मुंबई : अगर कोई इंसान अपने दिल में कुछ भी करने की ठान ले तो दुनिया में ऐसा क्या है, जो हासिल नहीं किया जा सकता. ऐसी ही एक मिसाल हैं मयूरी कांगो. 90 के दशक में अपनी मासूमियत से सबको दिवाना बनाने वाली एक ऐसी युवा अभिनेत्री और एक कामयाब मेनेजिंग डायरेक्टर, जिन्होंने हर मुश्किल का सामाना कर दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई. मयूरी की नीली आंखे और चेहरे की मासूमियत को देख सभी उनके दिवाने हो जाते हैं. बात चाहे सिनेमा की हो या किसी कंपनी में एक डायरेक्टर की मयूरी हर काम को दिल से करती हैं. एक अभिनेत्री से मेनेजिंग डायरेक्टर तक का सफर काफी ही दिलचस्प है...
90 दशक की फिल्म 'पापा कहते है' से मयूरी ने दर्शकों के दिलों में एक खास जगह बनाई थी. हालांकि फिल्म बुरी तरह से फ्लॉप साबित हुई, लेकिन मयूरी की चेहरे की मासूमियत ने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया. इसके बाद भी वह कई फिल्मों में नजर आईं, लेकिन मयूरी को सफलता हासिल नहीं हो पाई. उन्हें पिछली बार 17 साल पहले आई साउथ की फिल्म 'वामसी' में देखा गया था. इसके बाद से ही मयूरी को किसी भी फिल्म में देखे जाना तो दूर की बात वह किसी इवेंट शो या अवार्ड फंक्शन में भी नहीं दिखीं या यूं कहें उन्होंने फिल्मी दुनिया को छोड़ एक अलग ही संसार बसां लिया.
वैसे तो मयूरी को महेश भट्ट ने लॉन्च किया था. उन दिनों महेश भट्ट 'पापा कहते हैं' नाम से फिल्म बना रहे थे. उन्हें एक नए और मासूम से दिखने वाले चेहरे की तलाश थी और उनकी ये तलाश मयूरी कांगो के रूप में पूरी हुई. मयूरी को महेश भट्ट ने उनकी पहली फिल्म में देखा जो फ्लॉप रही, लेकिन इस फिल्म में महेश भट्ट को मयूरी की एक्टिंग इतनी पसंद आई कि कह उठे, 'बस, ये नीली आंखों वाली लड़की ही मेरी अगली फिल्म की लीड हीरोइन होगी.' फिर क्या फिल्म रिलीज हुई और सुपरहिट हो गई.
इस फिल्म ने मयूरी को टॉप की हीरोइनों में लाकर खड़ा कर दिया. ये डेब्यू इतना सुपरहिट रहा कि लोगों को लगा इंडस्ट्री की बाकी हीरोइनों को कड़ी टक्कर देने वाला मिल गया है. पहली फिल्म ने उन्हें रातोंरात स्टार तो बना दिया, लेकिन उन्हें वैसे रोल नहीं मिले जैसे वो चाहतीं थीं.
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फिर फिल्मों में छोटी-मोटी भूमिकाएं करके वो अपना गुजारा करने लगीं. मयूरी को लगा देर-सबेर अच्छे रोल और अच्छी फिल्में जरूर मिलेंगी, लेकिन ये इंतजार लंबा होता चला गया. इतना लंबा कि मयूरी को फिल्म इंडस्ट्री छोड़नी पड़ी. मयूरी की किस्मत इतनी खराब रही कि उनकी आधी फिल्में तो रिलीज ही नहीं हुईं.
मयूरी का मानना था कि कैमरे के सामने होना उनका सिर्फ एक "काम" था. अपने प्राइम में, मयूरी ने एक साक्षात्कार में कहा था कि वह कभी सुर्खियों में रहने के लिए मोहित नहीं हुईं. उनके सपने शिक्षा और कॉर्पोरेट क्षेत्र में आने या अपना खुद का व्यवसाय चलाने का था.
मयूरी कंगो ने एक बार हिंदी सिनेमा में अपने अभिनय के बारे में कहा, "मुझे कभी भी सेलिब्रिटी वाली जिंदगी पसंद नहीं थी. मैं अब उस वक्त को याद भी नहीं करती. मैंने जो भी फिल्में की वह बेहद खास थी, लेकिन मैं अपनी इस जिंदगी में ज्यादा खुश हूं." चूंकि उन्होंने खुद को बड़े या छोटे पर्दे पर देखने का सपना नहीं देखा था, इसलिए मयूरी जाहिर तौर पर अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर रही थी कि मौका मिलते ही फिल्म प्रोडक्शन के बैनरों के दरवाजे खटखटाए.
ये कहना गलत नहीं होगा कि किस्मत ने मयूरी के जीवन में एक बड़ी भूमिका निभाई है चाहे वह उनका करियर हो या आदित्य ढिल्लन के साथ उस रास्ते को पार करना, जिसके साथ उन्होंने 2003 में अपना शेष जीवन बिताने का फैसला किया.
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जी हां, 2003 में एनआरआई आदित्य ढिल्लन औरंगाबाद में शादी कर ली. मयूरी और आदित्य की पहली मुलाकात कॉमन फ्रेंड के जरिए एक पार्टी में हुई थी. इसके बाद उन्होंने फिल्में छोड़ पति के साथ अमेरिका शिफ्ट हो गईं, जो कि एक कठिन कदम कहना होगा. कहते है न भगवान के घर देर है अंधेर नहीं ठीक उसी तरह उनकी जिंदगी की एक नई शुरूआत हुई.
दरअसल, यहां जाकर उन्होंने मार्केटिंग और फाइनेंस में एमबीए किया. बाद में 2004 से 2012 तक उन्होंने अमेरिका के एक फर्म में एसोसिएट मीडिया मैनेजर के रूप में नई पारी शुरू की. 2011 में मयूरी अपने बेटे के जन्म के बाद भारत लौटीं, तो गूगल इंडिया में शामिल हो गईं. हालांकि मयूरी ने सिनेमा क्षेत्र को पूरी तरह से छोड़ दिया है. एक बार एक साक्षात्कारकर्ता ने मयूरी से पूछा कि वह क्या बनना चाहती है? उन्होंने कहा, "मैं खुश रहना चाहता हूं."
अभिनेत्री और मेनेजिंग डायरेक्टर जिंदगी के दो अलग पहलू, लेकिन दोनों को अच्छी तरह से संभाल एक अच्छी पत्नी और मां बन मयूरी एक अच्छी जिंदगी बिता रही है. मयूरी सिनेमा की उन अभिनेत्रियों में से है, जिन्होंने भले ही एक्टिंग को छोड़ दूसरी दुनिया बसां लिया हो. लेकिन उनके चेहरे की मासूमियत को देख लाखों लोग आज भी उनके दिवाने हैं.