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मुफ्ती मजहर उल हक कासमी बोले जानबूझकर रोजा छोड़ना गुनाह-ए-कबीरा - Mufti mazhar ul haq Qasmi

ईटीवी भारत को मुफ्ती मजहर उल हक कासमी ने बताया कि अगर कोई तंदुरुस्त आदमी जानबूझकर रोजा छोड़ रहा है, तो वह बहुत बड़ा गुनहगार है. क्योंकि जानबूझकर रोजा छोड़ना गुनाह-ए-कबीरा है.

punishment for leaving Ramadan
मुफ्ती मजहर उल हक कासमी
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Published : Apr 28, 2021, 2:14 PM IST

नई दिल्ली/गाजियाबाद: 14 अप्रैल से शुरू हुए मुस्लिम समुदाय के रमजान के महीने को 15 दिन बीत चुके हैं. इन दिनों रमजान रखने वाले शख्स को कई गुना बहुत अधिक सवाब मिलता है. तो वहीं दूसरी ओर रमजान में जानबूझकर रोजे ना रखने वाले शख्स को कई गुना अजाब (सजा) मिलती है. रमजान ना रखने वाले शख्स को क्या मिलेगी सजा इसी को जानने के लिए ईटीवी भारत ने मुफ्ती से की बातचीत.

रमजान छोड़ने की सजा
मुरादनगर के मुफ्ती मजहर उल हक कासमी का कहना है कि जो शख्स मजहब-ए-इस्लाम को मानने वाला होगा वह कभी रोजा नहीं छोड़ेगा. लेकिन जिस शख्स के दिल में खुदा का डर नहीं है. वही रोजा छोड़ सकता है.जहन्नुम की आग में जलेगा बेरोजेदार

मुफ्ती ने बताया कि मुस्लिम हदीस में यह फरमाया गया है कि जिस शख्स ने जानबूझकर एक रोजा भी छोड़ दिया है. उसने गुनाह-ए-कबीरा किया है. गुनाह-ए-कबीरा का मतलब है कि बगैर जहन्नुम (नर्क) में जाए उसकी बख्शीश नहीं होती है. या तो वह उस छोड़े हुए रोजे की तौबा करते हुए रोजा रखे वरना यह बहुत बड़ा गुनाह है.

ये भी पढ़ें:-कोरोना संक्रमण से बचने के लिए छोड़ सकते हैं रोजा, जानिए मुफ्ती ने क्या कहा...


जानबूझकर रोजा छोड़ने वाला बड़ा गुनहगार

मुफ्ती ने बताया कि रमजान के महीने मे रोजा रखने की फजीलत ही अलग है. क्योंकि अगर सवाब कमाने के लिए किसी शख्स ने 1 साल तक भी रोजा रखे तो उसको रमजान के दिनों के बराबर सबाब नहीं मिलेगा. लिहाजा कोई भी तंदुरुस्त आदमी जानबूझकर रोजा छोड़ रहा है. तो वह बहुत बड़ा गुनहगार है.

नई दिल्ली/गाजियाबाद: 14 अप्रैल से शुरू हुए मुस्लिम समुदाय के रमजान के महीने को 15 दिन बीत चुके हैं. इन दिनों रमजान रखने वाले शख्स को कई गुना बहुत अधिक सवाब मिलता है. तो वहीं दूसरी ओर रमजान में जानबूझकर रोजे ना रखने वाले शख्स को कई गुना अजाब (सजा) मिलती है. रमजान ना रखने वाले शख्स को क्या मिलेगी सजा इसी को जानने के लिए ईटीवी भारत ने मुफ्ती से की बातचीत.

रमजान छोड़ने की सजा
मुरादनगर के मुफ्ती मजहर उल हक कासमी का कहना है कि जो शख्स मजहब-ए-इस्लाम को मानने वाला होगा वह कभी रोजा नहीं छोड़ेगा. लेकिन जिस शख्स के दिल में खुदा का डर नहीं है. वही रोजा छोड़ सकता है.जहन्नुम की आग में जलेगा बेरोजेदार

मुफ्ती ने बताया कि मुस्लिम हदीस में यह फरमाया गया है कि जिस शख्स ने जानबूझकर एक रोजा भी छोड़ दिया है. उसने गुनाह-ए-कबीरा किया है. गुनाह-ए-कबीरा का मतलब है कि बगैर जहन्नुम (नर्क) में जाए उसकी बख्शीश नहीं होती है. या तो वह उस छोड़े हुए रोजे की तौबा करते हुए रोजा रखे वरना यह बहुत बड़ा गुनाह है.

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जानबूझकर रोजा छोड़ने वाला बड़ा गुनहगार

मुफ्ती ने बताया कि रमजान के महीने मे रोजा रखने की फजीलत ही अलग है. क्योंकि अगर सवाब कमाने के लिए किसी शख्स ने 1 साल तक भी रोजा रखे तो उसको रमजान के दिनों के बराबर सबाब नहीं मिलेगा. लिहाजा कोई भी तंदुरुस्त आदमी जानबूझकर रोजा छोड़ रहा है. तो वह बहुत बड़ा गुनहगार है.

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