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दिल्ली हाईकोर्ट ने बाल भिक्षावृत्ति पर सरकार और डीसीपीसीआर से मांगी रिपोर्ट

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Published : Aug 2, 2023, 6:22 PM IST

दिल्ली सरकार और डीसीपीसीआर को दिल्ली हाईकोर्ट ने उस याचिका पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है, जिसमें बाल भिक्षावृत्ति को खत्म करने के लिए जरूरी निर्देश देने की मांग की गई थी. हाईकोर्ट ने रिपोर्ट दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है.

Delhi High Court
Delhi High Court

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को दिल्ली सरकार और दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) को राजधानी और इसके आसपास में बाल भिक्षावृत्ति संबंधित समस्याओं पर अपनी-अपनी स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है. मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने कहा कि 10 मई, 2023 के आदेश का अनुपालन नहीं किया गया है.

कोर्ट ने कहा कि डीसीपीसीआर और दिल्ली सरकार के वकील को इस मामले में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया जाता है. कोर्ट ने आदेश दिया कि मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद छह सितंबर को होगी. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अजय गौतम ने अपनी याचिका में उल्लेख किए गए बाल भिक्षावृत्ति वाले स्थानों की सूची की ओर कोर्ट का ध्यान दिलाते हुए कहा कि इन स्थानों का दौरा करें तो वही स्थिति पाएंगे और जमीनी हकीकत में अभी तक कोई बदलाव नहीं हुआ है. उन्होंने दस्तावेज के रूप में स्थानों की तस्वीरें भी कोर्ट में दाखिल की.

कोर्ट ने लगाई थी फटकार: दिसंबर 2022 में मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने याचिका में स्थिति रिपोर्ट रिकॉर्ड पर नहीं लाने के लिए दिल्ली सरकार को फटकार लगाई थी. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने भी कहा था था कि कार्यवाही में देरी करने के लिए सरकार या तो जवाब दाखिल नहीं करती है या प्रतिवादियों को जवाब की एक प्रति प्रदान नहीं करती है या त्रुटिपूर्ण फाइल दाखिल करती है.

पीठ गौतम द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें यह मुद्दा उठाया गया था कि क्या राज्य बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 13 (ई) और (एफ) में निहित अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए बाध्य है? याचिका में दिल्ली पुलिस को उन माफियाओं व गिरोहों की पहचान करने और उन्हें गिरफ्तार करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है, जो यौन शोषण के संगठित अपराध और महिलाओं, छोटी बच्चियों, किशोर लड़कियों और छोटे बच्चों को भीख मांगने और अन्य संबंधित अपराधों में धकेलने या इस्तेमाल करने के पीछे हैं.

यह भी पढ़ें-Sidhu Moosewala Murder Case: मास्टरमाइंड सचिन बिश्नोई दिल्ली पुलिस के 10 दिन की रिमांड पर, होंगे कई खुलासे

हर जगह भिखारी: गौतम ने तब पीठ को सूचित किया था कि दिल्ली में लगभग हर जगह बाल भिखारी दिखाई देते हैं. ट्रैफिक सिग्नल, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, धार्मिक स्थानों, कॉलेजों और बाजारों में इनका दिखना आम बात है. उन्होंने याचिका में यह आरोप लगाया गया था कि शहर के लगभग हर हिस्से में भिखारियों की मौजूदगी के बावजूद, जिस विभाग पर इस समस्या को रोकने की जिम्मेदारी है, वह कोई उपचारात्मक कदम उठाने में विफल रहा है. इसके अलावा यह भी कहा गया था कि हर कोई जानता है कि बच्चों द्वारा भीख मांगने की इस समस्या के पीछे माफिया सक्रिय हैं. वास्तव में वे भीख मांगने के लिए मासूम बच्चों का अपहरण करते हैं और उन्हें जबरदस्ती प्रताड़ित करके मांगने के लिए प्रशिक्षित करते हैं.

यह भी पढ़ें-Sharjeel Imam: गवाही के लिए कोर्ट में पेश नहीं हुए एफएसएल अधिकारी, कोर्ट ने जताई नाराजगी

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को दिल्ली सरकार और दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) को राजधानी और इसके आसपास में बाल भिक्षावृत्ति संबंधित समस्याओं पर अपनी-अपनी स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है. मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने कहा कि 10 मई, 2023 के आदेश का अनुपालन नहीं किया गया है.

कोर्ट ने कहा कि डीसीपीसीआर और दिल्ली सरकार के वकील को इस मामले में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया जाता है. कोर्ट ने आदेश दिया कि मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद छह सितंबर को होगी. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अजय गौतम ने अपनी याचिका में उल्लेख किए गए बाल भिक्षावृत्ति वाले स्थानों की सूची की ओर कोर्ट का ध्यान दिलाते हुए कहा कि इन स्थानों का दौरा करें तो वही स्थिति पाएंगे और जमीनी हकीकत में अभी तक कोई बदलाव नहीं हुआ है. उन्होंने दस्तावेज के रूप में स्थानों की तस्वीरें भी कोर्ट में दाखिल की.

कोर्ट ने लगाई थी फटकार: दिसंबर 2022 में मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने याचिका में स्थिति रिपोर्ट रिकॉर्ड पर नहीं लाने के लिए दिल्ली सरकार को फटकार लगाई थी. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने भी कहा था था कि कार्यवाही में देरी करने के लिए सरकार या तो जवाब दाखिल नहीं करती है या प्रतिवादियों को जवाब की एक प्रति प्रदान नहीं करती है या त्रुटिपूर्ण फाइल दाखिल करती है.

पीठ गौतम द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें यह मुद्दा उठाया गया था कि क्या राज्य बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 13 (ई) और (एफ) में निहित अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए बाध्य है? याचिका में दिल्ली पुलिस को उन माफियाओं व गिरोहों की पहचान करने और उन्हें गिरफ्तार करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है, जो यौन शोषण के संगठित अपराध और महिलाओं, छोटी बच्चियों, किशोर लड़कियों और छोटे बच्चों को भीख मांगने और अन्य संबंधित अपराधों में धकेलने या इस्तेमाल करने के पीछे हैं.

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हर जगह भिखारी: गौतम ने तब पीठ को सूचित किया था कि दिल्ली में लगभग हर जगह बाल भिखारी दिखाई देते हैं. ट्रैफिक सिग्नल, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, धार्मिक स्थानों, कॉलेजों और बाजारों में इनका दिखना आम बात है. उन्होंने याचिका में यह आरोप लगाया गया था कि शहर के लगभग हर हिस्से में भिखारियों की मौजूदगी के बावजूद, जिस विभाग पर इस समस्या को रोकने की जिम्मेदारी है, वह कोई उपचारात्मक कदम उठाने में विफल रहा है. इसके अलावा यह भी कहा गया था कि हर कोई जानता है कि बच्चों द्वारा भीख मांगने की इस समस्या के पीछे माफिया सक्रिय हैं. वास्तव में वे भीख मांगने के लिए मासूम बच्चों का अपहरण करते हैं और उन्हें जबरदस्ती प्रताड़ित करके मांगने के लिए प्रशिक्षित करते हैं.

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