नई दिल्ली : नागोर्नो-काराबाख को लेकर आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच दशकों से चल रहा एक झगड़ा सितंबर के अंत में भड़क उठा, जो 1990 के दशक में एक जातीय युद्ध के बाद सबसे बड़ा संघर्ष था.
नागोर्नो-काराबाख की अग्रिम पंक्तियों के बीच झड़पें कई वर्षों से आम हैं, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अजरबैजान के एक हिस्से के रूप में मान्यता प्राप्त है, लेकिन यह आर्मेनियाई जाति के लोगों का घर है.
हालांकि, एक लंबे समय तक चले संघर्ष को समाप्त करने के लिए, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मंगलवार को आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच एक नए शांति समझौते की शुरुआत की, जहां दोनों देश नागोर्नो के विवादित क्षेत्र पर छह सप्ताह से अधिक समय तक सैन्य संघर्ष कर रहे हैं. सितंबर में संघर्ष शुरू हुआ, तब से कई युद्धविराम समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, जिनमें से अब तक कोई भी सफल नहीं हुआ है.
ऐसे में नया समझौता क्या है और यह किस तरह से दशकों तक चले संघर्ष, जिसमें हजारों नागरिक मारे गए और कई विस्थापित हुए. इस संघर्ष को समाप्त करने में किस तरह महत्वपूर्ण है.
ईटीवी भारत के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में आर्मीनिया के पूर्व राजदूत अचल मल्होत्रा ने कहा कि इस सौदे में कई महत्वपूर्ण बाते हैं. यह उस घातक युद्ध का अंत कर देगा जो कई दिनों तक चला था और निर्दोष नागरिकों की हत्या का कारण बना.
हालांकि, मुख्य मुद्दा यानी नागोर्नो-काराबाख की स्थिति अभी भी अनसुलझी है और यह देखा जाना बाकी है कि इसे जल्द ही कैसे संबोधित किया जाएगा.
यहां साक्षात्कार के कुछ अंश दिए गए हैं.
आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच नया शांति सौदा क्या है? यह कितना महत्वपूर्ण है?
आर्मीनिया -अजरबैजान की डील में रूसी संघ के कई महत्वपूर्ण घटक हैं. यह कई दिनों तक चले घातक युद्ध का अंत कर देगा और निर्दोष नागरिकों की भी हत्या को रोक देगा.
दूसरा, आर्मीनिया ने कई क्षेत्रों से चरणबद्ध तरीके से वापस हटने पर सहमति व्यक्त की है, जिसपर उसने 1994 में युद्ध के दौरान कब्जा कर लिया था.
तीसरा, आर्मीनिया और अजरबैजान ने विवादित क्षेत्रों और सीमाओं के साथ रूसी शांति सेना की तैनाती के लिए सहमति व्यक्त की है.
मुख्य मुद्दा यानी नागोर्नो-काराबाख की स्थिति हालांकि, अनसुलझी है और यह देखा जा सकता है कि इसे शीघ्र ही कैसे संबोधित किया जाएगा. इसके अलावा, यह स्पष्ट नहीं है कि OSCE मिन्स्क समूह यहां से विवाद के समाधान में क्या भूमिका निभाएगा.
शांति समझौते से आर्मीनिया में हिंसा और बाकू में जश्न मनाया गया है? आप कैसे देखते हैं कि इसका परिणाम क्या होगा?
अजरबैजान में 25 वर्षों के बाद जश्न मनाने का हर कारण है. पिछले दो दशकों से अधिक समय से यह मांग जाती रही है कि 1992-1994 में युद्ध के दौरान आर्मीनिया के कब्जे वाले क्षेत्रों को किसी भी हालत में अजरबैजान को वापस लौटा देने चाहिए.
आज अजरबैजान ने प्रमुख शहरों में से एक पर कब्जा करने में सक्षम है. इतना ही नहीं आर्मीनिया अपने कई क्षेत्रों से हटने को तैयार हो गया है, जिस पर उसने 90 के दशक के दौरान कब्जा कर लिया था.
इसके अलावा, आर्मीनिया अजरबैजान और इसके स्वायत्त क्षेत्र नखचिवान के बीच एक भूमि गलियारा प्रदान करने के लिए सहमत हो गया है, जिसके बाद वह अर्मीनिया के माध्यम से यात्रा कर सकेंगे, क्योंकि इसकी भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि नखचिरन का स्वायत्त क्षेत्र जो अजरबैजान से संबंधित है, क्षेत्र से अलग हो जाता है.
इसके विपरीत, आर्मेनियाई के लोग पूरी तरह से निराश हैं, वे ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं और महसूस कर रहे हैं कि उनके नेता निकोल पशिनेन ने लोगों के साथ विश्वासघात किया है. उनके राष्ट्रीय गौरव को चोट पहुंची है और प्रदर्शन में दिखाई दे रहा है कि वे हिंसक हो रहे हैं, उन्होंने संसद पर भी हमला किया है, लेकिन उन्हें यह समझना होगा कि वे केवल कमजोरी की स्थिति में ही बातचीत कर पाएंगे. इसलिए वे वास्तव में आर्मेनियाई जाति के लोगों के निवास नागोर्नो-काराबाख की संभावनाओं पर चिंतित हैं.
इससे रूस का क्या फायदा है?
शांति समझौते ने उस क्षेत्र में रूस की स्थिति को और अधिक मजबूत कर दिया है और जिसे रूस अपने प्राकृतिक प्रभाव के क्षेत्र के रूप में मानता है. रूस के पास पहले से ही आर्मीनिया में एक सैन्य अड्डा है और वह अपने सैनिकों को आर्मीनिया-तुर्की या आर्मीनिया-ईरान सीमाओं पर तैनात करता है. अब सौदे के अनुसार, रूस भी क्षेत्र में अपनी शांति सेना को तैनात करेगा.
2008 में जब रूस ने जॉर्जिया के दो टूटने वाले क्षेत्रों पर अबखाजिया और दक्षिण ओसेशिया के साथ एक युद्ध लड़ा था, तो रूस उन दो क्षेत्रों की स्वतंत्रता को मान्यता दी थी और तब से यह अबखाजिया सहित उन दो क्षेत्रों पर अपनी उपस्थिति स्थापित कर चुका है, जो ब्लैक सागर पर स्थित है और इसलिए सामरिक और सुरक्षा के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण स्थान है.
अजरबैजान कह रहा है कि तुर्की शांति प्रक्रिया में भूमिका निभाएगा? क्या आर्मेनियाई लोग इस बात को स्वीकार करेंगे?
वैसे, तुर्की OSCE मिन्स्क समूह का 11वां सदस्य है, जिसे नागोर्नो-काराबाख संघर्ष को हल करने का काम सौंपा गया था, लेकिन अभी तक आर्मीनिया, तुर्की की भूमिका का विरोध करने में सक्षम रहा है, क्योंकि उसके तुर्की के साथ भी बहुत खराब संबंध है. आर्मीनिया सोचता है कि तुर्की अजरबैजान को लेकर पक्षपात करता है, लेकिन अब स्थिति बदल गई है, हालांकि अजरबैजान ने दावा किया है कि तुर्की एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, तुर्की द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका की कोई स्वतंत्र पुष्टि नहीं है.
इसके अलावा, इस बात की भी कोई स्पष्टता नहीं है कि OSCE यहां किस भूमिका को निभाने वाला है.
मुझे लगता है आर्मीनिया के अलावा, रूस भी तुर्की में संघर्ष की प्रक्रिया के समाधान में सक्रिय रूप से शामिल होने में दिलचस्पी नहीं ले सकता, क्योंकि किसी तरह से यह रूस की भूमिका पर प्रभाव पड़ेगा और इससे क्षेत्र में रूस के प्रभाव को लेकर भ्रम पैदा हो सकता है.