नई दिल्लीः गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव (Upcoming Assembly Elections in Gujarat) के लिए अभी तारीख का ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन चुनावी सरगर्मी पिछले कुछ महीनों से तेज है. बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गुजरात दौरे पर वहां एक एक्सीलेंस स्कूल का उद्घाटन किया और क्लासरूम में बच्चों के साथ बैठ बातचीत की. यूं तो पीएम के दौरे की चर्चा खूब होती है, लेकिन उनके क्लासरूम में जाने पर सबसे अधिक प्रसन्नता दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जताई. यहां तक कि दिल्ली स्थित अपने निवास पर आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में भी केजरीवाल ने इसे बयां किया और प्रधानमंत्री के ऐसे स्कूल का उद्घाटन और क्लासरूम जाने का श्रेय अपनी आम आदमी पार्टी के नाम किया.
उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी ने सारी पार्टियों और नेताओं को शिक्षा पर बात करने के लिए मजबूर किया है. 75 साल बाद ही सही सरकारी स्कूलों की हालत और शिक्षा आज राजनीति की मुख्य चर्चा में है. यह आम आदमी पार्टी की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है.
उन्होंने कहा कि 27 साल में भाजपा गुजरात के सरकारी स्कूल ठीक नहीं कर पाई, जबकि 'आप' की सरकार ने दिल्ली में मात्र पांच साल में सरकारी स्कूलों को शानदार बना दिया. पूरे देश में 10 लाख सरकारी स्कूल हैं. इन सारे सरकारी स्कूलों को मात्र 5 साल में ठीक किया जा सकता है. उन्होंने पीएम से निवेदन किया कि हमें स्कूल ठीक करने आता है.आप हमारा उपयोग कीजिए और हम सब मिलकर देश के सारे स्कूलों को ठीक करते हैं.
दिल्ली के शिक्षा मॉडल (Education Model of Delhi) की बातें करते हुए आम आदमी पार्टी की सरकार और नेता थकते नहीं, उनके अनुसार दिल्ली के शिक्षा मॉडल की चर्चा दुनिया भर में हो रही है, तो क्या है यह मॉडल पढ़िए इस रिपोर्ट में.
क्या है दिल्ली का शिक्षा मॉडल? दिल्ली समेत देश में वर्षों तक दो प्रकार के शिक्षा मॉडल ही प्रयोग में रहे हैं, पहला कुलीन वर्ग का शिक्षा मॉडल और दूसरा आम लोगों के लिए का शिक्षा मॉडल. लेकिन वर्ष 2015 में जब पूर्ण बहुमत के साथ दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी तो उसके बाद उक्त दो शिक्षा मॉडल के बीच के अंतर को कम करने का प्रयास किया गया.
फरवरी 2015 में दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 67 सीटें जीतकर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी सरकार ने अपने पहले बजट में ही कुल बजट का 25 फीसद खर्च शिक्षा क्षेत्र में खर्च करने का ऐलान किया और दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए तब से लेकर अब तक संसाधनों की कोई कमी नहीं होने दी. दिल्ली में शिक्षा के एक ऐसे मॉडल का विकास किया गया है जो मुख्यतः पांच प्रमुख घटकों पर आधारित हैः
1. स्कूलों के बुनियादी ढांचे में सुधारः दिल्ली के शिक्षा मॉडल को बेहतर बनाने के लिए शुरुआत दिल्ली की नामी-गिरामी निजी स्कूलों की तर्ज पर मौजूदा सरकारी स्कूलों की बिल्डिंग और क्लासरूम को तैयार करने से हुई. दिल्ली सरकार मानती है कि बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे स्कूल न केवल प्रशासन और सरकार की उदासीनता को दर्शाते हैं, बल्कि इनसे पढ़ने एवं पढ़ाने को लेकर छात्रों तथा शिक्षकों के उत्साह में भी कमी आती है.
इस समस्या से निपटने के लिये दिल्ली सरकार ने स्मार्ट बोर्ड, स्टाफ रूम, ऑडिटोरियम, प्रयोगशाला और पुस्तकालय जैसी आधुनिक सुविधाएं प्रदान कीं. इसके साथ ही दिल्ली के अधिकांश स्कूलों में आधुनिक सुविधाओं से लैस नई क्लासरूम का निर्माण किया गया. आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली सरकार ने वर्ष 2017-18 में दिल्ली के स्कूलों में कुल 10 हज़ार नए क्लासरूम का निर्माण कराया. इसके अलावा केजरीवाल सरकार ने प्रिंसिपल और शिक्षकों से स्कूलों की स्वच्छता, रख-रखाव और मरम्मत आदि के बोझ को कम करने के लिये सभी स्कूलों में एक प्रबंधक की नियुक्ति की है.
2. प्रिंसिपल और शिक्षकों को ट्रेनिंगः दिल्ली के शिक्षा मॉडल को दुरुस्त करने के लिए सरकार ने शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था की. दिल्ली के सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों को कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी और आईआईएम अहमदाबाद जैसे संस्थानों में कार्यरत विद्वानों से सीखने का अवसर प्रदान किया गया.
वर्ष 2016 में प्रिंसिपल नेतृत्व विकास कार्यक्रम की शुरुआत की गई. इस कार्यक्रम के तहत 10 प्रिंसिपल का एक समूह प्रत्येक माह में एक बार स्कूल में नेतृत्त्व संबंधी चुनौतियों पर चर्चा करते हैं और संयुक्त स्तर पर उनसे निपटने के लिये उपायों की तलाश करते हैं.
3. अनुशासनहीनता को दूर करनाः स्कूल प्रशासन को जवाबदेह बनाना गया. दिल्ली के सरकारी स्कूल मुख्य रूप से अपनी अनुशासनहीनता के लिये काफी मशहूर थे. इस चुनौती से निपटने के लिये दिल्ली सरकार ने त्रि-स्तरीय निगरानी एवं निरीक्षण तंत्र स्थापित किया. जिसमें शिक्षा मंत्री ने स्वयं स्कूल का निरीक्षण किया.
इसके अलावा शिक्षा निदेशालय के जिला अधिकारियों ने अपने जिलों के अंतर्गत आने वाले स्कूलों के प्रबंधन की निगरानी और ट्रैकिंग भी की. अंतिम और सबसे महत्त्वपूर्ण स्तर पर स्कूल प्रबंधन समितियों (SMC) का पुनर्गठन किया गया. मौजूदा समय में सभी SMC का वार्षिक बजट लगभग 5-7 लाख रुपए है.
4. क्या पुराने पाठ्यक्रम में भी किया गया सुधारः दिल्ली के शिक्षा निदेशालय के वर्ष 2016 के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 9वीं कक्षा में असफलता दर 50 प्रतिशत से भी अधिक थी. आधारभूत कौशल के अभाव को सर्वसम्मति से इसका मुख्य कारण स्वीकार किया गया. नियमित शिक्षण गतिविधियों की शुरुआत की गई, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी बच्चे पढ़ना, लिखना और बुनियादी गणित का कौशल सीखें.
इसी प्रकार नर्सरी से कक्षा 8 तक के बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य हेतु हैप्पीनेस पाठ्यक्रम की शुरुआत की गई. कक्षा 9 से 12 तक के बच्चों में समस्या-समाधान और विचार क्षमताओं को विकसित करने के लिये उद्यमशीलता पाठ्यक्रम की शुरुआत की गई है.
5. निजी स्कूलों के लिए सरकार ने क्या किया: शिक्षा निदेशालय के आदेशों को पालन करने में पहले निजी स्कूल वाले मनमानी करते थे, लेकिन सरकार द्वारा लिए गए कड़े फैसलों के बदौलत अब मनमानी खत्म हो गई. यहां तक स्कूलों की फीस में स्थिरता है. पहले अक्सर यह देखा जाता था कि दिल्ली के सभी निजी स्कूल वार्षिक आधार पर अपनी फीस में 8 से 15 फीसद की वृद्धि करते थे.
दिल्ली सरकार ने सभी निजी विद्यालयों के लिये यह अनिवार्य किया कि वे फीस प्रस्ताव को लागू करने से पूर्व किसी भी एक अधिकृत चार्टर्ड एकाउंटेंट (CA) से उसकी जांच कराएंगे. सरकार के इस फैसले के बाद निजी स्कूल वाले फीस बढ़ाने से पहले सौ दफा विचार करने को मजबूर हो गए.
आगे की राहः पहले चरण में शिक्षा के आधार को निर्मित करना था, लेकिन शिक्षा मॉडल के दूसरे चरण में सरकार का उद्देश्य शिक्षा को आधार को रूप में विकसित करना है. साथ ही सरकार ने दिल्ली के छात्रों के मध्य समीक्षात्मक सोच, समस्या समाधान और ज्ञान के अनुप्रयोग को प्रोत्साहित करने के लिए दिल्ली शिक्षा बोर्ड के गठन पर भी विचार किया जा रहा है.
सरकार ने शिक्षा को अपने प्राथमिक एजेंडे में शामिल कर लिया है, इसलिये आम जनता की सरकार से स्वाभाविक अपेक्षा यह सुनिश्चित करना है कि राज्य के सभी बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और समान अवसर प्राप्त कर सकें.
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गत वर्ष जनवरी में नीति आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में दिल्ली के सरकारी स्कूलों की तारीफ की है. आयोग ने दिल्ली के सरकारी शिक्षण संस्थानों में आए बदलाव को सराहना करते हुए यहां के स्कूलों को नेशनल अचीवमेंट सर्वे में सबसे ज्यादा अंक दिए हैं.
इस सर्वे में दिल्ली के सरकारी स्कूलों को 44.73 अंक मिले हैं, जोकि देश में किसी भी राज्य के द्वारा प्राप्त किया जाने वाला सर्वाधिक नंबर है. आयोग द्वारा तैयार इंडिया इनोवेशन इंडेक्स 2020 के अनुसार अन्य राज्यों ने औसत एनएएस स्कोर 35.66 हासिल किए हैं.