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ईरान और अमेरिका के बीच साइबर युद्ध, एक नजर

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Published : Jan 14, 2020, 10:33 PM IST

Updated : Jan 15, 2020, 2:08 PM IST

अमेरिका और ईरान के बीच तनाव जारी है. पिछले सप्ताह दोनों देशों के बीच युद्ध जैसी स्थिति बन गई थी. हालांकि, अब दोनों ने अपने-अपने कदम वापस खींच लिए हैं. पर अभी भी बयानबाजी जारी है. ऐसे में चर्चा है कि दोनों के बीच बड़े पैमाने पर युद्ध भले ही ना हो, लेकिन साइबर वॉर से इनकार नहीं किया जा सकता है. वैसे भी पिछले 10 सालों से ईरान और अमेरिका के बीच कई बार साइबर वॉर देखने को मिल चुका है. एक नजर...

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ईरान और अमेरिका के बीच साइबर युद्ध

हैदराबाद : ईरान के टॉप कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद अमेरिका के साथ उनके रिश्तों में काफी गिरावट आई है. अमेरिकी सैनिकों ने इराक में सुलेमानी की हत्या कर दी थी. इसमें इजरायल की भी भूमिका थी. इजरायल ने अमेरिका के साथ खुफिया सूचना साझा किया था. विशेषज्ञों का कहना है कि दोनों ही देशों के बीच युद्ध भले ही ना हो, लेकिन छद्म युद्ध की स्थिति बनी रहेगी. साइबर वॉर उसी का एक हिस्सा है. पिछले दशक में ईरान और अमेरिका के बीच साइबर वॉर के कई उदाहरण देखने को मिले. आइए इन पर डालते हैं एक नजर...

अमेरिकी साइबर हमला
2006 में अमेरिका ने ईरान के 'नटांज' पर 'स्टक्स' वायरस से हमला किया. इसमें ईरान के एक हजार से अधिक सेन्ट्रीफ्यूज प्रभावित हो गए. 30 हजार से अधिक कंप्यूटर इन्फैक्टेड हुए. ईरान ने इसके बाद 10 हजार से अधिक कंप्यूटर को ऑफ लाइन कर दिया था.

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ईरान और अमेरिका के बीच साइबर युद्ध
इसी साल अमेरिका ने 'ऑपरेशन ओलंपिक गेम्स' के नाम से दो वायरस (फ्लेम और वाइपर) के जरिए हमला किया.2019 में जब ईरान ने एक अमेरिकी ड्रोन को हॉर्मुज की खाड़ी में मार गिराया, तो अमेरिका ने फिर से साइबर हमला किया. इसमें अमेरिका ने ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्पस के डेटाबेस पर चोट पहुंचायी. अमेरिका का दावा है कि इस डेटा के इस्तेमाल से ईरान पारस की खाड़ी में ऑयल टैंकर पर हमला करता था.साइबर मॉनिटरिंग फर्म नेटब्लॉक्स ने इस घटना की पुष्टि भी की है.सितंबर 2019 में दो सऊदी तेल कंपनियों पर हमले के बाद अमेरिका ने ईरान के उस हार्डवेयर को प्रभावित किया, जिसके जरिए प्रोपेगेंडा फैलाने का काम होता था. अमेरिका ने कहा कि वह बिना काइनेटिक स्ट्राइक के ही ईरान को संदेश देना चाहता था.ईरानी साइबर हमलाइज़ अद-दीन अल-कसम साइबर फाइटर्स ईरान का मशहूर हैकर समूह है. इसने सितंबर 2012 में अमेरिकी वित्तीय संस्थानों पर डीडीओएस के जरिए साइबर हमला किया. इसी महीने सेन. जो. लिबरमैन ने दावा किया कि यह समूह आईआरजीसी के एलीट फोर्स कद्स से जुड़ा है.इसके अलावा ईरान के एपीटी 33 समूह ने संयुक्त राज्य अमेरिका, सऊदी अरब और दक्षिण कोरिया में विमानन, सैन्य और ऊर्जा लक्ष्यों के खिलाफ साइबर जासूसी अभियान चलाया. साइबर सिक्यूरिटी फर्म फायरआई ने इसकी पुष्टि की थी.फॉसफोरस समूह ने 2019 में ट्रंप के पुन: चुनाव अभियान के ई-मेल को हैक करने की कोशिश की. साथ ही अमेरिकी सरकार के अधिकारियों, पत्रकारों और ईरान के बाहर रहने वाले ईरानियों के अकाउंटस को भी तोड़ने का प्रयास किया. माइक्रोसॉफ्ट ने फॉसफोरस समूह को ईरान सरकार से जुड़ा पाया.ऑयलरिग- यह समूह ईरान के बाहर निजी उद्योगों पर हमला करता है. फरवरी 2014 में सबसे प्रसिद्ध हैकिंग शेल्डन एडल्सन के लॉस वेगास सैंड्स कॉरपोरेशन से जुड़ा है. इस समूह को रूस के एक समूह एफएसबी टुर्ला ने अपना निशाना बना लिया था. टुर्ला मुख्य रूप से मध्य पूर्व के देशों में सक्रिय रहा है. यह यूनाइटेड किंगडम में भी सक्रिय रहा है.ईरानी डार्क कोडर्स टीम - यह हैकिंग ग्रुप मुख्य रूप से साइबर-बर्बरता पर केंद्रित है. इसने अमेरिकी और इजरायली वेबसाइटों को 2012 में प्रो-हिजबुल्लाह और ईरान समर्थक प्रचार के साथ हटा दिया. समूह को ईरानी सरकार के साथ नहीं जोड़ा गया है.

कब क्या हुआ जानें-
जुलाई 2010 - बेलक्सियन कंप्यूटर सुरक्षा कंपनी द्वारा स्टक्सनेट वायरस की पहचान की गई. बाद के तकनीकी विश्लेषण से पता चला कि मालवेयर की संभावना ईरानी औद्योगिक सुविधाओं को लक्षित करने के लिए बनाई गई थी.

25 सितंबर, 2010 -अमेरिका ने ईरान की परमाणु सुविधाओं को लक्षित किया. जिसमें 30,000 कंप्यूटर संक्रमित हो गए थे.

25 अप्रैल, 2011 - ईरान की साइबर डिफेंस एजेंसी ने स्टार्स नाम का एक वायरस खोजा, जो अपनी परमाणु सुविधाओं में घुसपैठ और क्षति को रोकने के लिए बनाया गया था.

23 अप्रैल, 2012 अमेरिकी साइबर हमले ने ईरान के कई तेल टर्मिनलों को ऑफ़लाइन होने के लिए मजबूर किया.

9 मई, 2012 - ईरान ने स्वीकार किया कि फ्लेम नामक एक वायरस ने सरकारी कंप्यूटरों को संक्रमित किया,जो डेटा चोरी करने में सक्षम था.

19 जून, 2012 - पश्चिमी अधिकारियों ने वाशिंगटन पोस्ट को बताया कि अमेरिकी और इजरायल ने साइबरवार अभियान की तैयारी के लिए ईरानी कंप्यूटर नेटवर्क पर खुफिया जानकारी एकत्र करने के लिए फ्लेम वायरस तैनात किया था.

जुलाई 2012 - ईरानी हैकरों ने इजरायली सरकारी अधिकारियों को मैडी नाम के साइबर जासूसी उपकरण के साथ निशाना बनाया. मैलवेयर ने कीस्ट्रोक्स, रिकॉर्ड किए गए ऑडियो और दस्तावेजों को चुरा लिया.

अगस्त 2012 - शामून वायरस ने सऊदी अरामको के स्वामित्व वाले सभी कॉर्पोरेट कंप्यूटरों में से तीन-चौथाई डाटा को मिटा दिया और डेटा को एक जलते हुए अमेरिकी ध्वज की छवि के साथ बदल दिया.अमेरिकी अधिकारियों ने साइबर हमले के लिए ईरान को दोषी ठहराया.

11 सितंबर, 2012 - इज़ ऐड-दीन अल-कसम साइबर फाइटर्स नामक एक समूह ने ऑपरेशन अबाबील नामक साइबर अभियान में अमेरिकी बैंकिंग बुनियादी ढांचे के खिलाफ डीडीओएस हमले का निर्देश दिया.

12 अक्टूबर, 2012 अमेरिकी अधिकारी ने ईरानी हैकर्स को अमेरिकी बैंकों और सऊदी तेल सुविधाओं के खिलाफ हमलों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया.

8 जनवरी, 2013 - अमेरिकी अधिकारियों ने ऑपरेशन अबाबील बैंकिंग साइबर हमले के लिए ईरान को दोषी ठहराया.

27 सितंबर, 2013 - ईरानी हैकरों ने ईरान के साथ वार्ता के बीच अमेरिकी नौसेना के अयोग्य कंप्यूटरों से समझौता किया.

हैदराबाद : ईरान के टॉप कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद अमेरिका के साथ उनके रिश्तों में काफी गिरावट आई है. अमेरिकी सैनिकों ने इराक में सुलेमानी की हत्या कर दी थी. इसमें इजरायल की भी भूमिका थी. इजरायल ने अमेरिका के साथ खुफिया सूचना साझा किया था. विशेषज्ञों का कहना है कि दोनों ही देशों के बीच युद्ध भले ही ना हो, लेकिन छद्म युद्ध की स्थिति बनी रहेगी. साइबर वॉर उसी का एक हिस्सा है. पिछले दशक में ईरान और अमेरिका के बीच साइबर वॉर के कई उदाहरण देखने को मिले. आइए इन पर डालते हैं एक नजर...

अमेरिकी साइबर हमला
2006 में अमेरिका ने ईरान के 'नटांज' पर 'स्टक्स' वायरस से हमला किया. इसमें ईरान के एक हजार से अधिक सेन्ट्रीफ्यूज प्रभावित हो गए. 30 हजार से अधिक कंप्यूटर इन्फैक्टेड हुए. ईरान ने इसके बाद 10 हजार से अधिक कंप्यूटर को ऑफ लाइन कर दिया था.

etvbharat
ईरान और अमेरिका के बीच साइबर युद्ध
इसी साल अमेरिका ने 'ऑपरेशन ओलंपिक गेम्स' के नाम से दो वायरस (फ्लेम और वाइपर) के जरिए हमला किया.2019 में जब ईरान ने एक अमेरिकी ड्रोन को हॉर्मुज की खाड़ी में मार गिराया, तो अमेरिका ने फिर से साइबर हमला किया. इसमें अमेरिका ने ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्पस के डेटाबेस पर चोट पहुंचायी. अमेरिका का दावा है कि इस डेटा के इस्तेमाल से ईरान पारस की खाड़ी में ऑयल टैंकर पर हमला करता था.साइबर मॉनिटरिंग फर्म नेटब्लॉक्स ने इस घटना की पुष्टि भी की है.सितंबर 2019 में दो सऊदी तेल कंपनियों पर हमले के बाद अमेरिका ने ईरान के उस हार्डवेयर को प्रभावित किया, जिसके जरिए प्रोपेगेंडा फैलाने का काम होता था. अमेरिका ने कहा कि वह बिना काइनेटिक स्ट्राइक के ही ईरान को संदेश देना चाहता था.ईरानी साइबर हमलाइज़ अद-दीन अल-कसम साइबर फाइटर्स ईरान का मशहूर हैकर समूह है. इसने सितंबर 2012 में अमेरिकी वित्तीय संस्थानों पर डीडीओएस के जरिए साइबर हमला किया. इसी महीने सेन. जो. लिबरमैन ने दावा किया कि यह समूह आईआरजीसी के एलीट फोर्स कद्स से जुड़ा है.इसके अलावा ईरान के एपीटी 33 समूह ने संयुक्त राज्य अमेरिका, सऊदी अरब और दक्षिण कोरिया में विमानन, सैन्य और ऊर्जा लक्ष्यों के खिलाफ साइबर जासूसी अभियान चलाया. साइबर सिक्यूरिटी फर्म फायरआई ने इसकी पुष्टि की थी.फॉसफोरस समूह ने 2019 में ट्रंप के पुन: चुनाव अभियान के ई-मेल को हैक करने की कोशिश की. साथ ही अमेरिकी सरकार के अधिकारियों, पत्रकारों और ईरान के बाहर रहने वाले ईरानियों के अकाउंटस को भी तोड़ने का प्रयास किया. माइक्रोसॉफ्ट ने फॉसफोरस समूह को ईरान सरकार से जुड़ा पाया.ऑयलरिग- यह समूह ईरान के बाहर निजी उद्योगों पर हमला करता है. फरवरी 2014 में सबसे प्रसिद्ध हैकिंग शेल्डन एडल्सन के लॉस वेगास सैंड्स कॉरपोरेशन से जुड़ा है. इस समूह को रूस के एक समूह एफएसबी टुर्ला ने अपना निशाना बना लिया था. टुर्ला मुख्य रूप से मध्य पूर्व के देशों में सक्रिय रहा है. यह यूनाइटेड किंगडम में भी सक्रिय रहा है.ईरानी डार्क कोडर्स टीम - यह हैकिंग ग्रुप मुख्य रूप से साइबर-बर्बरता पर केंद्रित है. इसने अमेरिकी और इजरायली वेबसाइटों को 2012 में प्रो-हिजबुल्लाह और ईरान समर्थक प्रचार के साथ हटा दिया. समूह को ईरानी सरकार के साथ नहीं जोड़ा गया है.

कब क्या हुआ जानें-
जुलाई 2010 - बेलक्सियन कंप्यूटर सुरक्षा कंपनी द्वारा स्टक्सनेट वायरस की पहचान की गई. बाद के तकनीकी विश्लेषण से पता चला कि मालवेयर की संभावना ईरानी औद्योगिक सुविधाओं को लक्षित करने के लिए बनाई गई थी.

25 सितंबर, 2010 -अमेरिका ने ईरान की परमाणु सुविधाओं को लक्षित किया. जिसमें 30,000 कंप्यूटर संक्रमित हो गए थे.

25 अप्रैल, 2011 - ईरान की साइबर डिफेंस एजेंसी ने स्टार्स नाम का एक वायरस खोजा, जो अपनी परमाणु सुविधाओं में घुसपैठ और क्षति को रोकने के लिए बनाया गया था.

23 अप्रैल, 2012 अमेरिकी साइबर हमले ने ईरान के कई तेल टर्मिनलों को ऑफ़लाइन होने के लिए मजबूर किया.

9 मई, 2012 - ईरान ने स्वीकार किया कि फ्लेम नामक एक वायरस ने सरकारी कंप्यूटरों को संक्रमित किया,जो डेटा चोरी करने में सक्षम था.

19 जून, 2012 - पश्चिमी अधिकारियों ने वाशिंगटन पोस्ट को बताया कि अमेरिकी और इजरायल ने साइबरवार अभियान की तैयारी के लिए ईरानी कंप्यूटर नेटवर्क पर खुफिया जानकारी एकत्र करने के लिए फ्लेम वायरस तैनात किया था.

जुलाई 2012 - ईरानी हैकरों ने इजरायली सरकारी अधिकारियों को मैडी नाम के साइबर जासूसी उपकरण के साथ निशाना बनाया. मैलवेयर ने कीस्ट्रोक्स, रिकॉर्ड किए गए ऑडियो और दस्तावेजों को चुरा लिया.

अगस्त 2012 - शामून वायरस ने सऊदी अरामको के स्वामित्व वाले सभी कॉर्पोरेट कंप्यूटरों में से तीन-चौथाई डाटा को मिटा दिया और डेटा को एक जलते हुए अमेरिकी ध्वज की छवि के साथ बदल दिया.अमेरिकी अधिकारियों ने साइबर हमले के लिए ईरान को दोषी ठहराया.

11 सितंबर, 2012 - इज़ ऐड-दीन अल-कसम साइबर फाइटर्स नामक एक समूह ने ऑपरेशन अबाबील नामक साइबर अभियान में अमेरिकी बैंकिंग बुनियादी ढांचे के खिलाफ डीडीओएस हमले का निर्देश दिया.

12 अक्टूबर, 2012 अमेरिकी अधिकारी ने ईरानी हैकर्स को अमेरिकी बैंकों और सऊदी तेल सुविधाओं के खिलाफ हमलों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया.

8 जनवरी, 2013 - अमेरिकी अधिकारियों ने ऑपरेशन अबाबील बैंकिंग साइबर हमले के लिए ईरान को दोषी ठहराया.

27 सितंबर, 2013 - ईरानी हैकरों ने ईरान के साथ वार्ता के बीच अमेरिकी नौसेना के अयोग्य कंप्यूटरों से समझौता किया.

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cyber attack between Iran and USA

ईरान और अमेरिका के बीच साइबर युद्ध पर एक नजर

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अमेरिका और ईरान के बीच तनाव जारी है. पिछले सप्ताह दोनों देशों के बीच युद्ध जैसी स्थिति बन गई थी. हालांकि, अब दोनों ने अपने-अपने कदम वापस खींच लिए हैं. पर अभी भी बयानबाजी जारी है. ऐसे में चर्चा है कि दोनों के बीच बड़े पैमाने पर युद्ध भले ही ना हो, लेकिन साइबर वॉर से इनकार नहीं किया जा सकता है. वैसे भी पिछले 10 सालों से ईरान और अमेरिका के बीच कई बार साइबर वॉर देखने को मिल चुका है. एक नजर...



हैदराबाद : ईरान के टॉप कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद अमेरिका के साथ उनके रिश्तों में काफी गिरावट आई है. अमेरिकी सैनिकों ने इराक में सुलेमानी की हत्या कर दी थी. इसमें इजरायल की भी भूमिका थी. इजरायल ने अमेरिका के साथ खुफिया सूचना साझा किया था. विशेषज्ञों का कहना है कि दोनों ही देशों के बीच युद्ध भले ही ना हो, लेकिन छद्म युद्ध की स्थिति बनी रहेगी. साइबर वॉर उसी का एक हिस्सा है. पिछले दशक में ईरान और अमेरिका के बीच साइबर वॉर के कई उदाहरण देखने को मिले. आइए इन पर डालते हैं एक नजर...

अमेरिकी साइबर हमला

2006 में अमेरिका ने ईरान के 'नटांज' पर 'स्टक्स' वायरस से हमला किया. इसमें ईरान के एक हजार से अधिक सेन्ट्रीफ्यूज प्रभावित हो गए. 30 हजार से अधिक कंप्यूटर इन्फैक्टेड हुआ. ईरान ने इसके बाद 10 हजार से अधिक कंप्यूटर को ऑफ लाइन कर दिया था. 

इसी साल अमेरिका ने 'ऑपरेशन ओलंपिक गेम्स' के नाम से दो वायरस (फ्लेम और वाइपर) के जरिए हमला किया.

2019 में जब ईरान ने एक अमेरिकी ड्रोन को हॉर्मुज की खाड़ी में मार गिराया, तो अमेरिका ने फिर से साइबर हमला किया. इसमें अमेरिका ने ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्पस के डेटाबेस पर चोट पहुंचायी. अमेरिका का दावा है कि इस डेटा के इस्तेमाल से ईरान पारस की खाड़ी में ऑयल टैंकर पर हमला करता था. 

साइबर मॉनिटरिंग फर्म नेटब्लॉक्स ने इस घटना की पुष्टि भी की है. 

सितंबर 2019 में दो सऊदी तेल कंपनियों पर हमले के बाद अमेरिका ने ईरान के उस हार्डवेयर को प्रभावित किया, जिसके जरिए प्रोपेगेंडा फैलाने का काम होता था. अमेरिका ने कहा कि वह बिना काइनेटिक स्ट्राइक के ही ईरान को संदेश देना चाहता था. 

ईरानी साइबर हमला 

इज़ अद-दीन अल-कसम साइबर फाइटर्स ईरान का मशहूर हैकर समूह है. इसने सितंबर 2012 में अमेरिकी वित्तीय संस्थानों पर डीडीओएस के जरिए साइबर हमला किया. इसी महीने सेन. जो. लिबरमैन ने दावा किया कि यह समूह आईआरजीसी के एलीट फोर्स कद्स से जुड़ा है. 

इसके अलावा ईरान के एपीटी 33  समूह ने संयुक्त राज्य अमेरिका, सऊदी अरब और दक्षिण कोरिया में विमानन, सैन्य और ऊर्जा लक्ष्यों के खिलाफ साइबर जासूसी अभियान चलाया. साइबर सिक्यूरिटी फर्म फायरआई ने इसकी पुष्टि की थी. 

फॉसफोरस समूह ने 2019 में ट्रंप के पुन: चुनाव अभियान के ई-मेल को हैक करने की कोशिश की. साथ ही अमेरिकी सरकार के अधिकारियों, पत्रकारों और ईरान के बाहर रहने वाले ईरानियों के अकाउंटस को भी तोड़ने का प्रयास किया. माइक्रोसॉफ्ट ने फॉसफोरस समूह को ईरान सरकार से जुड़ा पाया. 

ऑयलरिग- यह समूह ईरान के बाहर निजी उद्योगों पर हमला करता है. फरवरी 2014 में सबसे प्रसिद्ध हैकिंग शेल्डन एडल्सन के लॉस वेगास सैंड्स कॉरपोरेशन से जुड़ा है. इस समूह को रूस के एक समूह एफएसबी टुर्ला ने अपना निशाना बना लिया था. टुर्ला मुख्य रूप से मध्य पूर्व के देशों में सक्रिय रहा है. यह यूनाइटेड किंगडम में भी सक्रिय रहा है. 

ईरानी डार्क कोडर्स टीम - यह हैकिंग ग्रुप मुख्य रूप से साइबर-बर्बरता पर केंद्रित है. इसने अमेरिकी और इजरायली वेबसाइटों को 2012 में प्रो-हिजबुल्लाह और ईरान समर्थक प्रचार के साथ हटा दिया. समूह को ईरानी सरकार के साथ नहीं जोड़ा गया है.


Conclusion:
Last Updated : Jan 15, 2020, 2:08 PM IST
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