वाशिंगटन : अमेरिका के एक शीर्ष राजनयिक ने कहा है कि चीन के पास अगला दलाई लामा चुनने का कोई धार्मिक आधार नहीं है और बौद्ध धर्म के तिब्बती अनुयायी सैकड़ों साल से अपना आध्यात्मिक नेता सफलतापूर्वक चुनते आए हैं.
अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अमेरिका के विशेष राजदूत (एम्बेसेडर एट लार्ज) सैमुएल डी ब्राउनबैक ने अक्टूबर में भारत की अपनी यात्रा को याद करते हुए एक कांफ्रेंस कॉल के दौरान कहा कि वह भारत के धर्मशाला में तिब्बती समुदाय से बात करने और उन्हें यह बताने गए थे कि 'अमेरिका चीन द्वारा अगला दलाई लामा चुने जाने के खिलाफ है.'
उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में कहा, 'उनके पास ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है. उनके पास ऐसा करने का कोई धार्मिक आधार नहीं है. बौद्ध धर्म के तिब्बती अनुयायी सैकड़ों बरसों से अपना नेता सफलतापूर्वक चुनते आए हैं और उनके पास अब भी ऐसा करने का अधिकार है.'
ब्राउनबैक ने कहा कि अमेरिका इस बात का समर्थन करता है कि धार्मिक समुदायों को अपना नेता चुनने का अधिकार है.
उन्होंने कहा, 'इसमें अगले दलाई लामा भी शामिल हैं.'
ब्राउनबैक ने कहा, 'हमारा मानना है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का यह कहना सरासर गलत है कि उन्हें इसका (दलाई लामा चुनने का) अधिकार है.'
14वें दलाई लामा (85) 1959 में तिब्बत से निर्वासित होकर भारत में रह रहे हैं. वह स्थानीय लोगों के विद्रोह पर चीनी कार्रवाई के बाद भारत आ गए थे. निर्वासन में रह रही तिब्बती सरकार हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से काम करती है. भारत में 1,60,000 से अधिक तिब्बती रहते हैं.
ब्राउनबैक ने चीन पर धार्मिक उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए कहा, 'इससे उन्हें आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में मदद नहीं मिलेगी.'
ब्राउनबैक ने कहा कि चीन दुनिया को यह बताने की कोशिश कर रहा है कि यह आतंकवाद को रोकने की कोशिश है, लेकिन इससे वे और अधिक आतंकवादी पैदा करेंगे.
उन्होंने कहा, 'आतंकवाद से निपटने का तरीका सभी को बंद करके रखना नहीं है. आतंकवाद से निपटने के लिए धार्मिक स्वतंत्रता देना आवश्यक है.'
ब्राउनबैक ने चीन से अपील की कि वह उइगर, बौद्ध धर्म के तिब्बती अनुयायियों, इसाइयों और फालुन गोंग समेत विभिन्न आस्थाओं पर हमला करना बंद करे.