लखनऊ: सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की बहुप्रतीक्षित फिल्म 'गुलाबो सिताबो' की रिलीज में मुश्किल से तीन दिन बचे हैं, हालांकि ऐसे में लखनऊवासियों में मायूसी का माहौल है. इसका कारण यह है कि यह फिल्म 12 जून को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो रही है और इसके थियेटर में रिलीज होने की संभावना नहीं है.
ऐसे में बच्चन के प्रशंसकों का निराश होना स्वाभाविक है, खास कर इसलिए क्योंकि गुलाबो सिताबो की शूटिंग लखनऊ में हुई है.
बच्चन के एक प्रशंसक और सॉफ्टवेयर इंजीनियर राजू शर्मा ने कहा, "यह संभवत: पहली फिल्म है जिसे अमिताभ बच्चन ने लखनऊ में शूट किया है और हम बड़े पर्दे पर इसे देखने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. बच्चन जी कि फिल्म देखना वह भी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर, यह स्वीकार्य नहीं है."
उन्होंने कहा कि लखनऊवासी करीब एक साल से 'गुलाबो सिताबो' का इंतजार कर रहे थे. फिल्म की शूटिंग पिछले साल जून में लखनऊ में हुई थी.
उन्होंने आगे कहा, "हम फिल्म देखने के लिए सिनेमा हॉल के खुलने का एक-दो महीने और इंतजार कर सकते थे, लेकिन हम निश्चित रूप से मेगास्टार को छोटे पर्दे पर नहीं देखना चाहेंगे."
कई स्थानीय कलाकार, जो लखनऊ में शूटिंग के दौरान फिल्म का हिस्सा थे, वे भी उतने ही निराश हैं.
एक कलाकार ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, "मैंने इतना बचत कर लिया था, ताकि मैं अपने परिवार और दोस्तों के लिए एक पूरा शो बुक कर सकूं. मैं चाहता था कि वे मुझे श्री बच्चन के साथ स्क्रीन स्पेस शेयर करता देखें, लेकिन डिजिटल रिलीज ने मेरी आशाओं पर पानी फेर दिया. हम इस पर सवाल नहीं उठा सकते क्योंकि यह फिल्म निर्माता का निर्णय है. यदि अन्य फिल्में सिनेमाघरों को फिर से खुलने का इंतजार कर सकती हैं, तो निश्चित रूप से 'गुलाबो सिताबो' भी इंतजार कर सकती है."
'गुलाबो सिताबो' की डिजिटल रिलीज से थिएटर मालिक भी निराश हैं.
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'गुलाबो सिताबो' एक स्लाइस ऑफ लाइफ फिल्म बताई जा रही है. लेकिन इस फिल्म के उससे कहीं ज़्यादा होने की उम्मीद है क्योंकि इसे शूजीत सरकार ने बनाया है. फिल्म में अमिताभ बच्चन खालिस लखनवी मुस्लिम बुजुर्ग बने हैं. आयुष्मान का किरदार उसी बुजुर्ग के घर में किराए पर रहता है. दोनों की आपस में बिलकुल नहीं बनती. फिल्म का नाम यूपी के लोकल कठपुतली किरदारों 'गुलाबो और सिताबो' से प्रेरित है. इन दोनों प्रसिद्ध किरदारों का रेफरेंस कई लोक कथाओं और गीतों में आता है.
इनपुट-आईएएनएस