हैदराबाद : खालिस्तान टाइगर फोर्स के नेता और कुख्यात चरमपंथी हरदीप सिंह निज्जर की 18 जून को कनाडा में हत्या कर दी गई थी. 12 अगस्त को खालिस्तानियों ने कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में लक्ष्मी नारायण मंदिर पर हमला करते हुए कहा, 'हरदीप की हत्या के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए.' उन्होंने यह संदेश देने वाले पोस्टरों के साथ मंदिर में तोड़फोड़ की.
इसी महीने की 18 तारीख को कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने वहां की संसद में निज्जर की हत्या के लिए भारत को जिम्मेवार ठहराया. ट्रूडो ने कहा कि संभवतः किसी भारतीय एजेंट का हाथ हो सकता है. इसके बाद ट्रूडो ने संसद में ही नफरत फैलाने वाले खालिस्तानियों का समर्थन भी किया. जबकि हकीकत ये है कि निज्जर एक दर्जन से अधिक हत्या और आतंकवादी मामलों में वांछित भगोड़ा था.
निज्जर फर्जी पासपोर्ट पर कनाडा चला गया था. वह 2014 से इंटरपोल के रेड नोटिस पर था. भारत ने कनाडा को हरदीप सिंह निज्जर की अराजकता का पूरा विवरण देते हुए उसकी गिरफ्तारी की मांग की थी. भारत द्वारा स्पष्ट प्रमाण दिए जाने के बावजूद ट्रूडो प्रशासन ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की. उलटे उसे नागरिकता भी प्रदान कर दी.
निज्जर खुलेआम हथियार लेकर घूमता था. अब सवाल ये है कि एक आतंकी का समर्थन करना क्या किसी देश के लिए शर्म की बात है या नहीं, इसका जवाब क्या हो सकता है, आप भी जानते हैं. कनाडा प्रशासन हथियार देकर उसे उकसा रहे थे. यह तो और कुछ नहीं, बल्कि ट्रूडो की मूर्खता का प्रमाण है.
पूर्व अमेरिकी रक्षा अधिकारी माइकल रुबिन ने हाल ही में कहा था - कनाडाई प्रधानमंत्री ने आधारहीन आरोप लगाकर बड़ी गलती की है. ऐसा लगता है कि जस्टिन ट्रूडो सिख समुदाय से वोट मांग रहे हैं, खासकर नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता जगमीत सिंह के समर्थन से, जो अल्पमत सरकार में शक्ति संतुलन रखते हैं. इस प्रक्रिया में उन्होंने अपनी अनुचित टिप्पणियों से विवाद पैदा कर दिया.
भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा करने वाले आतंकवादी समूहों के लिए कनाडा का 'स्वर्ग' बनना कोई नई बात नहीं है. स्वघोषित 'खालिस्तान के काउंसलर जनरल' सुरजन सिंह गिल ने 1982 में कनाडा के वैंकूवर में एक समानांतर सरकारी 'स्टोर' खोला था. यहां से खालिस्तानियों को पासपोर्ट जारी किया जाता था.
तत्कालीन कनाडाई प्रधानमंत्री पियरे इलियट ट्रूडो (आज के प्रधानमंत्री जस्टिन के पिता) ने तलविंदर सिंह परमार के प्रत्यर्पण से इनकार कर दिया था, जिसने पंजाब में दो पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी और कनाडा भाग गया था. 1985 में एयर इंडिया के 'कनिष्क' विमान को उड़ाने वाले खालिस्तानियों ने तीन सौ से ज्यादा जिंदगियां तबाह कर दीं. जघन्य आतंकवादी कृत्य से जुड़े व्यक्तियों को शरण देने के कनाडा के इस फैसले से लंबे समय तक राजनयिक विवाद पैदा हुआ था.
बाद में यह बात सामने आई कि कनाडाई खुफिया एजेंसियों ने विमान पर आतंकी हमले की पूर्व सूचना को नजरअंदाज कर दिया था. कनाडा में इस समय कम से कम नौ भारत-विरोधी अलगाववादी समूह खुलेआम घूम रहे हैं. 2018 में जब जस्टिन ट्रूडो भारत आए थे तो पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने उनसे अमृतसर में मुलाकात की थी. ट्रूडो को कनाडा में छिपे नौ ए-श्रेणी के आतंकवादियों की सूची दी गई और उनके खिलाफ कार्रवाई करने को कहा गया.
कनाडाई सरकार इन चिंताओं के प्रति अनुत्तरदायी रही! प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान जस्टिन ट्रूडो से मुलाकात के दौरान उन्हें आगाह किया था कि कनाडा का भारत विरोधी ताकतों का अड्डा बनना भविष्य में देश के लिए आत्मघाती साबित होगा. जैसा कि स्वयं मोदी ने हाल ही में टिप्पणी की थी कि आतंकवाद की रोकथाम के लिए अंतरराष्ट्रीय कानूनी प्रावधान बनाना आवश्यक है.
वैश्विक सुरक्षा बनाए रखने के लिए ऐसे खतरों का मुकाबला करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और प्रयास आवश्यक हैं. तभी सीमाओं पर खून बहाने वाले आतंकवाद के दानव को ख़त्म करना संभव होगा!
(ईनाडु में प्रकाशित संपादकीय का अनुवादित संस्करण)