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कोविड की कुछ जांच गलत परिणाम क्यों देती हैं और कितना आम है 'फॉल्स पॉजिटिव'?

मेलबर्न (Melbourne) में कोरोना वायरस संक्रमण के मौजूदा प्रकोप से पूर्व में जोड़े गए कोविड-19 के दो मामलों को अब गलत तरीके से पॉजिटिव (संक्रमित) बताए गए मामलों के रूप में वर्गीकृत कर दिया गया है. ये मामले विक्टोरिया के आधिकारिक आंकड़ों में शामिल नहीं हैं, जबकि इन मामलों से जोड़े गए कई जोखिम स्थलों को भी हटा दिया गया है.

कोविड की कुछ जांच गलत परिणाम क्यों देती हैं
कोविड की कुछ जांच गलत परिणाम क्यों देती हैं
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Published : Jun 6, 2021, 5:20 PM IST

एडीलेड : मेलबर्न में कोरोना वायरस संक्रमण (Corona Virus Infection) के मौजूदा प्रकोप से पूर्व में जोड़े गए कोविड-19 (Covid-19) के दो मामलों को अब गलत तरीके से पॉजिटिव (संक्रमित) बताए गए मामलों के रूप में वर्गीकृत कर दिया गया है.

ये मामले विक्टोरिया (Victoria) के आधिकारिक आंकड़ों में शामिल नहीं हैं, जबकि इन मामलों से जोड़े गए कई जोखिम स्थलों को भी हटा दिया गया है.

क्या है RT-PCR?

कोविड-19 के लिए जिम्मेदार सार्स-सीओवी-2 वायरस (SARS-CoV-2 Virus) की पहचान करने के लिए मुख्य और 'स्वर्ण मानक' जांच रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (Reverse Transcriptase Polymerase Chain Reaction- RT-PCR) जांच है.

आरटी-पीसीआर (RT-PCR) जांच अत्यधिक विशिष्ट है. इसका अर्थ यह है कि अगर कोई सचमुच संक्रमित नहीं है, तो इस बात की अत्यधिक संभावना है कि जांच परिणाम नेगेटिव ही आएंगे. यह जांच बहुत संवेदनशील भी है. इसलिए अगर कोई सचमुच वायरस से संक्रमित है, तो इस बात की भी संभावना अधिक है कि जांच परिणाम पॉजिटिव आएगा.

भले ही जांच अत्यधिक विशिष्ट है, लेकिन इस बात की थोड़ी सी आशंका रहती है कि किसी व्यक्ति को अगर संक्रमण न हो तो भी जांच परिणाम में वह पॉजिटिव यानी संक्रमित दिखे. इसको 'फॉल्स पॉजिटिव' (False Positive) कहा जाता है.

पढ़ेंः कृषि क्षेत्र को प्रभावित नहीं करेगी महामारी की दूसरी लहर: नीती आयोग

कैसे काम करती है RT-PCR?

इसे समझने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि आरटी-पीसीआर जांच काम कैसे करती है. कोविड काल में ज्यादातर लोगों ने पीसीआर जांच के बारे में सुना है, लेकिन यह काम कैसे करती है यह अब भी कुछ हद तक रहस्य जैसा है.

आसान और कम शब्दों में समझने की कोशिश की जाए, तो नाक या गले से रूई के फाहों से लिए गए नमूनों (Swab Sample) में से राइबोन्यूक्लिक एसिड (Ribonucleic Acid-RNA, एक प्रकार की आनुवांशिक सामग्री) को निकालने के लिए रसायनों का प्रयोग किया जाता है. इसमें किसी व्यक्ति के आम आरएनए और अगर सार्स-सीओवी-2 वायरस मौजूद है, तो उसका आरएनए शामिल होता है.

इस आरएनए को फिर डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (Deoxyribonucleic Acid) में बदला जाता है- इसी को 'रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज' (Reverse Transcriptase-RT) कहा जाता है. वायरस का पता लगाने के लिए डीएनए के छोटे खंडों को परिवर्धित किया जाता है. विशेष प्रकार के प्रतिदीप्त (फ्लोरोसेंट) डाई की मदद से, किसी जांच की नेगेटिव या पॉजिटिव के तौर पर पहचान की जाती है जो 35 या उससे अधिक विस्तरण चक्र के बाद प्रकाश की चमक पर आधारित होता है.

गलत पॉजिटिव परिणाम का कारण

गलत पॉजिटिव परिणाम क्यों आते हैं, इसके पीछे मुख्य कारण प्रयोगशाला में हुई गलती और लक्ष्य से हटकर हुई प्रतिक्रिया है. यानी परीक्षण किसी ऐसी चीज के साथ क्रॉस रिएक्ट कर गया जो सार्स-सीओवी-2 नहीं है.

प्रयोगशाला में हुई गलतियों में लिपिकीय त्रुटियां (clerical errors), गलत नमूने की जांच करना, किसी दूसरे के पॉजिटिव नमूने से अन्य नमूने का दूषित हो जाना या प्रयोग किए गए प्रतिक्रियाशील द्रव्यों के साथ समस्या होना (जैसे रसायन, एंजाइम और डाई) जैसे कारण शामिल हैं. जिसे कोविड-19 हुआ हो और वह ठीक हो गया हो वह भी कभी-कभी जांच में संक्रमित दिखता है.

यह भी पढ़ेंः जेडीयू नेता ने कहा- मोदी से नहीं संभल रहा देश, इन्हें बनाएं पीएम

कितने आम गलत परिणाम?

ऐसे गलत परिणाम कितने आम हैं, इन्हें समझने के लिए हमें गलत पॉजिटिव दर को देखना होगा. यानी जिन लोगों की जांच हुई और जो संक्रमित न होने के बावजूद पॉजिटिव पाए गए उनका अनुपात.

हाल के एक प्रीप्रिंट (ऐसा पत्र जिसकी समीक्षा नहीं हुई या अन्य अनुसंधानकर्ताओं ने जिसका स्वतंत्र रूप से प्रमाणीकरण न किया हो) के लेखकों ने आरटी-पीसीआर जांच के लिए गलत पॉजिटिव दरों पर साक्ष्यों की समीक्षा की.

उन्होंने कई अध्ययनों के जांच परिणामों को मिलाया और यह दर 0-16.7 प्रतिशत पाई. इन अध्ययनों में से 50 प्रतिशत अध्ययनों में यह दर 0.8-4.0 प्रतिशत तक पाई गई थी.

आरटी-पीसीआर जांच में गलत नेगेटिव दरों पर की गई एक व्यवस्थित समीक्षा में गलत नेगेटिव दर 1.8-5.8 प्रतिशत पाई गई. हालांकि, समीक्षा में माना गया कि ज्यादातर अध्ययनों की गुणवत्ता खराब थी.

चिंताजनक होते हैं गलत परिणाम

इस लेख के लेखक के अनुसार, कोई जांच एकदम सटीक नहीं है. उदाहरण के लिए अगर आरटी-पीसीआर जांच में गलत पॉजिटिव पाए जाने की दर 4 प्रतिशत मानी जाए तो प्रत्येक 1,00,00 लोग जो जांच में नेगेटिव पाए गए हैं और जिन्हें सच में संक्रमण नहीं है, उनमें से 4,000 गलत तरीके से पॉजिटिव आ सकते हैं. समस्या यह है कि इनमें से ज्यादातर के बारे में हमें कभी पता नहीं चलेगा. संक्रमित मिलने वाले व्यक्ति को पृथक-वास में रहने को कहा जाएगा और उससे संपर्क में आया हर व्यक्ति यह मान लेगा कि उसमें बिना लक्षण वाली बीमारी है.

कोई व्यक्ति जो गलत जांच के कारण संक्रमित बताया जाता है उसे मजबूरन पृथक-वास में रहना पड़ता है. किसी को अगर यह बताया जाए कि आपको घातक बीमारी है तो यह बहुत तनाव देने वाला होता है. खासकर बुजुर्गों के लिए क्योंकि उनका स्वास्थ्य पहले से जोखिमों से भरा होता है.

इसी तरह गलत नेगेटिव परिणाम भी स्पष्ट रूप से बहुत चिंताजनक हैं क्योंकि संक्रमित लोगों का समुदाय में यूं ही घूमना-फिरना खतरनाक हो सकता है. कुल मिलाकर कहा जाए कि फॉल्स नेगेटिव (False Negative) या फॉल्स पॉजिटिव (False Positive) दोनों ही परिणाम समस्या खड़ी करने वाले हैं.

(पीटीआई-भाषा)

एडीलेड : मेलबर्न में कोरोना वायरस संक्रमण (Corona Virus Infection) के मौजूदा प्रकोप से पूर्व में जोड़े गए कोविड-19 (Covid-19) के दो मामलों को अब गलत तरीके से पॉजिटिव (संक्रमित) बताए गए मामलों के रूप में वर्गीकृत कर दिया गया है.

ये मामले विक्टोरिया (Victoria) के आधिकारिक आंकड़ों में शामिल नहीं हैं, जबकि इन मामलों से जोड़े गए कई जोखिम स्थलों को भी हटा दिया गया है.

क्या है RT-PCR?

कोविड-19 के लिए जिम्मेदार सार्स-सीओवी-2 वायरस (SARS-CoV-2 Virus) की पहचान करने के लिए मुख्य और 'स्वर्ण मानक' जांच रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (Reverse Transcriptase Polymerase Chain Reaction- RT-PCR) जांच है.

आरटी-पीसीआर (RT-PCR) जांच अत्यधिक विशिष्ट है. इसका अर्थ यह है कि अगर कोई सचमुच संक्रमित नहीं है, तो इस बात की अत्यधिक संभावना है कि जांच परिणाम नेगेटिव ही आएंगे. यह जांच बहुत संवेदनशील भी है. इसलिए अगर कोई सचमुच वायरस से संक्रमित है, तो इस बात की भी संभावना अधिक है कि जांच परिणाम पॉजिटिव आएगा.

भले ही जांच अत्यधिक विशिष्ट है, लेकिन इस बात की थोड़ी सी आशंका रहती है कि किसी व्यक्ति को अगर संक्रमण न हो तो भी जांच परिणाम में वह पॉजिटिव यानी संक्रमित दिखे. इसको 'फॉल्स पॉजिटिव' (False Positive) कहा जाता है.

पढ़ेंः कृषि क्षेत्र को प्रभावित नहीं करेगी महामारी की दूसरी लहर: नीती आयोग

कैसे काम करती है RT-PCR?

इसे समझने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि आरटी-पीसीआर जांच काम कैसे करती है. कोविड काल में ज्यादातर लोगों ने पीसीआर जांच के बारे में सुना है, लेकिन यह काम कैसे करती है यह अब भी कुछ हद तक रहस्य जैसा है.

आसान और कम शब्दों में समझने की कोशिश की जाए, तो नाक या गले से रूई के फाहों से लिए गए नमूनों (Swab Sample) में से राइबोन्यूक्लिक एसिड (Ribonucleic Acid-RNA, एक प्रकार की आनुवांशिक सामग्री) को निकालने के लिए रसायनों का प्रयोग किया जाता है. इसमें किसी व्यक्ति के आम आरएनए और अगर सार्स-सीओवी-2 वायरस मौजूद है, तो उसका आरएनए शामिल होता है.

इस आरएनए को फिर डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (Deoxyribonucleic Acid) में बदला जाता है- इसी को 'रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज' (Reverse Transcriptase-RT) कहा जाता है. वायरस का पता लगाने के लिए डीएनए के छोटे खंडों को परिवर्धित किया जाता है. विशेष प्रकार के प्रतिदीप्त (फ्लोरोसेंट) डाई की मदद से, किसी जांच की नेगेटिव या पॉजिटिव के तौर पर पहचान की जाती है जो 35 या उससे अधिक विस्तरण चक्र के बाद प्रकाश की चमक पर आधारित होता है.

गलत पॉजिटिव परिणाम का कारण

गलत पॉजिटिव परिणाम क्यों आते हैं, इसके पीछे मुख्य कारण प्रयोगशाला में हुई गलती और लक्ष्य से हटकर हुई प्रतिक्रिया है. यानी परीक्षण किसी ऐसी चीज के साथ क्रॉस रिएक्ट कर गया जो सार्स-सीओवी-2 नहीं है.

प्रयोगशाला में हुई गलतियों में लिपिकीय त्रुटियां (clerical errors), गलत नमूने की जांच करना, किसी दूसरे के पॉजिटिव नमूने से अन्य नमूने का दूषित हो जाना या प्रयोग किए गए प्रतिक्रियाशील द्रव्यों के साथ समस्या होना (जैसे रसायन, एंजाइम और डाई) जैसे कारण शामिल हैं. जिसे कोविड-19 हुआ हो और वह ठीक हो गया हो वह भी कभी-कभी जांच में संक्रमित दिखता है.

यह भी पढ़ेंः जेडीयू नेता ने कहा- मोदी से नहीं संभल रहा देश, इन्हें बनाएं पीएम

कितने आम गलत परिणाम?

ऐसे गलत परिणाम कितने आम हैं, इन्हें समझने के लिए हमें गलत पॉजिटिव दर को देखना होगा. यानी जिन लोगों की जांच हुई और जो संक्रमित न होने के बावजूद पॉजिटिव पाए गए उनका अनुपात.

हाल के एक प्रीप्रिंट (ऐसा पत्र जिसकी समीक्षा नहीं हुई या अन्य अनुसंधानकर्ताओं ने जिसका स्वतंत्र रूप से प्रमाणीकरण न किया हो) के लेखकों ने आरटी-पीसीआर जांच के लिए गलत पॉजिटिव दरों पर साक्ष्यों की समीक्षा की.

उन्होंने कई अध्ययनों के जांच परिणामों को मिलाया और यह दर 0-16.7 प्रतिशत पाई. इन अध्ययनों में से 50 प्रतिशत अध्ययनों में यह दर 0.8-4.0 प्रतिशत तक पाई गई थी.

आरटी-पीसीआर जांच में गलत नेगेटिव दरों पर की गई एक व्यवस्थित समीक्षा में गलत नेगेटिव दर 1.8-5.8 प्रतिशत पाई गई. हालांकि, समीक्षा में माना गया कि ज्यादातर अध्ययनों की गुणवत्ता खराब थी.

चिंताजनक होते हैं गलत परिणाम

इस लेख के लेखक के अनुसार, कोई जांच एकदम सटीक नहीं है. उदाहरण के लिए अगर आरटी-पीसीआर जांच में गलत पॉजिटिव पाए जाने की दर 4 प्रतिशत मानी जाए तो प्रत्येक 1,00,00 लोग जो जांच में नेगेटिव पाए गए हैं और जिन्हें सच में संक्रमण नहीं है, उनमें से 4,000 गलत तरीके से पॉजिटिव आ सकते हैं. समस्या यह है कि इनमें से ज्यादातर के बारे में हमें कभी पता नहीं चलेगा. संक्रमित मिलने वाले व्यक्ति को पृथक-वास में रहने को कहा जाएगा और उससे संपर्क में आया हर व्यक्ति यह मान लेगा कि उसमें बिना लक्षण वाली बीमारी है.

कोई व्यक्ति जो गलत जांच के कारण संक्रमित बताया जाता है उसे मजबूरन पृथक-वास में रहना पड़ता है. किसी को अगर यह बताया जाए कि आपको घातक बीमारी है तो यह बहुत तनाव देने वाला होता है. खासकर बुजुर्गों के लिए क्योंकि उनका स्वास्थ्य पहले से जोखिमों से भरा होता है.

इसी तरह गलत नेगेटिव परिणाम भी स्पष्ट रूप से बहुत चिंताजनक हैं क्योंकि संक्रमित लोगों का समुदाय में यूं ही घूमना-फिरना खतरनाक हो सकता है. कुल मिलाकर कहा जाए कि फॉल्स नेगेटिव (False Negative) या फॉल्स पॉजिटिव (False Positive) दोनों ही परिणाम समस्या खड़ी करने वाले हैं.

(पीटीआई-भाषा)

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