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भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया कम लागत वाला टचलेस सेंसर, संक्रमण से बचने में करेगा मदद - भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया टचलेस सेंसर

वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक ऐसा सेंसर विकसित किया है जो स्क्रीन से 9 सेंटीमीटर की दूरी से ही हरकत होने का पता लगा सकता है. इस तकनीक का इस्तेमाल, एटीएम, वेंडिंग मशीन इत्यादि में किया जा सकेगा जहां टचस्क्रीन लगाना अनिवार्य है. वहीं डब्लूएचओ ने भी इसकी तारीफ की है.

India develops low cost touchless sensor
भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया टचलेस सेंसर
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Published : Mar 15, 2022, 12:03 PM IST

नई दिल्ली: भारतीय वैज्ञानिकों ने कम लागत वाले टच-कम-प्रॉक्सिमिटी सेंसर के निर्माण के लिए एक किफायती समाधान विकसित किया है जो कोविड-19 वायरस जैसे वायरस और रोगजनकों के प्रसार को रोकने में मदद करेगा. इससे दूषित सतहों को छूकर, लोगों को संक्रमित होने का खतरा कम हो सकेगा. यह जानकारी, विज्ञान विभाग ने सोमवार को दी. इस तकनीक को आमतौर पर टचलेस टच सेंसर के रूप में जाना जाता है. यह सेंसर इतना कुशल है कि यह स्क्रीन से 9 सेंटीमीटर की दूरी से ही हरकत होने का पता लगा सकता है. भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह अनूठी तकनीक, प्रिंटिंग तकनीक के माध्यम से प्रिंट की जा सकती है जो किसी चीज के संपर्क में आने से होने वाले वायरस के संक्रामण के प्रसार को रोकने में मदद कर सकता है.

तीन संस्थानों के वैज्ञानिकों ने मिलकर बनाया

इस तकनीक को सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज (CeNS), जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस एंड साइंटिफिक रिसर्च(JNCASR) के बेंगलुरु और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (स्वायत्त संस्थान) के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया है, जिन्होंने हाल ही में प्रिंटिंग एडेड पैटर्न वाले पारदर्शी इलेक्ट्रोड के उत्पादन के लिए एक अर्ध-स्वचालित उत्पादन संयंत्र भी स्थापित किया है.

इन इलेक्ट्रोड में उन्नत टचलेस स्क्रीन प्रौद्योगिकियों में उपयोग किए जाने की क्षमता है, जिन्हें टचलेस टच-कम-प्रॉक्सिमिटी सेंसर कहा जाता है. यह सफल शोध प्रोफेसर जीयू कुलकर्णी और उनके सहकर्मियों के नेतृत्व वाली वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किया गया है. इसे सीईएनएस(CeNS) में डीएसटी-नैनोमिशन द्वारा वित्त पोषित किया गया था और हाल ही में 'सामग्री पत्र' पत्रिका में प्रकाशित किया गया है.

सेंसर 9 सेमी . की दूरी से काम करता है

इस परियोजना पर काम कर रहे वैज्ञानिक डॉ आशुतोष के सिंह ने बताया कि, 'हमने एक टच सेंसर तैयार किया है जो डिवाइस से 9 सेंटीमीटर की दूरी से ही होवर टच को महसूस करता है. शोध के एक अन्य सह-लेखक डॉ इंद्रजीत मंडल का कहना है कि, 'टीम अन्य स्मार्ट इलेक्ट्रॉनिक अनुप्रयोगों के लिए उनकी व्यवहार्यता साबित करने के लिए हमारे पैटर्न वाले इलेक्ट्रोड का उपयोग करके कुछ अन्य प्रोटोटाइप भी बना रही है.' उन्होंने यह भी कहा कि, 'इस पैटर्न वाले इलेक्ट्रोड, इच्छुक उद्योगों, अनुसंधानों और विकास प्रयोगशालाओं को के अनुरोध के आधार पर उपलब्ध कराए जा सकते हैं, जिससे अन्य भी इनका अन्वेशण कर सकें.

touchless sensor
भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया टचलेस सेंसर

यह भी पढ़ें-अटल टिंकरिंग लैब से आत्मनिर्भर होगा भारत, बच्चे सीखेंगे नई तकनीक

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाथ धोने पर दिया जोर

डब्लूएचओ के अधिकारियों ने कहा कि कोरोनावायरस महामारी ने मानव जीवन शैली को महामारी को झेलने लायक प्रयासों को गति दी है. उन्होंने कहा कि यह तकनीक, वायरस फैलने के जोखिम को कम करने वाले रणनीतियों के लिए प्रेरित करेगी. इसमें सार्वजनिक स्थान जैसे स्वयं-सेवा कियोस्क, एटीएम और वेंडिंग मशीन शामिल हैं जिसपर टचस्क्रीन लगाना अनिवार्य है.

इससे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोविड -19 वायरस जैसे संक्रामक वायरस और बैक्टीरिया को मारने के लिए नियमित अंतराल पर साबुन से हाथ धोने या अल्कोहल आधारित सैनिटाइज़र का उपयोग करने पर जोर दिया था. कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान दूषित सतह को छूने से संक्रमण का डर बहुत अधिक था. इस दौरान कुछ लोग, कार्यालयों और हाउसिंग सोसाइटी में लिफ्ट का उपयोग करना बंद कर, सीढ़ीयों का उपयोग करने लगे थे. इसके साथ ही दुनियाभर लोग, अस्पताल, नर्सिंग होम, बैंक, कारखाने और हवाई अड्डे जैसे सार्वजनिक स्थानों पर हर सतह को साफ करने के लिए डिसिन्फेक्टेंट्स का उपयोग कर रहे थे, जहां दूषित सतह को छूने से वायरस के चपेट में आने का जोखिम अधिक माना जाता था.

नई दिल्ली: भारतीय वैज्ञानिकों ने कम लागत वाले टच-कम-प्रॉक्सिमिटी सेंसर के निर्माण के लिए एक किफायती समाधान विकसित किया है जो कोविड-19 वायरस जैसे वायरस और रोगजनकों के प्रसार को रोकने में मदद करेगा. इससे दूषित सतहों को छूकर, लोगों को संक्रमित होने का खतरा कम हो सकेगा. यह जानकारी, विज्ञान विभाग ने सोमवार को दी. इस तकनीक को आमतौर पर टचलेस टच सेंसर के रूप में जाना जाता है. यह सेंसर इतना कुशल है कि यह स्क्रीन से 9 सेंटीमीटर की दूरी से ही हरकत होने का पता लगा सकता है. भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह अनूठी तकनीक, प्रिंटिंग तकनीक के माध्यम से प्रिंट की जा सकती है जो किसी चीज के संपर्क में आने से होने वाले वायरस के संक्रामण के प्रसार को रोकने में मदद कर सकता है.

तीन संस्थानों के वैज्ञानिकों ने मिलकर बनाया

इस तकनीक को सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज (CeNS), जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस एंड साइंटिफिक रिसर्च(JNCASR) के बेंगलुरु और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (स्वायत्त संस्थान) के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया है, जिन्होंने हाल ही में प्रिंटिंग एडेड पैटर्न वाले पारदर्शी इलेक्ट्रोड के उत्पादन के लिए एक अर्ध-स्वचालित उत्पादन संयंत्र भी स्थापित किया है.

इन इलेक्ट्रोड में उन्नत टचलेस स्क्रीन प्रौद्योगिकियों में उपयोग किए जाने की क्षमता है, जिन्हें टचलेस टच-कम-प्रॉक्सिमिटी सेंसर कहा जाता है. यह सफल शोध प्रोफेसर जीयू कुलकर्णी और उनके सहकर्मियों के नेतृत्व वाली वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किया गया है. इसे सीईएनएस(CeNS) में डीएसटी-नैनोमिशन द्वारा वित्त पोषित किया गया था और हाल ही में 'सामग्री पत्र' पत्रिका में प्रकाशित किया गया है.

सेंसर 9 सेमी . की दूरी से काम करता है

इस परियोजना पर काम कर रहे वैज्ञानिक डॉ आशुतोष के सिंह ने बताया कि, 'हमने एक टच सेंसर तैयार किया है जो डिवाइस से 9 सेंटीमीटर की दूरी से ही होवर टच को महसूस करता है. शोध के एक अन्य सह-लेखक डॉ इंद्रजीत मंडल का कहना है कि, 'टीम अन्य स्मार्ट इलेक्ट्रॉनिक अनुप्रयोगों के लिए उनकी व्यवहार्यता साबित करने के लिए हमारे पैटर्न वाले इलेक्ट्रोड का उपयोग करके कुछ अन्य प्रोटोटाइप भी बना रही है.' उन्होंने यह भी कहा कि, 'इस पैटर्न वाले इलेक्ट्रोड, इच्छुक उद्योगों, अनुसंधानों और विकास प्रयोगशालाओं को के अनुरोध के आधार पर उपलब्ध कराए जा सकते हैं, जिससे अन्य भी इनका अन्वेशण कर सकें.

touchless sensor
भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया टचलेस सेंसर

यह भी पढ़ें-अटल टिंकरिंग लैब से आत्मनिर्भर होगा भारत, बच्चे सीखेंगे नई तकनीक

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाथ धोने पर दिया जोर

डब्लूएचओ के अधिकारियों ने कहा कि कोरोनावायरस महामारी ने मानव जीवन शैली को महामारी को झेलने लायक प्रयासों को गति दी है. उन्होंने कहा कि यह तकनीक, वायरस फैलने के जोखिम को कम करने वाले रणनीतियों के लिए प्रेरित करेगी. इसमें सार्वजनिक स्थान जैसे स्वयं-सेवा कियोस्क, एटीएम और वेंडिंग मशीन शामिल हैं जिसपर टचस्क्रीन लगाना अनिवार्य है.

इससे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोविड -19 वायरस जैसे संक्रामक वायरस और बैक्टीरिया को मारने के लिए नियमित अंतराल पर साबुन से हाथ धोने या अल्कोहल आधारित सैनिटाइज़र का उपयोग करने पर जोर दिया था. कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान दूषित सतह को छूने से संक्रमण का डर बहुत अधिक था. इस दौरान कुछ लोग, कार्यालयों और हाउसिंग सोसाइटी में लिफ्ट का उपयोग करना बंद कर, सीढ़ीयों का उपयोग करने लगे थे. इसके साथ ही दुनियाभर लोग, अस्पताल, नर्सिंग होम, बैंक, कारखाने और हवाई अड्डे जैसे सार्वजनिक स्थानों पर हर सतह को साफ करने के लिए डिसिन्फेक्टेंट्स का उपयोग कर रहे थे, जहां दूषित सतह को छूने से वायरस के चपेट में आने का जोखिम अधिक माना जाता था.

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