नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने एम्स अस्पताल को निर्देश दिया कि वो नाइट शेल्टर में ठहरने वालों से चार्ज वसूलने के फैसले पर दोबारा विचार करें. जस्टिस विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली बेंच ने एम्स को निर्देश दिया कि वो नाइट शेल्टर में ठहरने के लिए दस्तावेज देने और और मरीजों को ठहरने के दिनों की संख्या सीमित करने के आदेश पर भी दोबारा विचार करें.
जिनके पास पैसे नहीं होते वे नाइट शेल्टर में ठहरते हैं
याचिका करण सेठ ने दायर किया था. याचिकाकर्ता की ओर से वकील दर्पण वाधवा और वैभव प्रताप सिंह ने कहा कि एम्स में इलाज के लिए आनेवाले सैकड़ों मरीज और उनके तिमारदार आते हैं. उन्होंने कोर्ट से कहा कि नाइट शेल्टर में ठहरने के लिए एम्स की ओर से जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है वो न्यायसंगत नहीं है. याचिका में कहा गया है कि नाइट शेल्टर में वे लोग ठहरते हैं जिन्हें दूसरे जगह रहने के लिए कोई पैसे नहीं होते हैं. अगर उन्हें नाइट शेल्टर नहीं मिलता है तो वे फुटपाथ पर रहते हैं.
नाइट शेल्टर और विश्राम सदन में रहने की शर्तें एक जैसी
सुनवाई के दौरान एम्स ने कहा कि नाइट शेल्टर में रहने के लिए भी वही शर्तें होती हैं जो विश्राम सदन में रहने के लिए होती हैं. एम्स के मुताबिक पहले किसी मरीज और उसके तिमारदार को सात दिनों तक रहने की इजाजत दी जाती है. अगर मरीज का इलाज करने वाला डॉक्टर उसके इलाज के लिए और रुकने की सलाह देता है तब संबंधित मरीज को भी आगे रहने की इजाजत दी जाती है.
एम्स से स्टेटर रिपोर्ट मांगी
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि नाइट शेल्टर का संचालन दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड करती है, जबकि विश्राम सदन का संचालन एम्स करता है. कोर्ट को जब ये बताया गया कि नाइट शेल्टर की स्थिति काफी खराब है, वहां सफाई और पेयजल का घोर अभाव है. नाइट शेल्टर में न तो खाना बनाने की सुविधा है और न ही नाइट शेल्टर में आनेवाले लोगों पर नजर रखने का कोई मेकानिज्म. तब कोर्ट ने कहा कि नाइट शेल्टर का संचालन भी एम्स को अपने हाथों में ले लेना चाहिए ताकि उनकी दशा भी सुधर सके. कोर्ट ने इस संबंध में एम्स को इस संबंध में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया. मामले की अगली सुनवाई 7 जुलाई को होगी.