह गई.

गोली रीड की हड्डी में लगी थी. ऐसे में डॉक्टरों ने भी साफ बता दिया की वह शायद कभी अपने पैरों पर ना खड़े हो पाए. कई महीने बिस्तर पर पड़े रहने के बाद जब उनको पता चला कि वह अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाएंगे तब वह सन्न रह गए. लेकिन बदलते वक्त के साथ हालत भी बदलते गए.

बिस्तर पर लेट कर प्रदीप अक्सर खिलाड़ियों को व्हीलचेयर पर बैठकर विभिन्न प्रकार की खेल बड़े स्तर पर खेलते देखा करते थे. वहीं, से प्रदीप को प्रेरणा मिली कि अगर यह वहां तक पहुंच सकते हैं तो मैं भी एक दिन वहां तक जरूर पहुंचूंगा. फिर धीरे-धीरे उन्हें खेलों में रुचि आने लगी. परिवार के स्पोर्ट से उन्होंने 2018 से जैवलिन थ्रो खेलना शुरू किया. बता दें कि प्रदीप जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न जेवलिन थ्रो प्रतियोगिताओं में कई पदक अपने नाम कर चुके हैं.

''यकीन नहीं होता कि मैं 2015 तक पूरी तरह से बिस्तर पर ही रहता था, लेकिन आज वक्त और हालात काफी बदल गया है. अब लक्ष्य पैरा ओलंपिक गेम्स में देश के लिए गोल्ड मेडल लाना है''.

प्रदीप कुमार यादव, पैरा एथलीट

पूरा भरोसा था कि एक दिन सब ठीक होगा: प्रदीप कुमार यादव का कहना है कि शुरुआत काफी मुश्किल भरी थी लेकिन परिवार वालों ने, दोस्तों ने और गांव के लोगों ने काफी स्पोर्ट किया. परिवार और दोस्त तो अपनी तनख्वाह में से एक हिस्सा उनके खेल पर खर्च होने के लिए लंबे वक्त से देते आ रहे हैं, ताकि उनकी प्रेक्टिस लगातार जारी रहे और गेम बेहतर होता जाए. वहीं, प्रदीप के पिता जसवंत सिंह बताते हैं कि जब से प्रदीप ने खेलना शुरू किया तब से सिर्फ एक बात ही समझाया कि अपना कभी मनोबल मत तोड़ना. जिस तरह की भी स्पोर्ट चाहिए होगी. तुम्हें अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए जी जान लगानी है. हमें पूरा भरोसा है कि एक दिन सब ठीक होगा.

बिस्तर पर लेट कर गुजार दिया डेढ़ दशक

नई दिल्ली/गाजियाबाद: गाजियाबाद के मुरादनगर क्षेत्र के सुठारी गांव के रहने वाले प्रदीप कुमार ने एशियाई पैरा खेल में सिल्वर मेडल हासिल किया. चीन के हांगझोऊ में आयोजित एशियन पैरा गेम्स के F-54 कैटिगरी में भाला फेंकते हुए मेडल हासिल किया है. जिंदगी की तमाम चुनौतियों और मुश्किलों से लड़कर प्रदीप ने देश का नाम ऊंचा किया है.

प्रदीप की जिंदगी बहुत ही संघर्ष भरी है. 12 अप्रैल 2003 प्रदीप की जिंदगी का सबसे बुरा दिन था. जिंदगी में सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था लेकिन इस दिन प्रदीप को गोली मार दी गई. दरअसल, उन्होंने एक महिला से की जा रही छेड़छाड़ का विरोध किया था. जिसके बाद बदमाशों ने उन्हें गोली मारी दी. प्रदीप की हस्ती खेलती जिंदगी एक बिस्तर तक सिमट कर रह गई.

गोली रीड की हड्डी में लगी थी. ऐसे में डॉक्टरों ने भी साफ बता दिया की वह शायद कभी अपने पैरों पर ना खड़े हो पाए. कई महीने बिस्तर पर पड़े रहने के बाद जब उनको पता चला कि वह अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाएंगे तब वह सन्न रह गए. लेकिन बदलते वक्त के साथ हालत भी बदलते गए.

बिस्तर पर लेट कर प्रदीप अक्सर खिलाड़ियों को व्हीलचेयर पर बैठकर विभिन्न प्रकार की खेल बड़े स्तर पर खेलते देखा करते थे. वहीं, से प्रदीप को प्रेरणा मिली कि अगर यह वहां तक पहुंच सकते हैं तो मैं भी एक दिन वहां तक जरूर पहुंचूंगा. फिर धीरे-धीरे उन्हें खेलों में रुचि आने लगी. परिवार के स्पोर्ट से उन्होंने 2018 से जैवलिन थ्रो खेलना शुरू किया. बता दें कि प्रदीप जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न जेवलिन थ्रो प्रतियोगिताओं में कई पदक अपने नाम कर चुके हैं.

''यकीन नहीं होता कि मैं 2015 तक पूरी तरह से बिस्तर पर ही रहता था, लेकिन आज वक्त और हालात काफी बदल गया है. अब लक्ष्य पैरा ओलंपिक गेम्स में देश के लिए गोल्ड मेडल लाना है''.

प्रदीप कुमार यादव, पैरा एथलीट

पूरा भरोसा था कि एक दिन सब ठीक होगा: प्रदीप कुमार यादव का कहना है कि शुरुआत काफी मुश्किल भरी थी लेकिन परिवार वालों ने, दोस्तों ने और गांव के लोगों ने काफी स्पोर्ट किया. परिवार और दोस्त तो अपनी तनख्वाह में से एक हिस्सा उनके खेल पर खर्च होने के लिए लंबे वक्त से देते आ रहे हैं, ताकि उनकी प्रेक्टिस लगातार जारी रहे और गेम बेहतर होता जाए. वहीं, प्रदीप के पिता जसवंत सिंह बताते हैं कि जब से प्रदीप ने खेलना शुरू किया तब से सिर्फ एक बात ही समझाया कि अपना कभी मनोबल मत तोड़ना. जिस तरह की भी स्पोर्ट चाहिए होगी. तुम्हें अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए जी जान लगानी है. हमें पूरा भरोसा है कि एक दिन सब ठीक होगा.

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