नई दिल्ली/गाजियाबाद: दिल्ली से सटे गाजियाबाद में एटलस साइकिल फैक्ट्री के कर्मचारियों को 'लेऑफ' पर भेजने का मामला ठंडा नहीं हुआ था कि शनिवार को साहिबाबाद औद्योगिक क्षेत्र की ऑटो गियर्स कंपनी ने भी अपने 186 मजदूरों को 'लेऑफ' पर भेज दिया है.
बता दें कि जब एक फैक्ट्री मजदूरों को लेऑफ पर भेजती है तो सिर्फ मजदूर नहीं, उनके परिवार पर भी आफत के बादल टूट जाते हैं. कुछ ऐसा ही इन दिनों गाजियाबाद में हो रहा है. दो नामी फैक्ट्रियों के मजदूरों को लेऑफ का नोटिस मिलने के बाद वे दर दर की ठोकरें खा रहे हैं. किसी की बेटी के डॉक्टर बनने का सपना टूट रहा है, तो कोई फैक्ट्री के बाहर बूढ़े मां-बाप की चिंता लेकर इस आस में खड़ा है कि इंसाफ कब मिलेगा.
श्रीलाल और शीतला प्रसाद समेत सैकड़ों मजदूरों का दर्द
लेऑफ पर भेजे गए कर्मचारियों को उन्हें कारण तक नहीं बताया गया है. इन्हीं मजदूरों में से एक हैं- श्रीलाल वर्मा. इन्हें फैक्ट्री ने अचानक बाहर का रास्ता दिखा दिया. जो कभी उन्होंने सोचा तक नहीं था. उनकी बेटी डॉक्टरी की पढ़ाई कर रही है और दो बच्चे स्कूल जाते हैं. श्रीलाल का कहना है कि लेऑफ पर मिलने वाले आधे वेतन से अब बच्चों की पढ़ाई लिखाई तो दूर, घर भी नहीं चल पाएगा. बेटी के डॉक्टर बनने का सपना कैसे पूरा करेंगे. वहीं इसी फैक्ट्री के मजदूर शीतला प्रसाद वर्मा पर बूढ़े माता-पिता और पत्नी के अलावा तीन बच्चों की जिम्मेदारी है. भावुक होते हुए वो कहते हैं, कि जिस कंपनी को खून पसीने से सींचा था, उसकी तरफ से लेऑफ का नोटिस मिलने के बाद सबसे बड़ी चिंता परिवार की है. अब उनका गुज़ारा कैसे करेंगे.
जवाब के नाम पर मिल रही तारीख
मजदूरों का सबसे बड़ा दुख यह भी है कि सरकार और जिला प्रशासन की तरफ से कोई ठोस जवाब हासिल नहीं हो पा रहा है. सिर्फ तारीख मिल रही है. एटलस कंपनी का मामला श्रम आयुक्त तक पहुंचा था और वार्ता भी की गई. लेकिन अभी तक मजदूरों को ठोस जवाब नहीं मिल पाया. इस मामले में दोबारा वार्ता के लिए अगली तारीख दी गई है. इसके बाद ऑटो गियर्स कंपनी का मामला भी श्रमायुक्त पहुंचा, तो श्रमायुक्त ने यह कह दिया कि लेऑफ पर भेजना कंपनी की पॉलिसी का हिस्सा है.
दोनों ही कंपनियों के मजदूरों-कर्मचारियों को जवाब नहीं मिल पाया. जबकि लॉकडाउन के दौरान, इस बात को लेकर सुनिश्चित थे कि सरकार किसी के साथ नाइंसाफी नहीं होने देगी. इन फैक्ट्रियों में भी दूसरे जिलों और राज्यों से आकर मजदूर काम करते हैं. लेकिन लॉकडाउन में इन्होंने पलायन इसलिए नहीं किया, क्योंकि आश्वस्त थे. लेकिन लॉकडाउन में छूट मिलने के बाद फैक्ट्रियों की तरफ से इस तरह का झटका लगेगा, यह इन्होंने सोचा नहीं था.