नई दिल्ली/गाजियाबाद : कांग्रेस के दिग्गज नेता कपिल सिब्बल ने पार्टी छोड़ दी है. गत बुधवार को समाजवादी पार्टी के समर्थन से राज्यसभा के लिए नामांकन दाखिल करने के बाद सिब्बल ने इसकी औपचारिक घोषणा की. सिब्बल कांग्रेस हाईकमान, खासकर राहुल गांधी पर सवाल उठा चुके हैं. नामांकन से पहले सिब्बल बाकायदा सपा के दफ्तर गए और फिर वे पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ ही नामांकन करने पहुंचे. डेढ़ हफ्ते में जिन नेताओं ने कांग्रेस का दामन छोड़ा है उनमें हार्दिक पटेल, सुनील जाखड़ के बाद अब कपिल सिब्बल का नाम जुड़ चुका है.
सिब्बल के पार्टी छोड़ने पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा कि राजनीति में नेताओं की फितरत परिंदों जैसी होती है. परिंदों में फिरकापरस्ती नहीं होती है. कभी मंदिर पर जा बैठते हैं तो कभी मस्जिद पर. नेताओं को जहां अच्छा लगता है वहां चले जाते हैं. प्रमोद कृष्णम ने कहा कि सिब्बल के जाने से उन्हें तकलीफ है. उनके आगे की राजनीतिक सफर के लिए मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं हैं, जहां भी रहे खुश रहें.
प्रमोद कृष्णम ने कहा कि कपिल सिब्बल दिल से कांग्रेसी और गांधीवादी हैं. मुझे लगता है कि वह वापस लौट कर आएंगे. कांग्रेस ने तो उन तमाम नेताओं को भी स्वीकार किया है, जिन्होंने पार्टी छोड़ने के बाद उसको कोसा व गालियां दीं. सिब्बल ने तो कांग्रेस छोड़ने के बाद किसी प्रकार की कोई टिप्पणी तक नहीं की. सिब्बल जब चाहे वापस आ जाएं, कांग्रेस उनका उनका घर है. लेकिन अंतिम फैसला कपिल सिब्बल का ही होगा.
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क्षेत्रीय पार्टियों को कांग्रेस ने दी ताकत
समाजवादी पार्टी समेत कई क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों को ताकत देने का काम कांग्रेस पार्टी ने किया है. लेकिन क्षेत्रीय पार्टियों का मिजाज रहा है कि जब वह अपने क्षेत्र में ताकतवर होती हैं तोब वह बीजेपी से नहीं बल्कि कांग्रेस से लड़ती हैं. कांग्रेस पार्टी को अब बीजेपी के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों से भी लड़ना है.
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सिब्बल के जाने से कितना नुकसान
किसी नेता के जाने से कितना फायदा या नुकसान होता है यह तो आने वाला वक्त बताएगा. कांग्रेस पार्टी की ताकत गांधी परिवार है. हर पार्टी में नेताओं का आना-जाना लगा रहता है. जब नेता पार्टी को छोड़कर जाते हैं तो कार्यकर्ता मायूस होता है. नेताओं को छोड़कर जाने से कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरता है. देश में भाजपा का कोई विकल्प है तो वह सिर्फ कांग्रेस पार्टी है.