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Afghanistan News : तालिबान ने अफगानिस्तान के सिख, हिंदू अल्पसंख्यकों पर लगाए प्रतिबंध - Sikh Hindu Minorities

अफगानिस्तान में तालिबान ने सिख और हिंदू अल्पसंख्यकों पर प्रतिबंध लगा दिया है. वहीं अफगानिस्तान में हिंदू, सिख, बहाई, ईसाई, अहमदी और शिया मुसलमानों सहित धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति तालिबान के शासन में तेजी से खराब हो गई है.

Afghanistan News
अफगानिस्तान न्यूज
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 26, 2023, 3:00 PM IST

नई दिल्ली : अफगानिस्तान में 2021 में तालिबान के हाथों में सत्ता आने के साथ ही चिंताएं थीं कि अफगानिस्तान के कुछ छोटे गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक गायब हो सकते हैं. एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि दो साल बाद, ये आशंकाएं सही साबित होती जा रही हैं. आरएफई/आरएल की रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान का अंतिम यहूदी तालिबान के कब्जे के तुरंत बाद देश से भाग गया, माना जाता है कि सिख और हिंदू समुदाय केवल मुट्ठी भर परिवारों तक ही सीमित हो गए हैं.

आरएफई/आरएल की रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान के शासन में सिखों और हिंदुओं को गंभीर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है. सार्वजनिक रूप से उनके धार्मिक कार्यक्रमों को मनाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिससे कई लोगों के पास वहां से भागने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है. राजधानी काबुल में बचे आखिरी सिखों में से एक फ़री कौर ने कहा, 'मैं कहीं भी आज़ादी से नहीं जा सकती.'

उन्होंने तालिबान के आदेश के संदर्भ में कहा, 'जब मैं बाहर जाती हूं, तो मुझे मुस्लिम की तरह कपड़े पहनने के लिए मजबूर किया जाता है ताकि मुझे सिख के रूप में पहचाना न जा सके.' कौर के पिता 2018 में पूर्वी शहर जलालाबाद में सिखों और हिंदुओं को निशाना बनाकर किए गए आत्मघाती हमले में मारे गए थे. कथित तौर पर हमले के कारण कौर की मां और बहनों सहित 1,500 सिखों को देश छोड़ना पड़ा.

आरएफई/आरएल रिपोर्ट में कहा गया है कि लेकिन कौर ने वहां से जाने से इनकार कर दिया और वो काबुल में रुक गयी. मार्च 2020 में, जब इस्लामिक स्टेट-खुरासान (आईएस-के) के आतंकवादियों ने काबुल में एक सिख मंदिर पर हमला किया, तो 25 लोगों की मौत हो गई. हमले के बाद, अल्पसंख्यक समुदाय के शेष अधिकांश सदस्यों ने अफगानिस्तान छोड़ दिया. फिर भी कौर ने जाने से इनकार कर दिया. लेकिन अब, तालिबान के सत्ता पर कब्ज़ा करने के दो साल बाद, उन्होंने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता की कमी के कारण उनके पास विदेश में शरण लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है.

उन्होंने कहा, 'तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से हमने अपने प्रमुख त्योहार नहीं मनाए हैं.' 'अफगानिस्तान में हमारे समुदाय के बहुत कम सदस्य बचे हैं. हम अपने मंदिरों की देखभाल भी नहीं कर सकते.' 1980 के दशक में अफगानिस्तान में 100,000 हिंदू और सिख थे. लेकिन 1979 में छिड़े युद्ध और बढ़ते उत्पीड़न की शुरुआत ने कई लोगों को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया.

1990 के दशक के गृह युद्ध के दौरान, तालिबान और प्रतिद्वंद्वी इस्लामी समूहों ने अल्पसंख्यकों की रक्षा करने का वचन दिया था. लेकिन कई सिखों और हिंदुओं ने अपने घर और व्यवसाय खो दिए और भारत भाग गए. अगस्त 2021 में जब तालिबान ने सत्ता हासिल की, तो उसने गैर-मुस्लिम अफ़गानों के डर को शांत करने का प्रयास किया. आरएफई/आरएल की रिपोर्ट के अनुसार, लेकिन सिखों और हिंदुओं पर तालिबान के कठोर प्रतिबंधों ने कई लोगों को अपनी मातृभूमि से बाहर निकलने का रास्ता तलाशने के लिए मजबूर कर दिया है.

वाशिंगटन में गैर-लाभकारी मुस्लिम पब्लिक अफेयर्स काउंसिल में नीति और रणनीति के निदेशक नियाला मोहम्मद ने कहा कि अफगानिस्तान में हिंदू, सिख, बहाई, ईसाई, अहमदी और शिया मुसलमानों सहित धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति तालिबान के शासन में तेजी से खराब हो गई है. अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग के पहले दक्षिण एशिया विश्लेषक रहे मोहम्मद ने कहा, 'इस्लाम का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले तालिबान जैसे राजनीतिक चरमपंथी गुटों के क्षेत्र में सत्ता में आने से स्थिति लगातार बिगड़ रही है.' 'विभिन्न धार्मिक समूहों के इस पलायन ने देश के सामाजिक ताने-बाने में एक बड़ा शून्य छोड़ दिया है.'

ये भी पढ़ें - अफगानिस्तान के राजदूत लापता नहीं, 28-29 अगस्त को भारत वापस लौटेंगे : सूत्र

(आईएएनएस)

नई दिल्ली : अफगानिस्तान में 2021 में तालिबान के हाथों में सत्ता आने के साथ ही चिंताएं थीं कि अफगानिस्तान के कुछ छोटे गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक गायब हो सकते हैं. एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि दो साल बाद, ये आशंकाएं सही साबित होती जा रही हैं. आरएफई/आरएल की रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान का अंतिम यहूदी तालिबान के कब्जे के तुरंत बाद देश से भाग गया, माना जाता है कि सिख और हिंदू समुदाय केवल मुट्ठी भर परिवारों तक ही सीमित हो गए हैं.

आरएफई/आरएल की रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान के शासन में सिखों और हिंदुओं को गंभीर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है. सार्वजनिक रूप से उनके धार्मिक कार्यक्रमों को मनाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिससे कई लोगों के पास वहां से भागने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है. राजधानी काबुल में बचे आखिरी सिखों में से एक फ़री कौर ने कहा, 'मैं कहीं भी आज़ादी से नहीं जा सकती.'

उन्होंने तालिबान के आदेश के संदर्भ में कहा, 'जब मैं बाहर जाती हूं, तो मुझे मुस्लिम की तरह कपड़े पहनने के लिए मजबूर किया जाता है ताकि मुझे सिख के रूप में पहचाना न जा सके.' कौर के पिता 2018 में पूर्वी शहर जलालाबाद में सिखों और हिंदुओं को निशाना बनाकर किए गए आत्मघाती हमले में मारे गए थे. कथित तौर पर हमले के कारण कौर की मां और बहनों सहित 1,500 सिखों को देश छोड़ना पड़ा.

आरएफई/आरएल रिपोर्ट में कहा गया है कि लेकिन कौर ने वहां से जाने से इनकार कर दिया और वो काबुल में रुक गयी. मार्च 2020 में, जब इस्लामिक स्टेट-खुरासान (आईएस-के) के आतंकवादियों ने काबुल में एक सिख मंदिर पर हमला किया, तो 25 लोगों की मौत हो गई. हमले के बाद, अल्पसंख्यक समुदाय के शेष अधिकांश सदस्यों ने अफगानिस्तान छोड़ दिया. फिर भी कौर ने जाने से इनकार कर दिया. लेकिन अब, तालिबान के सत्ता पर कब्ज़ा करने के दो साल बाद, उन्होंने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता की कमी के कारण उनके पास विदेश में शरण लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है.

उन्होंने कहा, 'तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से हमने अपने प्रमुख त्योहार नहीं मनाए हैं.' 'अफगानिस्तान में हमारे समुदाय के बहुत कम सदस्य बचे हैं. हम अपने मंदिरों की देखभाल भी नहीं कर सकते.' 1980 के दशक में अफगानिस्तान में 100,000 हिंदू और सिख थे. लेकिन 1979 में छिड़े युद्ध और बढ़ते उत्पीड़न की शुरुआत ने कई लोगों को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया.

1990 के दशक के गृह युद्ध के दौरान, तालिबान और प्रतिद्वंद्वी इस्लामी समूहों ने अल्पसंख्यकों की रक्षा करने का वचन दिया था. लेकिन कई सिखों और हिंदुओं ने अपने घर और व्यवसाय खो दिए और भारत भाग गए. अगस्त 2021 में जब तालिबान ने सत्ता हासिल की, तो उसने गैर-मुस्लिम अफ़गानों के डर को शांत करने का प्रयास किया. आरएफई/आरएल की रिपोर्ट के अनुसार, लेकिन सिखों और हिंदुओं पर तालिबान के कठोर प्रतिबंधों ने कई लोगों को अपनी मातृभूमि से बाहर निकलने का रास्ता तलाशने के लिए मजबूर कर दिया है.

वाशिंगटन में गैर-लाभकारी मुस्लिम पब्लिक अफेयर्स काउंसिल में नीति और रणनीति के निदेशक नियाला मोहम्मद ने कहा कि अफगानिस्तान में हिंदू, सिख, बहाई, ईसाई, अहमदी और शिया मुसलमानों सहित धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति तालिबान के शासन में तेजी से खराब हो गई है. अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग के पहले दक्षिण एशिया विश्लेषक रहे मोहम्मद ने कहा, 'इस्लाम का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले तालिबान जैसे राजनीतिक चरमपंथी गुटों के क्षेत्र में सत्ता में आने से स्थिति लगातार बिगड़ रही है.' 'विभिन्न धार्मिक समूहों के इस पलायन ने देश के सामाजिक ताने-बाने में एक बड़ा शून्य छोड़ दिया है.'

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(आईएएनएस)

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