नई दिल्ली/गाजियाबाद: शिक्षकों को समाज का निर्माता कहा जाता है लेकिन कोरोना काल में समाज का निर्माण करने वाले शिक्षक दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं. कोरोना के चलते अचानक नौकरी चले जाने से शिक्षक केवल आर्थिक समस्या ही नहीं बल्कि मानसिक प्रताड़ना से भी जूझ रहे हैं. ऐसे में शिक्षकों को अपना परिवार चलाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
शिक्षक अजीत कुमार दास ने बयां किया दर्द
शिक्षक अजीत कुमार दास साल 2003 से एक निजी स्कूल में स्पेनिश भाषा पढ़े रहे हैं. उन्हें भी स्कूल ने अचानक नौकरी से निकाल दिया है. उन्होंने बताया कि 26 जून को स्कूल से एक ईमेल आया. जिसमें लिखा था कि उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं. उन्होंने कहा कि अचानक नौकरी जाने के बाद इस संकट की घड़ी में वह अपने भाई, बहन की मदद लेकर परिवार चला रहे हैं लेकिन उन्हें चिंता सता रही है कि आखिर कब तक कोई उनकी मदद करता रहेगा. इस समय दूसरी नौकरी मिलने की भी कोई संभावना नहीं है.
वहीं शिक्षक स्मिता चौधरी बताती हैं कि कोरोना कॉल में अचानक नौकरी चले जाने से वो मानसिक तनाव की स्थिति से गुजर रही हैं. ऐसी स्थिति में वो जमा पूंजी से अपने परिवार का खर्च चला रही हैं लेकिन उन्हें चिंता सता रही है कि अगर जल्द नौकरी नहीं मिली तो आगे आने वाले समय में परिवार का पालन पोषण कैसे करेंगी.
16 साल से नौकरी कर रहीं थीं कविता
इनके अलावा कविता बतौर लाइब्रेरियन एक निजी स्कूल में 16 साल से नौकरी कर रही थी. कोरोना शुरू होने के बाद पहले तो स्कूल ने उनकी तनख्वाह आधी कर दी और उसके बाद 26 जून को स्कूल ने अचानक से उन्हें नौकरी से निकाल दिया. कविता ने बताया कि बीते 2 महीने से उनके पास नौकरी नहीं है. ऐसे में बच्चों की फीस और घर का किराया भरना उनके लिए एक बड़ी चुनौती है. कोरोना के चलते कहीं और नौकरी मिलना भी बहुत मुश्किल है.