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गाजियाबाद महिला मजदूर ने सुनाया दर्द, लॉकडाउन 4 की शुरुआत में ही टूट रही उम्मीद

गाजियाबाद में लेबर चौक पर बैठे मजदूर लॉकडाउन 4 से काफी उम्मीदें लगाए बैठें हैं. लेकिन मजदूरों का मानना है कि कोरोना के डर कर से उन्हें कोई अपने घर पर काम के लिए नहीं बुला रहा है. फैक्ट्रियों खुल तो कई हैं लेकिन कम मजदूर काम कर सकते हैं. इसलिए फैक्ट्रियों से भी अभी बुलावा नहीं आया है.

ghaziabad laborers chowk
गाजियाबाद महिला मजदूर ने सुनाया दर्द,
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Published : May 19, 2020, 11:54 AM IST

नई दिल्ली/गाजियाबाद: एक आकलन के मुताबिक 70 फीसदी से ज्यादा मजदूर अपने गांव जा चुके हैं, लेकिन जो रह गए हैं. वो लॉकडाउन 4 की शुरुआत में काम की तलाश में रोड पर बैठे हैं. लेकिन उन्हें काम नहीं मिल रहा है.

लॉकडाउन 4 की शुरुआत में ही टूट रही उम्मीद



'काफी बुरा बीत रहा है लॉकडाउन'

हाथरस की रहने वाली महिला मजदूर चंचल का कहना है कि लॉकडाउन से पहले काम ठीक-ठाक चल रहा था. गुजारा चल जाता था और घर पर भी रुपये भेज देते थे. लेकिन लॉकडाउन की शुरुआत के बाद से जो दिन बीते, उनको कभी याद नहीं करना चाहेंगे. इस दौरान कोई खाना दे देता है, तो खा लेते हैं, नहीं तो भूखे ही सो जाते हैं. लॉकडाउन के तीन चरण में तो काम नहीं कर पाए, लेकिन चौथे चरण में उम्मीद लेकर लेबर चौक पर आए हैं. काम दोबारा शुरू होगा, तो गुजारा चल पाएगा. मकान मालिक लगातार किराया भी मांग रहा है.



'नहीं ले जाना चाहते लोग घर'

कोरोना के डर इतना है, कि लोग मजदूरों को काम नहीं दे रहे हैं. मजदूरों का कहना है कि फिलहाल प्लंबर, मिस्त्री जैसे काम लोग नहीं करवा रहे हैं. इन कामों को करवाने के लिए अपने घर में बुलाने की जरूरत पड़ती है. लोग फिलहाल मजदूरों को घर नहीं बुलाना चाहते हैं. लेकिन फिर भी लॉकडाउन 4 से काफी ज्यादा उम्मीदें हैं. फैक्ट्रियों खुल तो कई हैं लेकिन कम मजदूर काम कर सकते हैं. इसलिए फैक्ट्रियों से भी अभी बुलावा नहीं आया है.

नई दिल्ली/गाजियाबाद: एक आकलन के मुताबिक 70 फीसदी से ज्यादा मजदूर अपने गांव जा चुके हैं, लेकिन जो रह गए हैं. वो लॉकडाउन 4 की शुरुआत में काम की तलाश में रोड पर बैठे हैं. लेकिन उन्हें काम नहीं मिल रहा है.

लॉकडाउन 4 की शुरुआत में ही टूट रही उम्मीद



'काफी बुरा बीत रहा है लॉकडाउन'

हाथरस की रहने वाली महिला मजदूर चंचल का कहना है कि लॉकडाउन से पहले काम ठीक-ठाक चल रहा था. गुजारा चल जाता था और घर पर भी रुपये भेज देते थे. लेकिन लॉकडाउन की शुरुआत के बाद से जो दिन बीते, उनको कभी याद नहीं करना चाहेंगे. इस दौरान कोई खाना दे देता है, तो खा लेते हैं, नहीं तो भूखे ही सो जाते हैं. लॉकडाउन के तीन चरण में तो काम नहीं कर पाए, लेकिन चौथे चरण में उम्मीद लेकर लेबर चौक पर आए हैं. काम दोबारा शुरू होगा, तो गुजारा चल पाएगा. मकान मालिक लगातार किराया भी मांग रहा है.



'नहीं ले जाना चाहते लोग घर'

कोरोना के डर इतना है, कि लोग मजदूरों को काम नहीं दे रहे हैं. मजदूरों का कहना है कि फिलहाल प्लंबर, मिस्त्री जैसे काम लोग नहीं करवा रहे हैं. इन कामों को करवाने के लिए अपने घर में बुलाने की जरूरत पड़ती है. लोग फिलहाल मजदूरों को घर नहीं बुलाना चाहते हैं. लेकिन फिर भी लॉकडाउन 4 से काफी ज्यादा उम्मीदें हैं. फैक्ट्रियों खुल तो कई हैं लेकिन कम मजदूर काम कर सकते हैं. इसलिए फैक्ट्रियों से भी अभी बुलावा नहीं आया है.

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