नई दिल्ली: मध्यस्थता केंद्र न्याय दिलाने का सबसे बेहतर माध्यम है. दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में आने वाले मामलों में से मध्यस्थता के लिए भेजे जा रहे 70 प्रतिशत मामलों का निस्तारण दोनों पक्षों की सहमति से हो रहा है. इससे दोनों पक्षों का आपसी भाईचारा तो बरकरार हो ही रहा है साथ ही केंद्र के माध्यम से होने वाली सुनवाई से लोगों के खर्च भी बच रहे हैं. उपभोक्ता केंद्र पर तीन दिन सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को मामलों की सुनवाई होती है.
अधिकतर मामले बिल्डर और खरीदार केः केंद्र के मध्यस्थ डॉक्टर पीएन तिवारी ने बताया कि आयोग की तरफ से प्रतिदिन लगभग चार-पांच मामले मध्यस्थता के लिए आते हैं. इनमें से दो तीन मामलों का निस्तारण दोनों पक्षों की सहमति से हो जाता है. मध्यस्थता केंद्र में अधिकतर मामले बिल्डर और खरीदार के बीच विवाद को लेकर आ रहे हैं. इनमें भी अधिकतर निपटारा हो रहा है.
मध्यस्थता केंद्र में मामला आने पर एक महीने के अंदर तीन तारीखों में मामले का निस्तारण हो जाता है. एक बार उपभोक्ता आयोग के मध्यस्थता केंद्र में निपटारा होने के बाद उसे फिर हाईकोर्ट के अलावा अन्य कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है. हाईकोर्ट से भी अधिकतर मामलों में अपील खारिज कर दी जाती है."
ऐसे होता है मध्यस्थता केंद्र में निपटाराः आयोग में लंबित मामले में जब दोनों पक्ष मध्यस्थता केंद्र के माध्यम से मामले को सुलझाने के लिए सहमति देते हैं तो आयोग की ओर से मामले की फाइल मध्यस्थता केंद्र को भेज दी जाती है. इसके बाद पहली मीटिंग में दोनों पक्षों मध्यस्थता केंद्र पर परिचय होता है. इसके बाद दूसरी तारीख पर दोनों पक्ष अपनी अपनी सहमति लिखकर देते हैं. मध्यस्थता केंद्र द्वारा मामले के निस्तारण की रिपोर्ट तैयार की जाती है.
फिर रिपोर्ट आयोग के चेयरमैन को भेजी जाती है. चेयरमैन द्वारा रिपोर्ट साइन होने के बाद मामले का निस्तारण हो जाता है. डॉक्टर तिवारी ने बताया कि "अप्रैल में राज्य उपभोक्ता आयोग की स्थापना के बाद से अभी तक 30 से ज्यादा मामलों का निस्तारण हो चुका है."
उन्होंने बताया कि बुधवार को पार्श्वनाथ बिल्डर और बीपीटीपी बिल्डर के दो मामलों में भी सुनवाई हुई. लेकिन, दोनों में एक पक्ष के उपस्थित न हो पाने की वजह से दोनों मामलों में अगली तारीख लग गई.
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