वॉशिंगटन : हारवर्ड विश्वविद्यालय में फिलहाल कोविड-19 पर विशेष ध्यान के साथ जन स्वास्थ्य में पीएचडी कर रहीं आईएएस अधिकारी डॉ. मृणालिनी दरसवाल ने कहा कि हम भारत में वैश्विक महामारी को भयानक तरीके से फिर से सिर उठाते देख रहे हैं. जहां कुछ महीने पहले माना जा रहा था कि यह लगभग खत्म हो चुका है. दुर्भाग्य से यह आबादी के बीच में छिपा हुआ था और इसने तब हमला किया जब हम कम चौकन्ने थे.
उन्होंने कहा कि इसके लिए कुछ हद तक महामारी से थक चुके लोगों को भी जिम्मेदार माना जा सकता है. जो गुजारे के लिए अथक परिश्रम पर निर्भर हैं और जिनके लिए लंबे समय तक संकट के खत्म होने का इंतजार करना कोई विकल्प नहीं है. हालांकि मुख्य कारण प्रतिरोधक क्षमता का कम होना और बेहद संक्रामक प्रकारों का सामने आना है.
ओडिशा कैडर की 2002 बैच की आईएएस अधिकारी दरसवाल ने विशेष सचिव (स्वास्थ्य) खाद्य सुरक्षा आयुक्त औषधि नियंत्रक और दिल्ली सरकार के एचआईवी-एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के परियोजना निदेशक के तौर पर सेवा दी है. दरसवाल ने कहा कि फ्लू और एचआईवी जैसे वायरसों की तुलना में इस वायरस का पकड़ में आना और अनुमान लगाना ज्यादा मुश्किल है. इस वजह से केवल टीकाकरण ही एक सफल रणनीति नहीं मानी जा सकती है.
उन्होंने कहा कि टीकाकरण की मौजूदा दर के हिसाब से भारत की 75 प्रतिशत आबादी को टीका देने में दो साल लग जाएंगे. साथ ही कहा कि सामान्य हालात की तरफ लौटने के लिए गति को बढ़ाने और ज्यादा से ज्यादा आबादी को इसमें शामिल करने को कई गुणा तक बढ़ाने की जरूरत है. दरसवाल ने कहा कि समूची आबादी को इसमें शामिल करने के लक्ष्य को देखते हुए हमें रणनीतिक तरीके से आगे बढ़ने की जरूरत है.
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साथ ही उन्होंने नई संभावित रणनीति उत्पादन, खरीद और टीका लगाने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि हमने कोवैक्सीन जैसी स्वदेशी टीकों को बनाकर और सीरम इंस्टीट्यूट से कोविशील्ड का प्राथमिकता से आवंटन पाकर बहुत अच्छा किया है. लेकिन लोगों की संख्या को देखते हुए टीकों की संख्या कम पड़ रही है. उन्होंने कहा कि हमें और परिष्कृत टीके बनाने तथा प्रत्येक को यह टीका उपलब्ध कराने की जरूरत है.