नई दिल्ली : मॉस्को ने गुरुवार को रूस, चीन, अमेरिका और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए विस्तारित 'ट्रोइका' की बैठक की मेजबानी की, जिसने देश में एक समझौता वार्ता और स्थायी युद्धविराम तक पहुंचने के लिए इंट्रा-अफगान प्रक्रिया में प्रगति करने पर ध्यान केंद्रित किया गया. हालांकि, इस बैठक में भारत को आमंत्रित नहीं किया गया.
इस कार्यक्रम में अफगानिस्तान की राष्ट्रीय सुलह उच्च परिषद, प्रमुख अफगान राजनीतिक हस्तियां, तालिबान आंदोलन के प्रतिनिधि और अफ़गानिस्तान की सरकार के प्रतिनिधियों ने भाग लिया. मास्को के आयोजित ट्रोइका मीटिंग में कतर और तुर्की को 'गेस्ट ऑफ ऑनर' के तौर पर शामिल किया गया.
सम्मेलन के बाद एक संयुक्त बयान जारी किया गया, जिसमें चार प्रमुख प्रतिभागियों ने कहा कि वे अफगानिस्तान में इस्लामी अमीरात प्रणाली की वापसी का समर्थन नहीं करेंगे.
बयान में शांति के लिए अफगान लोगों की इच्छा को भी मान्यता दी गई, सभी पक्षों से हिंसा में कमी लाने और तालिबान के लिए एक आक्रामण(स्प्रिंग ऑफेंसिव) नहीं शुरू करने के लिए कहा गया, और संघर्ष के लिए एक समझौता के महत्व को दोहराया गया.
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रूस के विदेश मंत्रालय ने बताया कि अफगानिस्तान में चल रहे हिंसा को कम करने के लिए सभी पक्षों से आग्रह किया गया. सभी राष्ट्रों का यह मानना है कि राजनीतिक समझौतें के माध्यम से ही स्थाई शांति बहाल की जा सकती है.
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चीन, अमेरिका, पाकिस्तान और रूस ने शांति प्रक्रिया को सुगम बनाने और पक्षकारों के बीच चर्चा जारी रखने का समर्थन करने के लिए कतर राज्य के समर्थन की सराहना की. उन्होंने उन अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को भी सराहा जो अफगानिस्तान में शांति समझौता वार्ता को और अधिक सरल बनाने और समर्थन करने के लिए चल रहे हैं.
वहीं अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को युद्धग्रस्त देश में शांति प्रक्रिया को लेकर मास्को में एक दिन पहले हुई बैठक के बाद जारी बयान का स्वागत किया. टोलो न्यूज के अनुसार, मंत्रालय ने बयान को अफगान लोगों की मांग के आधार पर देश में शांति प्राप्त करने के लिए गंभीर वार्ता की शुरुआत की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया.
मंत्रालय ने कहा कि इस्लामिक रिपब्लिक एकमात्र समावेशी और स्वीकार्य संरचना है जो अफगानिस्तान जैसे विविधतापूर्ण समाज में राजनीतिक भागीदारी, बहुलवाद, नागरिक समानता और स्थिरता के संरक्षण को सुनिश्चित कर सकती है.