सिएटल : अमेरिका में अफगानिस्तान के नेतृत्व वाले युद्ध का आधिकारिक तौर पर समापन कुछ दीर्घकालिक अनसुलझे सवाल भी छोड़कर गया है, जैसे देश अब एक कार्यशील अर्थव्यवस्था का निर्माण कैसे कर सकता है? अब जबकि अमेरिकी सहायता खत्म हो गई है और अंतरराष्ट्रीय मदद भी काफी हद तक बंद हो गई है तो अफगानिस्तान के पास क्या विकल्प बचे हैं?
एक विकल्प प्राकृतिक संसाधनों के तौर पर बचा है. अफगानिस्तान में गैर-ईंधन खनिजों का खजाना है जिनका मूल्य एक हजार अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज्यादा आंका गया है. सहस्राब्दियों से देश अपने रत्नों - माणिक, पन्ना, टूमलाइन और लैपिस लाजुली (एक प्रकार का चमकीला नीला पत्थर) के लिए प्रसिद्ध है. इन खनिजों को स्थानीय रूप से कानूनी और अवैध दोनों तरह से, ज्यादातर छोटी, कुटीर खानों में निकाला जाना जारी है. हालांकि, अधिक फायदा देश के लौह, तांबा, लिथियम, दुर्लभ पृथ्वी तत्वों, कोबाल्ट, बॉक्साइट, पारा, यूरेनियम और क्रोमियम जैसे खनिजों में निहित है.
खनिजों की कुल प्रचुरता निश्चित रूप से अकूत है लेकिन इन संसाधनों की वैज्ञानिक समझ अब भी अन्वेषी चरण में हैं. यहां तक कि उन्हें निकालना कितना फायदेमंद हो सकता है, इस बात की बेहतर समझ के बावजूद इन संसाधनों की मौजूदगी मात्र से नई अर्थव्यवस्था को फौरी उछाल नहीं मिलेगा. उनके संसाधनों का अध्ययन करने वाले एक भूविज्ञानी के तौर पर, मेरा आकलन है कि खनन को राजस्व के मुख्य स्रोत पर तैयार करने के लिये बड़े पैमाने पर उनका उत्खनन करना होगा और इसके लिये कम से कम सात से 10 वर्ष का समय लगेगा.
सोवियत संघ का अनुकरण
ब्रिटिश और जर्मन भूविज्ञानियों ने 19वीं शताब्दी और 20वीं शताब्दी की शुरुआत में अफगानिस्तान के खनिजों का शुरुआती आधुनिक सर्वेक्षण किया था. सोवियत संघ ने हालांकि 1960 और 1970 के दशक में पूरे देश में सबसे व्यवस्थित अन्वेषण कार्य किया और बड़े पैमाने पर विस्तृत जानकारी जुटाई जो आज के दौर के आधुनिक अध्ययनों की रीढ़ बना है.
अमेरिकी भूगर्भ सर्वेक्षण (यूएसजीएस) ने 2004 से 2011 तक उपलब्ध आंकड़ों की विस्तृत समीक्षा की और अपने हवाई सर्वेक्षण, सीमित क्षेत्रीय जांच तथा अफगानिस्तान भूगर्भ सर्वेक्षण के जरिये इसमें नई जानकारी भी जोड़ी. इससे खनिज स्थलों, उनकी उपलब्धता और प्रचुर भंडार के बारे में बेहतर पहचान हुई.
इस काम में हालांकि सोवियत दौर के प्रयासों की कोई अनदेखी नहीं कर सकता. उपलब्ध जानकारी के आधार पर यूएसजीएस ने देश के 24 इलाकों की पहचान की और वहां खनिजों के अपार भंडार का आकलन किया. चीनी और भारतीय कंपनियों ने भी इसमें रुचि दिखाई और उन्हें रियायत भी दी गई. अनुबंध की शर्तों और सुरक्षा चिंताओं के कारण हालांकि 2010 के दशक से यह गतिविधियां थम गईं.
खनिजों की प्रचुरता
अफगानिस्तान के पास वास्तव में खनिजों का कितना बड़ा भंडार है? यूएसजीएस के, विशेष रुचि वाली धातुओं- तांबा, लोहा, लीथियम और धरती की दुर्लभ धातुओं के अनुमान के सार के मुताबिक मैं इसका जवाब देने की कोशिश करूंगा.
5.77 करोड़ मीट्रिक टन तांबा
यूएसजीएस के भूविज्ञानियों का कहना था कि उनके आंकड़े हालांकि अपेक्षाकृत कम अनुमान लेकर चल रहे हैं और वे शुरुआती भी हैं. इसके बावजूद यह कहा जा सकता है कि कुल मिलाकर खनिज अपार हैं. सभी ज्ञात अनुमान के मुताबिक, वहां तांबे का 5.77 करोड़ मीट्रिक टन भंडार हो सकता है जिसकी कीमत मौजूदा हिसाब से 516 अरब अमेरिकी डॉलर होगी. ये संसाधन अभी खोजे नहीं गए हैं- इसकी पहचान जरूर हुई है लेकिन पूरा अन्वेषण व आकलन नहीं. अगर आकलन सही है तो तांबे के मामले में अफगानिस्तान दुनिया के पांच शीर्ष देशों में होगा.
102 अरब अमेरिकी डॉलर का भंडार
इसके बाद यहां कोबाल्ट की भी अच्छी मात्रा है. अयनक अयस्क का भंडार काबुल से करीब 30 किलोमीटर दक्षिणपूर्व में स्थित है. उच्च गुणवत्ता वाले अयनक का कुल भंडार तांबे का 1.13 करोड़ मीट्रिक टन माना जा रहा है जिसका मौजूदा बाजार भाव 102 अरब अमेरिकी डॉलर है.
लौह अयस्क के संदर्भ में अफगान भूमि
अफगानिस्तान में विश्व स्तरीय लौह अयस्क संसाधन भी बामियान प्रांत के हाजी गाक इलाके में हैं. अनुमान के मुताबिक, हाजी गाक में 210 करोड़ मीट्रिक टन उच्च स्तरीय अयस्क होगा जिसमें 61-69 प्रतिशत लोहे का वजन होगा. मौजूदा दर के हिसाब से यह 336.8 अरब अमेरिकी डॉलर का होगा. इससे अफगानिस्तान दुनिया के 10 शीर्ष देशों में आ जाएगा जिनके पास खनन के लिये इतना लौह अयस्क भंडार है. नूरीस्तान प्रांत में लीथियम का खासा भंडार है.
दो बहुमूल्य पदार्थ
हेलमंद प्रांत में धरती से दुर्लभ पत्थर और रत्न, पत्थर आदि भी मिलते हैं. इनका अनुमानित भंडार 14 लाख मीट्रिक टन है. इनमें से दो प्रेजोडायमियम और नियोडिमियम ऊंची कीमत वाले हैं जो करीब 45 हजार अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन के हिसाब से बिकते हैं. इनसे शानदार चुंबक का निर्माण होता है जो हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक कारों की मोटर में इस्तेमाल होते हैं.
जमीनी कारक और भूराजनीतिक स्थिति
खनन ज्ञान यह कहता है कि जमीन के अंदर जो है वह जमीन पर मौजूद चीजों और परिस्थितियों से कम महत्वपूर्ण है. बाजारी हकीकत, सुरक्षा, अनुबंध शर्तें, अवसंरचना और पर्यावरणीय चिंताएं महज संसाधनों की मौजूदगी से ज्यादा अहम होती हैं.
30 साल के लिए अनुबंध
इन कारकों में से सबसे महत्वपूर्ण है धातुओं के लिये फिलहाल मजबूत वैश्विक मांग. अफगानिस्तान इन धातुओं का खनन शुरू कर सकता है या नहीं, यह नई तालिबान सरकार पर निर्भर करेगा. पूर्ववर्ती खनन मंत्रालय के तहत अयनक तांबा भंडार के एक हिस्से के लिये 2.9 अरब डॉलर का अनुबंध चीन की दो सरकारी कंपनियों को दिया गया था. यह अनुबंध 30 साल के लिये था और इस पर 2007 में दस्तखत हुए थे.
तालिबान शासन और निवेश की संभावनाएं
अफगानिस्तान के लिए उसके संसाधन दीर्घकालिक विदेशी निवेश, कौशल निर्माण व अवसंरचना विस्तार का जरिया हो सकते हैं जो सतत अर्थव्यवस्था के लिये जरूरी है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या कंपनियां जुड़ेंगी. अफगानिस्तान भूराजनीतिक संघर्षों के केंद्र में भी है जिसमें भारत व पाकिस्तान के अलावा, चीन, ईरान और अमेरिका भी शामिल हैं. देश पर अब तालिबान का नियंत्रण है. यह हालात देश के संसाधनों को बड़े निवेश के लिये आकर्षक तो नहीं बनाते.
बता दें कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़कर चले जाने के बाद रविवार को तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया. इसके बाद से वहां अफरा-तफरी का माहौल है. अफगानिस्तान-तालिबान संकट (Afghan Taliban Crisis) के बीच एक अहम घटनाक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत 17 अगस्त को सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक की.
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प्रधानमंत्री ने अपने सरकारी आवास पर हुई इस अहम बैठक के बाद अधिकारियों को यह निर्देश दिए. इसी बीच सूत्रों ने कहा है कि भारत इंतजार करेगा और देखेगा कि सरकार का गठन कितना समावेशी होगा और तालिबान कैसे आचरण करेगा. सूत्रों के मुताबिक तालिबान ने कश्मीर पर भी अपना रुख स्पष्ट किया है. इसके मुताबिक तालिबान कश्मीर को एक द्विपक्षीय, आंतरिक मुद्दा मानता है. पीएम ने कहा कि हिंदुओं और सिखों को देंगे शरण.
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इसके बाद काबुल में भारतीय राजदूत एवं दूतावास के कर्मियों समेत 120 लोगों को लेकर भारतीय वायुसेना का एक विमान मंगलवार को अफगानिस्तान से भारत पहुंचा था. विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत सभी भारतीयों की अफगानिस्तान से सकुशल वापसी को लेकर प्रतिबद्ध है और काबुल हवाईअड्डे से वाणिज्यिक उड़ानों की बहाली होते ही वहां फंसे अन्य भारतीयों को स्वदेश लाने का प्रबंध किया जाएगा.
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काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान ने लचीला रुख अपनाते हुए पूरे अफगानिस्तान में 'आम माफी' की घोषणा की और महिलाओं से उसकी सरकार में शामिल होने का आह्वान किया. इसके साथ ही तालिबान ने लोगों की आशंका दूर करने की कोशिश है, जो एक दिन पहले उसके शासन से बचने के लिए काबुल छोड़कर भागने की कोशिश करते दिखे थे और जिसकी वजह से हवाई अड्डे पर अफरा-तफरी का माहौल पैदा होने के बाद कई लोग मारे गए थे.
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गौरतलब है कि भारत ने 2001 के बाद से अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण में करीब 3 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया है. संसद भवन, सलमा बांध और जरांज-देलाराम हाईवे प्रोजेक्ट में भारी निवेश किया है. इनके अलावा भारत-ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास का काम कर रहा है. भारत को ईरान के रणनीतिक चाबहार के शाहिद बेहेश्टी क्षेत्र में पांच बर्थ के साथ दो टर्मिनल का निर्माण करना था, जो एक पारगमन गलियारे का हिस्सा होता. यह भारतीय व्यापार की पहुंच को अफगानिस्तान, मध्य एशिया और रूस तक पहुंच प्रदान करता. इस परियोजना में दो टर्मिनल, 600-मीटर कार्गो टर्मिनल और 640-मीटर कंटेनर टर्मिनल शामिल थे. इसके अलावा 628 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन का निर्माण होना था, जो चाबहार को अफगानिस्तान सीमावर्ती शहर जाहेदान से जोड़ती. जानकारों का मानना है कि भारत ने चीन के चाबहार के जवाब में ग्वादर प्रोजेक्ट में निवेश किया था. अब तालिबान के राज में इसके पूरा होने पर संशय है.
(पीटीआई-भाषा)