नई दिल्लीः शिया जामा मस्जिद कश्मीरी गेट के इमाम मौलाना मोहसिन तकवी ने कहा कि यौमे-ए-आशूरा हजरत इमाम हुसैन की शहादत पर मनाई जानी वाली एक रस्म है. उन्होंने कहा कि ये रंजो गम और अफसोस का महीना है, जिसमें मजलिसें होती हैं. मर्सिया, नोहा और सलाम पढ़ा जाता है. इसके अलावा जुलूस निकाले जाते हैं.
मौलाना मोहसिन ने कहा कि इनमें कुछ शबीह बरामद की जाती है. जैसे शबीह ताबूत, शबीह जुल्जिन्ह और ताजिया शामिल होते हैं. इसके अलावा भी बहुत सारी रस्में होती हैं, जिनकी पाबंदी आज भारत का कल्चर बन चुकी है. मौलाना मोहसिन ने कहा कि कोरोना की वजह से कुछ पाबंदियां लगी हैं, जिसकी वजह से इस साल जुलूस नहीं निकाले जाएंगे.
उन्होंने कहा कि यौमे-ए-आशूरा पर मातमी जुलूस निकालना ठीक नही है. लेकिन स्थानीय इमामबड़ों में मजलिसें और शबीह ताबूत आदि निकाला जाए, तो कुछ हर्ज नहीं है. लेकिन इसमें इस बात का ध्यान रहे कि भीड़ जमा ना हो.
मौलाना मोहसिन ने कहा कि हमने इस बात का पहले ही सर्मथन किया था कि आशूरा पूरे जोशो-खरोश के साथ मनानी है. लेकिन इस बात का ध्यान रखना है कि खुद की और दूसरों की जानों की सुरक्षा का ध्यान रखा जाए. हमने देखा है कि भीड़ जमा ना हो इसके लिए कदम उठाए गए हैं और इसी तरह हम आशूरा पर भी एहतियात बरतेंगे.