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इजराइली वैज्ञानिक कर सकते हैं कोरोना वायरस का टीका विकसित करने की घोषणा - टीका विकसित करने की घोषणा

इजराइली अखबार हारेज ने मेडिकल सूत्रों के हवाले से गुरुवार को खबर दी कि प्रधानमंत्री कार्यालय के अंतर्गत आने वाले इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयोलोजिकल रिसर्च ने हाल ही में इस विषाणु की जैविक कार्यप्रणाली और उसकी विशेषताएं समझने में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है.

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Published : Mar 12, 2020, 11:26 PM IST

येरूशलम : महामारी का रूप ले चुके कोरोना वायरस से दुनिया को कब निजात मिलेगी, इस बाबत अभी कुछ भी स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता. फिलहाल इजराइली मीडिया ने एक राहतभरी खबर दी है, जिसके अनुसार इजराइल के वैज्ञानिक जल्द ही यह घोषणा कर सकते हैं कि उन्होंने नए कोरोना वायरस का टीका विकसित करने का काम पूरा कर लिया है. मीडिया में ऐसी खबर आई है.

इजराइली अखबार हारेज ने मेडिकल सूत्रों के हवाले से गुरुवार को खबर दी कि प्रधानमंत्री कार्यालय के अंतर्गत आने वाले इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयोलोजिकल रिसर्च ने हाल ही में इस विषाणु की जैविक कार्यप्रणाली और उसकी विशेषताएं समझने में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है.

इन विशेषताओं में नैदानिक क्षमता, इस विषाणु की चपेट में आ चुके लोगों के वास्ते एंटीबॉडीज (प्रतिरक्षी) के उत्पादन और टीके के विकास आदि शामिल हैं.

अखबार के अनुसार हालांकि इस टीके को उपयोग के वास्ते प्रभावी और सुरक्षित समझे जाने से पहले विकास प्रक्रिया के तहत उस पर कई परीक्षण करने होंगे, जिनमें महीनों लग सकते हैं.

वैसे रक्षा मंत्रालय ने इस अखबार द्वारा सवाल किए जाने पर इसकी पुष्टि नहीं की.

रक्षा मंत्रालय ने हारेज से कहा, 'कोरोना वायरस के लिए टीके या परीक्षण किट्स के विकास के संदर्भ में इस बॉयोलोजिकल इंस्टीट्यूट के प्रयासों में कोई उपलब्धि हासिल नहीं हुई है. संस्थान का कामकाज व्यवस्थित कार्ययोजना के मुताबिक चलता है और उसमें वक्त लगेगा. यदि और जब भी कुछ बताने लायक होगा, निश्चित व्यवस्था के तहत ऐसा किया जाएगा.'

उन्होंने कहा, 'यह बॉयोलोजिकल संस्थान विश्व विख्यात अनुसंधान एवं विकास एजेंसी है जो व्यापक ज्ञान वाले अनुभवी शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों एवं उत्तम बुनियादी ढांचे पर निर्भर करती है. संस्थान में विषाणु के वास्ते अनुसंधान एवं मेडिकल उपचार विकसित करने में 50 से ज्यादा अनुभवी वैज्ञानिक जुटे हुए हैं.'

नेस जियोना में इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयोलोजिकल रिसर्च को इजराइल के रक्षा बल विज्ञान कोर के तहत 1952 में स्थापित किया गया था और बाद में वह असैन्य संगठन बन गया.

अखबार के मुताबिक तकनीकी तौर पर यह संस्थान प्रधानमंत्री कार्यालय के निगरानी में है लेकिन यह रक्षा मंत्रालय से करीब संवाद रखता है.

पढ़ें- दुनिया में कोरोना : अब तक 4623 मौतें, सवा लाख संक्रमित

बताया जाता है कि प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू ने संस्थान को एक फरवरी को कोविड-19 का टीका विकसित करने के लिए संसाधन झोंक देने को कहा था.

अखबार के अनुसार ऐसे किसी भी टीके के विकास की सामान्य प्रक्रिया में क्लीनिकल ट्रायल से पहले जानवरों पर परीक्षण की लंबी प्रक्रिया चलती है. इस दौर में इस दवा के दुष्प्रभावों को बेहतर ढंग से जानने का मौका मिलता है.

अखबार का मानना है कि कोरोना वायरस को लेकर वैश्विक स्तर पर जिसतरह की आपात स्थिति है उसे देखते हुए लग रहा है कि इस प्रक्रिया में तेजी आ सकती है, क्योंकि बहुत सारे लोगों पर इस विषाणु का खतरा है.

इजराइल के लोकप्रिय खबरिया पोर्ट वाईनेट ने तीन सप्ताह पहले खबर दी थी कि जापान, इटली और अन्य देशों से कोरोना वायरस नमूनों के पांच खेप पहुंचे हैं. उन्हें रक्षा मंत्रालय के विशेष रूप से सुरक्षत कूरियर में इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयोलोजिकल रिसर्च में लाया गया और उन्हें शून्य के नीचे 80 डिग्री के तापमान पर रखा गया है. जाने माने विशेषज्ञ तब से टीके के विकास पर लगे हुए हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि टीके के विकास में कुछ महीने से डेढ साल तक का वक्त लगता है.

येरूशलम : महामारी का रूप ले चुके कोरोना वायरस से दुनिया को कब निजात मिलेगी, इस बाबत अभी कुछ भी स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता. फिलहाल इजराइली मीडिया ने एक राहतभरी खबर दी है, जिसके अनुसार इजराइल के वैज्ञानिक जल्द ही यह घोषणा कर सकते हैं कि उन्होंने नए कोरोना वायरस का टीका विकसित करने का काम पूरा कर लिया है. मीडिया में ऐसी खबर आई है.

इजराइली अखबार हारेज ने मेडिकल सूत्रों के हवाले से गुरुवार को खबर दी कि प्रधानमंत्री कार्यालय के अंतर्गत आने वाले इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयोलोजिकल रिसर्च ने हाल ही में इस विषाणु की जैविक कार्यप्रणाली और उसकी विशेषताएं समझने में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है.

इन विशेषताओं में नैदानिक क्षमता, इस विषाणु की चपेट में आ चुके लोगों के वास्ते एंटीबॉडीज (प्रतिरक्षी) के उत्पादन और टीके के विकास आदि शामिल हैं.

अखबार के अनुसार हालांकि इस टीके को उपयोग के वास्ते प्रभावी और सुरक्षित समझे जाने से पहले विकास प्रक्रिया के तहत उस पर कई परीक्षण करने होंगे, जिनमें महीनों लग सकते हैं.

वैसे रक्षा मंत्रालय ने इस अखबार द्वारा सवाल किए जाने पर इसकी पुष्टि नहीं की.

रक्षा मंत्रालय ने हारेज से कहा, 'कोरोना वायरस के लिए टीके या परीक्षण किट्स के विकास के संदर्भ में इस बॉयोलोजिकल इंस्टीट्यूट के प्रयासों में कोई उपलब्धि हासिल नहीं हुई है. संस्थान का कामकाज व्यवस्थित कार्ययोजना के मुताबिक चलता है और उसमें वक्त लगेगा. यदि और जब भी कुछ बताने लायक होगा, निश्चित व्यवस्था के तहत ऐसा किया जाएगा.'

उन्होंने कहा, 'यह बॉयोलोजिकल संस्थान विश्व विख्यात अनुसंधान एवं विकास एजेंसी है जो व्यापक ज्ञान वाले अनुभवी शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों एवं उत्तम बुनियादी ढांचे पर निर्भर करती है. संस्थान में विषाणु के वास्ते अनुसंधान एवं मेडिकल उपचार विकसित करने में 50 से ज्यादा अनुभवी वैज्ञानिक जुटे हुए हैं.'

नेस जियोना में इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयोलोजिकल रिसर्च को इजराइल के रक्षा बल विज्ञान कोर के तहत 1952 में स्थापित किया गया था और बाद में वह असैन्य संगठन बन गया.

अखबार के मुताबिक तकनीकी तौर पर यह संस्थान प्रधानमंत्री कार्यालय के निगरानी में है लेकिन यह रक्षा मंत्रालय से करीब संवाद रखता है.

पढ़ें- दुनिया में कोरोना : अब तक 4623 मौतें, सवा लाख संक्रमित

बताया जाता है कि प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू ने संस्थान को एक फरवरी को कोविड-19 का टीका विकसित करने के लिए संसाधन झोंक देने को कहा था.

अखबार के अनुसार ऐसे किसी भी टीके के विकास की सामान्य प्रक्रिया में क्लीनिकल ट्रायल से पहले जानवरों पर परीक्षण की लंबी प्रक्रिया चलती है. इस दौर में इस दवा के दुष्प्रभावों को बेहतर ढंग से जानने का मौका मिलता है.

अखबार का मानना है कि कोरोना वायरस को लेकर वैश्विक स्तर पर जिसतरह की आपात स्थिति है उसे देखते हुए लग रहा है कि इस प्रक्रिया में तेजी आ सकती है, क्योंकि बहुत सारे लोगों पर इस विषाणु का खतरा है.

इजराइल के लोकप्रिय खबरिया पोर्ट वाईनेट ने तीन सप्ताह पहले खबर दी थी कि जापान, इटली और अन्य देशों से कोरोना वायरस नमूनों के पांच खेप पहुंचे हैं. उन्हें रक्षा मंत्रालय के विशेष रूप से सुरक्षत कूरियर में इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयोलोजिकल रिसर्च में लाया गया और उन्हें शून्य के नीचे 80 डिग्री के तापमान पर रखा गया है. जाने माने विशेषज्ञ तब से टीके के विकास पर लगे हुए हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि टीके के विकास में कुछ महीने से डेढ साल तक का वक्त लगता है.

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