नई दिल्ली/गाजियाबाद: दिवाली के बाद दिल्ली एनसीआर की हवा में प्रदूषण का जहर तेजी के साथ घुल रहा है. हवा में हुए प्रदूषण के इजाफे के बाद लोगों को सांस लेने समेत अन्य स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. जो लोग पहले से ही अस्थमा आदि से पीड़ित हैं उन लोगों को भी बढ़ते प्रदूषण स्तर के चलते परेशानियां उठानी पड़ रही हैं.
NCR में हर साल अक्टूबर महीना शुरू होते ही हवा में प्रदूषण घुलने लगता है जो कि ठंड का मौसम नजदीक आते ही बढ़ना शुरू हो जाता है. प्रदूषण के कारण सरकारी अस्पताल और निजी अस्पतालों में सांस व दमा रोगियों की संख्या फिर बढ़ने लगी है. हर्ष ईएनटी अस्पताल के डायरेक्टर डॉ ब्रजपाल सिंह त्यागी के मुताबिक उनके अस्पताल में एलर्जी और अस्थमा से संबंधित मरीजों की संख्या में तकरीबन 40% तक का इजाफा हुआ है.
अधिकतर मरीजों में सांस लेने की दिक्कत देखने को मिल रही है. प्रदूषण के चलते मरीजों में ऑक्सीजन की कमी भी हो रही है. जिसके चलते हृदय संबंधित समस्याएं भी सामने आ रही हैं. प्रदूषण स्तर में अगर और बढ़ोतरी होती है तो अस्थमा से जूझ रहे मरीजों की परेशानी और बढ़ सकती है.
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गाजियाबाद के जिला एमएमजी अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ अनुराग भार्गव ने बताया बढ़ते प्रदूषण स्तर के चलते अस्थमा आदि के मरीजों में इजाफा हुआ है. लेकिन अभी संख्या के बारे में कुछ कह पाना मुश्किल होगा क्योंकि अभी लोग त्योहार मनाने में व्यस्त हैं. संयुक्त चिकित्सालय संजय नगर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. संजय तेवतिया ने बताया कि बढ़ते प्रदूषण स्तर के चलते अस्था और ब्रोंकाइटिस के मरीजों में इजाफा हुआ है. जो पहले से ही अस्थमा और ब्रोंकाइटिस से पीड़ित है उनको प्रदूषण में हुई बढ़ोतरी के कारण खासी परेशानी हो रही है.
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मैक्स अस्पताल, वैशाली में पल्मोनोलॉजी विभाग के प्रिंसिपल कंसल्टेंट डॉ. शरद जोशी ने बताया हमारे फेफड़ों पर वायु प्रदूषण का असर इस पर निर्भर करता है कि हवा में किस प्रकार के प्रदूषक हैं. प्रदूषक कितना सघन है और आपके फेफड़ों में कितनी मात्रा में प्रदूषक पहुंच रहे हैं. विशेष कर इन दिनों भयानक स्मॉग और प्रदूषण की वजह से धूम्रपान नहीं करने वालों को भी सीओपीडी और फेफड़ों की अन्य जानलेवा बीमारियों का बहुत खतरा है.
प्रदूषण के लक्ष्णः
आंखों में जलन, पानी आना और लाल होना, नाक बंद रहना, नाक बहना, बार-बार छींक, सिरदर्द, सांस फूलना, खांसी, छाती में भारीपन जैसे लक्षणों से आप समझ सकते हैं कि हवा की गुणवत्ता में गिरावट आई है. इससे बचने की जरूरत है. ये लक्षण कितने गंभीर होंगे यह प्रदूषण के स्तर, एक्सपोजर (प्रत्यक्ष सामना) और निजी स्वास्थ्य की स्थिति पर निर्भर करेगा. परिवेश में प्रदूषण की अधिकता से दिल का दौरा, स्ट्रोक और सीओपीडी का खतरा भी बढ़ता है.