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अमेरिका में कोरोना के क्लिनिकल ट्रायल में भारतीय विशेषज्ञों को करें शामिल : फाउची

अमेरिका के शीर्ष संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. एंथनी फाउची ने कहा कि लंबे समय से चले आ रहे भारत-अमेरिका टीका कार्य कार्यक्रम के तहत हमलोग कोरोना टीका से संबंधित अनुसंधान पर भारत के साथ काम जारी रखेंगे. हमलोग कोविड-19 चिकित्सा विधि की सुरक्षा एवं असर के आकलन के लिए वैश्विक क्लिनिकल ट्रायल में भारतीय जांचकर्ताओं को भी शामिल करने के लिए इच्छुक हैं.

अमेरिका में कोरोना के क्लिनिकल ट्रायल में भारतीय विशेषज्ञों को करें शामिल : फाउची
अमेरिका में कोरोना के क्लिनिकल ट्रायल में भारतीय विशेषज्ञों को करें शामिल : फाउची
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Published : Jun 4, 2021, 1:17 PM IST

वॉशिंगटन : अमेरिका के शीर्ष संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. एंथनी फाउची ने बृहस्पतिवार को कहा कि उनका देश कोविड-19 चिकित्सा विधि की सुरक्षा और असर के आकलन के लिए वैश्विक क्लिनिकल ट्रायल में भारतीय जांचकर्ताओं को शामिल करने के लिए इच्छुक है.

डॉ. फाउची (Anthony Fauci) ने अमेरिका-भारत सामरिक एवं भागीदारी मंच (US-India Strategic Partnership Forum) द्वारा आयोजित संवाद के दौरान कहा कि अमेरिका के एलर्जी एवं संक्रामक रोग संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शस डिजीजेज (NIAID) का भारत में समकक्ष एजेंसियों के साथ काम करने का लंबा इतिहास रहा है.

उन्होंने कहा, 'लंबे समय से चले आ रहे भारत-अमेरिका टीका कार्य कार्यक्रम के तहत हमलोग सार्स-सीओवी-2 (सीवियर एक्यूट रेस्पीरेटरी सिंड्रोम कोरोनावायरस 2) टीका (Corona Vaccine) से संबंधित अनुसंधान पर भारत के साथ काम जारी रखेंगे. हमलोग कोविड-19 चिकित्सा विधि की सुरक्षा एवं असर के आकलन के लिए वैश्विक क्लिनिकल ट्रायल में भारतीय जांचकर्ताओं को भी शामिल करने के लिए इच्छुक हैं.'

वायरस के स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने पर आश्वस्त नहीं फाउची

डॉ. फाउची इस बात को भी रखते रहे हैं कि वे आश्वस्त नहीं (not convinced) है कि कोविड-19 स्वाभाविक रूप से विकसित हुआ है, और चीन को वायरस की उत्पत्ति को उजागर करने के लिए एक जांच आयोजित करनी चाहिए.

एक इवेंट में यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें लगता है कि कोरोना वायरस स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हुआ है, फाउची ने कहा नहीं. मैं इसके बारे में आश्वस्त नहीं हूं, मुझे लगता है कि हमें चीन में क्या हुआ, इसकी जांच की जानी चाहिए.

फाउची ने आगे कहा, 'निश्चित रूप से जिन लोगों ने इसकी जांच की थी, उनका कहना है कि यह संभवतः एक पशु जलाशय से उभरा था, लेकिन यह कुछ और हो सकता था, और हमें इसका पता लगाने की आवश्यकता है. यह वजह है कि मैं चाहता हूं कि चीन इसकी जांच करे और सबसे सामने इसे प्रदर्शित करे.'

कोरोना वायरस को पहली बार दिसंबर 2019 में चीनी शहर वुहान से रिपोर्ट किया गया था. कई रिपोर्टों में वायरस की उत्पत्ति वहां की एक प्रयोगशाला से होने का दावा किया गया है.

कोरोना से रोकथाम में भारत का योगदान महत्वपूर्ण

एनआईएच और भारत के जैवप्रौद्योगिकी विभाग के साथ भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने पहले भी महत्वपूर्ण वैज्ञानिक एवं जनस्वास्थ्य संबंधी खोज में मदद की है.

डॉ फाउची ने कहा, 'मुझे भरोसा है कि वे भविष्य में भी इसे जारी रखेंगे. वैश्विक वैज्ञानिक ज्ञान के क्षेत्र में भारत के योगदान से हम सभी परिचित हैं. सरकार के मजबूत समर्थन और व्यापक बायोफार्मा निजी क्षेत्र के सहयोग से इसी ज्ञान की बदौलत कोविड-19 रोकथाम और देखभाल के लिए समाधान प्रदान किया जा रहा है.'

टीकाकरण ही रोकथाम

अमेरिका में भारत के राजदूत तरणजीत सिंह संधू ने कहा कि भारत ने अपनी और वैश्विक जरूरतों की पूर्ति के लिए टीका उत्पादन को बढ़ाया है. इसके लिए बेहतर गुणवत्ता का कच्चा माल और घटक सामग्री उपलब्ध हो, यह सुनिश्चित करने में वह अमेरिका के सहयोग पर निर्भर है.

उन्होंने कहा, 'दुनिया का टीकाकरण करना ही इस महामारी की अगली लहर को रोकने और आर्थिक सुधार में तेजी लाने की दिशा में हमारा सर्वश्रेष्ठ तरीका है.'

उन्होंने कहा कि भारत-अमेरिका स्वास्थ्य सहयोग नया नहीं है और इसके तहत ही दोनों देशों ने रोटावायरस के खिलाफ टीका विकसित किया है, जो बच्चों में गंभीर डायरिया का कारण बनता है.

उन्होंने कहा कि भारतीय कंपनियों ने बेहद किफायती दर पर एचआईवी की दवाओं का निर्माण किया है जिनका इस्तेमाल अफ्रीकी देशों में होता है और यह अमेरिकी संगठनों एवं निजी क्षेत्र के बीच सहयोग के कारण हुआ है.

यूएसआईएसपीएफ के अध्यक्ष मुकेश अघी ने कहा, 'मुझे लगता है कि यह समझना महत्वपूर्ण है कि जब पिछले साल अमेरिका ऐसे ही संकट से गुजर रहा था तब भारत ही था जिसने अमेरिका को अहम चिकित्सीय मदद दी थी. भारत अपनी चुनौतियों का सामना कर रहा है, ऐसे में अब मदद के लिए कदम बढ़ाने की बारी हमारी है. इसलिए यह एक पारस्परिक सहयोग है.'

ये भी पढ़ें : रिजर्व बैंक का चालू वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति दर 5.1 प्रतिशत रहने का अनुमान

वॉशिंगटन : अमेरिका के शीर्ष संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. एंथनी फाउची ने बृहस्पतिवार को कहा कि उनका देश कोविड-19 चिकित्सा विधि की सुरक्षा और असर के आकलन के लिए वैश्विक क्लिनिकल ट्रायल में भारतीय जांचकर्ताओं को शामिल करने के लिए इच्छुक है.

डॉ. फाउची (Anthony Fauci) ने अमेरिका-भारत सामरिक एवं भागीदारी मंच (US-India Strategic Partnership Forum) द्वारा आयोजित संवाद के दौरान कहा कि अमेरिका के एलर्जी एवं संक्रामक रोग संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शस डिजीजेज (NIAID) का भारत में समकक्ष एजेंसियों के साथ काम करने का लंबा इतिहास रहा है.

उन्होंने कहा, 'लंबे समय से चले आ रहे भारत-अमेरिका टीका कार्य कार्यक्रम के तहत हमलोग सार्स-सीओवी-2 (सीवियर एक्यूट रेस्पीरेटरी सिंड्रोम कोरोनावायरस 2) टीका (Corona Vaccine) से संबंधित अनुसंधान पर भारत के साथ काम जारी रखेंगे. हमलोग कोविड-19 चिकित्सा विधि की सुरक्षा एवं असर के आकलन के लिए वैश्विक क्लिनिकल ट्रायल में भारतीय जांचकर्ताओं को भी शामिल करने के लिए इच्छुक हैं.'

वायरस के स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने पर आश्वस्त नहीं फाउची

डॉ. फाउची इस बात को भी रखते रहे हैं कि वे आश्वस्त नहीं (not convinced) है कि कोविड-19 स्वाभाविक रूप से विकसित हुआ है, और चीन को वायरस की उत्पत्ति को उजागर करने के लिए एक जांच आयोजित करनी चाहिए.

एक इवेंट में यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें लगता है कि कोरोना वायरस स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हुआ है, फाउची ने कहा नहीं. मैं इसके बारे में आश्वस्त नहीं हूं, मुझे लगता है कि हमें चीन में क्या हुआ, इसकी जांच की जानी चाहिए.

फाउची ने आगे कहा, 'निश्चित रूप से जिन लोगों ने इसकी जांच की थी, उनका कहना है कि यह संभवतः एक पशु जलाशय से उभरा था, लेकिन यह कुछ और हो सकता था, और हमें इसका पता लगाने की आवश्यकता है. यह वजह है कि मैं चाहता हूं कि चीन इसकी जांच करे और सबसे सामने इसे प्रदर्शित करे.'

कोरोना वायरस को पहली बार दिसंबर 2019 में चीनी शहर वुहान से रिपोर्ट किया गया था. कई रिपोर्टों में वायरस की उत्पत्ति वहां की एक प्रयोगशाला से होने का दावा किया गया है.

कोरोना से रोकथाम में भारत का योगदान महत्वपूर्ण

एनआईएच और भारत के जैवप्रौद्योगिकी विभाग के साथ भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने पहले भी महत्वपूर्ण वैज्ञानिक एवं जनस्वास्थ्य संबंधी खोज में मदद की है.

डॉ फाउची ने कहा, 'मुझे भरोसा है कि वे भविष्य में भी इसे जारी रखेंगे. वैश्विक वैज्ञानिक ज्ञान के क्षेत्र में भारत के योगदान से हम सभी परिचित हैं. सरकार के मजबूत समर्थन और व्यापक बायोफार्मा निजी क्षेत्र के सहयोग से इसी ज्ञान की बदौलत कोविड-19 रोकथाम और देखभाल के लिए समाधान प्रदान किया जा रहा है.'

टीकाकरण ही रोकथाम

अमेरिका में भारत के राजदूत तरणजीत सिंह संधू ने कहा कि भारत ने अपनी और वैश्विक जरूरतों की पूर्ति के लिए टीका उत्पादन को बढ़ाया है. इसके लिए बेहतर गुणवत्ता का कच्चा माल और घटक सामग्री उपलब्ध हो, यह सुनिश्चित करने में वह अमेरिका के सहयोग पर निर्भर है.

उन्होंने कहा, 'दुनिया का टीकाकरण करना ही इस महामारी की अगली लहर को रोकने और आर्थिक सुधार में तेजी लाने की दिशा में हमारा सर्वश्रेष्ठ तरीका है.'

उन्होंने कहा कि भारत-अमेरिका स्वास्थ्य सहयोग नया नहीं है और इसके तहत ही दोनों देशों ने रोटावायरस के खिलाफ टीका विकसित किया है, जो बच्चों में गंभीर डायरिया का कारण बनता है.

उन्होंने कहा कि भारतीय कंपनियों ने बेहद किफायती दर पर एचआईवी की दवाओं का निर्माण किया है जिनका इस्तेमाल अफ्रीकी देशों में होता है और यह अमेरिकी संगठनों एवं निजी क्षेत्र के बीच सहयोग के कारण हुआ है.

यूएसआईएसपीएफ के अध्यक्ष मुकेश अघी ने कहा, 'मुझे लगता है कि यह समझना महत्वपूर्ण है कि जब पिछले साल अमेरिका ऐसे ही संकट से गुजर रहा था तब भारत ही था जिसने अमेरिका को अहम चिकित्सीय मदद दी थी. भारत अपनी चुनौतियों का सामना कर रहा है, ऐसे में अब मदद के लिए कदम बढ़ाने की बारी हमारी है. इसलिए यह एक पारस्परिक सहयोग है.'

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