नई दिल्ली: एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता और भारतीय मुक्केबाजी को नई दिशा देने वाले डिंको सिंह का लिवर के कैंसर से लंबे समय तक जूझने के बाद गुरुवार को निधन हो गया.
वो 42 साल के थे और 2017 से इस बीमारी से जूझ रहे थे. उनके परिवार में पत्नी बाबइ नगानगोम, एक बेटा और एक बेटी है.
ये बैंथमवेट (54 किग्रा भार वर्ग) मुक्केबाज कैंसर से पीड़ित होने के अलावा पिछले साल कोविड—19 से भी संक्रमित हो गया था और वो पीलिया से भी पीड़ित रहे थे.
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Shri Dingko Singh was a sporting superstar, an outstanding boxer who earned several laurels and also contributed to furthering the popularity of boxing. Saddened by his passing away. Condolences to his family and admirers. Om Shanti.
— Narendra Modi (@narendramodi) June 10, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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— Narendra Modi (@narendramodi) June 10, 2021
डिंको सिंह के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा, "श्री डिंग्को सिंह एक खेल सुपरस्टार और एक उत्कृष्ट मुक्केबाज थे. जिन्होंने कई ख्याति अर्जित की और मुक्केबाजी की लोकप्रियता को आगे बढ़ाने में भी योगदान दिया. उनके निधन से दुखी हूं. उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदना. ओम शांति."
ओलंपिक की तैयारियों में लगे मुक्केबाज विकास कृष्णन ने कहा, ''हमने एक दिग्गज खो दिया.''
खेल मंत्री किरन रिजिजू ने ट्वीट किया, ''मैं श्री डिंको सिंह के निधन से बहुत दुखी हूं. वो भारत के सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाजों में से एक थे. डिंको के 1998 एशियाई खेलों में जीते गये स्वर्ण पदक ने भारत में मुक्केबाजी क्रांति को जन्म दिया. मैं शोक संतप्त परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे.''
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I’m deeply saddened by the demise of Shri Dingko Singh. One of the finest boxers India has ever produced, Dinko's gold medal at 1998 Bangkok Asian Games sparked the Boxing chain reaction in India. I extend my sincere condolences to the bereaved family. RIP Dinko🙏 pic.twitter.com/MCcuMbZOHM
— Kiren Rijiju (@KirenRijiju) June 10, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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मणिपुर के इस सुपरस्टार ने 10 वर्ष की उम्र में अपना पहला राष्ट्रीय खिताब (सब जूनियर) जीता था. वो भारतीय मुक्केबाजी के पहले स्टार मुक्केबाज थे जिनके एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक से छह बार की विश्व चैंपियन एम सी मैरीकॉम सहित कई इस खेल से जुड़ने के लिए प्रेरित हुए थे.
मैरीकॉम ने पीटीआई से कहा, ''वो रॉकस्टार थे, एक दिग्गज थे, एक योद्धा थे. मुझे याद है कि मैं मणिपुर में उनका मुकाबला देखने के लिए कतार में खड़ी रहती थी. उन्होंने मुझे प्रेरित किया. वो मेरे नायक थे. ये बहुत बड़ी क्षति है. वो बहुत जल्दी चले गए. ''
डिंको को एक निडर मुक्केबाज माना जाता था. उन्होंने बैकाक एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक की अपनी राह में दो ओलंपिक पदक विजेताओं थाईलैंड के सोनताया वांगप्राटेस और उज्बेकिस्तान के तैमूर तुलयाकोव को हराया था जो उस समय किसी भारतीय मुक्केबाज के लिये बड़ी उपलब्धि थी.
दिलचस्प बात ये है कि उन्हें खेलों के लिये शुरुआती टीम में नहीं चुना गया था और विरोध दर्ज करने के बाद उन्हें टीम में लिया गया था.
भारत के पहले ओलंपिक पदक विजेता मुक्केबाज विजेंदर सिंह ने ट्वीट किया, ''इस क्षति पर मेरी हार्दिक संवेदना. उनका जीवन और संघर्ष हमेशा भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत रहेगा. मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि शोक संतप्त परिवार को दुख और शोक की इस घड़ी से उबरने के लिये शक्ति प्रदान करे.''
डिंको ने 1998 में एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता था और उन्हें उसी साल अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. खेलों में उनके योगदान के लिए उन्हें 2013 में पदम श्री से सम्मानित किया गया था.
भारतीय नौसेना में काम करने वाले डिंको मुक्केबाजी से संन्यास लेने के बाद कोच बन गए थे. वो भारतीय खेल प्राधिकरण के इम्फाल केंद्र में कोचिंग दिया करते थे लेकिन बीमारी के कारण बाद में अपने घर तक ही सीमित हो गए थे.
उन्हें पिछले साल कैंसर के लिए जरूरी रेडिएशन थेरेपी करने के लिये दिल्ली लाया गया था. पीलिया होने के कारण उनकी थेरेपी नहीं हो पाई थी. उन्हें वापस इंफाल भेज दिया गया लेकिन घर लौटने पर कोविड—19 से संक्रमित हो गए. जिसके कारण उन्हें एक महीना अस्पताल में बिताना पड़ा था.
बीमारी से उबरने के बाद उन्होंने कहा, ''ये आसान नहीं था लेकिन मैंने स्वयं से कहा, लड़ना है तो लड़ना है. मैं हार मानने के लिये तैयार नहीं था. किसी को भी हार नहीं माननी चाहिए.''