हैदराबाद/डेस्क: हांगकांग में हजारों प्रदर्शनकारियों ने रविवार को मार्च में प्रस्तावित नए प्रत्यर्पण कानून को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की. इसके लिये उन्होंने हांगकांग के डाउनटाउन से मार्च किया. उक्त प्रस्तावित नियमों से हांगकांग प्रशासन को मुकदमा चलाने के लिए आरोपित लोगों को चीन भेजने की अनुमति मिल जाएगी. लोगों का कहना है कि इससे शहर के लोगों की आजादी खतरे में पड़ जाएगी.
2014 में हांगकांग के बड़े पैमाने पर विरोध आंदोलन को याद करते हुए, कई लोगों ने मार्च के दौरान पीले रंग की छतरियां भी रखी हुई थीं.
रविवार को मार्च को थोड़ा जल्दी 0740GMT (1540 स्थानीय समय) पर शुरू कर दिया दिया क्योंकि कॉजवे बे शॉपिंग डिस्ट्रिक्ट में काफी भीड़ एकत्रित हो गई थी.
प्रतिभागियों ने हांगकांग की नेता कैरी लैम पर 'हांगकांग को बेचने' का आरोप लगाते हुए तख्तियां लीं, और उन्हें इस्तीफा देने के लिए कहा.
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बता दें, पिछले हफ्ते साल 2014 के 'ऑक्यूपाई सेंट्रल' आंदोलन के आयोजकों को 16 महीने की जेल की सजा सुनाई गई थी.
दरअसल, हांगकांग की विधायिका के समक्ष प्रत्यर्पण कानून में बदलाव के लिए गत तीन अप्रैल को बिल लाया गया. इसके तहत संदिग्ध लोगों के खिलाफ चीन में ट्रायल चलाना प्रस्तावित है. हालांकि, इस संबंध में चीन में प्रताड़ना और अन्यायपूर्ण ट्रायल की आशंका जताई जा रही है.
हांगकांग की विधायिका में भगोड़ा अपराध अध्यादेश (The Fugitive Offenders Ordinance) और आपराधिक मामलों में परस्पर कानूनी सहायता अध्यादेश (Mutual Legal Assistance in Criminal Matters Ordinance) पर गत तीन अप्रैल को चर्चा की गई थी.
यहां के स्थानीय व्यवसायी, कानून, मानवाधिकार और पत्रकारों के समूह ने प्रस्तावित बदलावों पर चिंता जाहिर की है. उनका कहना है कि इससे क्षेत्राधिकार के कानूनी आजादी के सम्मान पर असर पड़ेगा.
प्रस्तावित सुधारों के बाद संदिग्ध अपराधियों को चीन स्थानांतरित करने का दायरा बढ़ जाएगा. इन सुधारों के बाद विधायिका के अधिकारों में कटौती होगी. पहले से मिले अधिकारों के तहत हांगकांग की विधायिका मुख्य कार्यकारी द्वारा किए गए व्यक्तिगत प्रत्यर्पण की सिफारिश का परीक्षण (scrutinise) कर सकती थी.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रस्तावित कानून के अनुसार चीन हांगकांग की प्रत्यर्पण शक्तियों को अपने हाथ में लेना चाहता है. इसके पीछे चीन की दलील है कि उसके यहां के भगोड़े हांगकांग जाकर बस जाते हैं इसलिए वह इस शक्ति को अपने पास रखना चाहता है. उधर हांगकांग के नागरिक चीन की इस चाल को स्वायतता प्राप्त शहर के अधिकार का हनन मानते हैं.
लोकतंत्र के पक्ष में खड़े कार्यकर्ता किसी भी कीमत पर हांगकांग को चीन की कम्युनिस्ट सरकार के प्रभाव से दूर रखना चाहते हैं. 1997 में ब्रिटेन से चीन के अधिकार क्षेत्र में गए हांगकांग को कई मामलों में स्वायत्तता दी गई है.
गौरतलब है कि ब्रिटेन ने वर्ष 1997 में 'एक देश, दो प्रणाली' के तहत हांगकांग को चीन को सौंपा था. 'एक देश, दो नीति' के अंतर्गत और बुनियादी कानून के अनुसार, इसे सभी क्षेत्रों में उच्च स्तर की स्वायत्तता हासिल है. केवल विदेशी मामलों और रक्षा को छोड़कर अन्य चीजें यहां की सरकार ही देखती है. हांगकांग को अपनी मुद्रा, कानून प्रणाली, राजनीतिक व्यवस्था है.
प्रस्तावित नए प्रत्यर्पण कानूनों का विरोध कर रहे लोगों ने अपने अधिकारों और कानूनी सुरक्षा के खत्म होने की आशंका जताई जिसकी गारंटी ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खत्म होने के बाद साल 1997 में शहर को मिली थी.
उल्लेखनीय है कि चीन के खिलाफ यहां पर प्रदर्शनों का सिलसिला काफी पुराना है. यहां के लोग पूर्ण लोकतंत्र और मौलिक अधिकारों की मांग को लेकर चीन के खिलाफ अक्सर प्रदर्शन करते रहे हैं.