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सूरजकुंड मेले में दिखी आदिवासी परंपरा, सांस्कृतिक विरासत बढ़ रही आगे - सूरजकुंड मेला

34वें सूरजकुंड मेले में आदिवासी परंपरा की झलक भी देखने को मिल रही है. जो लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है.

glimpse of tribal tradition seen in surajkund fair
सूरजकुंड मेले में दिखी आदिवासी परंपरा की झलक
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Published : Feb 10, 2020, 11:40 PM IST

नई दिल्ली/फरीदाबाद: अरावली की वादियों में चल रहे सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में आदिवासी परंपरा की झलक देखने को मिल रही है. दरअसल अफ्रीकी गांव गुजरात के मशहूर ‘गिर’ जंगल के बीच बसा है, जिसे ‘जंबूर’ कहते हैं. 34वें सूरजकुंड मेले में चौपाल पर हरियाणवी कलाकारों के साथ-साथ देश और विदेश से आए कलाकार भी अपनी प्रस्तुतियां दे रहे हैं.

सूरजकुंड मेले में दिखी आदिवासी परंपरा की झलक

आदिवासी संस्कृति की परंपरागत विरासत
इसी कड़ी में यहां पर आदिवासियों की संस्कृति की परंपरागत विरासत भी देखने को मिली. आदिवासी जनजाति सिद्दी जिनके पारंपरिक तौर-तरीके हमारे देश की समृद्धि और परंपरागत विरासत को आज भी आगे बढ़ा रहे हैं. आज भी इनकी सभ्यता-संस्कृति में अफ्रीकी रीति-रिवाज की छाप स्पष्ट देखी जा सकती है.

आदिवासियों में दिखती है अफ्रीकी रीति-रिवाज की छाप
सूरजकुंड मेले में जो भी पर्यटक यहां आते हैं वो इनके पारंपरिक डांस का आनंद लेते हैं. इन्हें गुजरात टूरिज्म के लिए बनी फिल्म 'खुशबू गुजरात की' में भी दिखाया गया है. भारत में इनके आने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि आज से लगभग 750 साल पहले इन्हें पुर्तगाली गुलाम बनाकर भारत लाया गया था. जबकि कुछ का कहना है कि जूनागढ़ के तत्कालीन नवाब एक बार अफ्रीका गए और वहां एक महिला को निकाह करके साथ भारत ले आए और वह महिला अपने साथ लगभग 100 गुलामों को भी लाई.

ये भी पढ़ें: अंबाला: हत्या की कोशिश के आरोप में बीजेपी के पूर्व विधायक का बेटा गिरफ्तार

नई दिल्ली/फरीदाबाद: अरावली की वादियों में चल रहे सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में आदिवासी परंपरा की झलक देखने को मिल रही है. दरअसल अफ्रीकी गांव गुजरात के मशहूर ‘गिर’ जंगल के बीच बसा है, जिसे ‘जंबूर’ कहते हैं. 34वें सूरजकुंड मेले में चौपाल पर हरियाणवी कलाकारों के साथ-साथ देश और विदेश से आए कलाकार भी अपनी प्रस्तुतियां दे रहे हैं.

सूरजकुंड मेले में दिखी आदिवासी परंपरा की झलक

आदिवासी संस्कृति की परंपरागत विरासत
इसी कड़ी में यहां पर आदिवासियों की संस्कृति की परंपरागत विरासत भी देखने को मिली. आदिवासी जनजाति सिद्दी जिनके पारंपरिक तौर-तरीके हमारे देश की समृद्धि और परंपरागत विरासत को आज भी आगे बढ़ा रहे हैं. आज भी इनकी सभ्यता-संस्कृति में अफ्रीकी रीति-रिवाज की छाप स्पष्ट देखी जा सकती है.

आदिवासियों में दिखती है अफ्रीकी रीति-रिवाज की छाप
सूरजकुंड मेले में जो भी पर्यटक यहां आते हैं वो इनके पारंपरिक डांस का आनंद लेते हैं. इन्हें गुजरात टूरिज्म के लिए बनी फिल्म 'खुशबू गुजरात की' में भी दिखाया गया है. भारत में इनके आने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि आज से लगभग 750 साल पहले इन्हें पुर्तगाली गुलाम बनाकर भारत लाया गया था. जबकि कुछ का कहना है कि जूनागढ़ के तत्कालीन नवाब एक बार अफ्रीका गए और वहां एक महिला को निकाह करके साथ भारत ले आए और वह महिला अपने साथ लगभग 100 गुलामों को भी लाई.

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Intro:34 व अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड मेले की मुख्य चौपाल पर गुजरात में मिनी अफ्रीका के नाम से मशहूर गिर जंगल के बीच। बसा है जंबूर। जंबूर वह गांव है जिसमें आज भी आदिवासी जनजाति रहते हैं जिनका संबंध अफ़्रीका के समुदाय से है मुख्य चौपाल पर आज इन्हीं कलाकारों ने अपना पारंपरिक डांस जिसको कांगो कहा जाता है उसकी प्रस्तुति दी।Body:गुजरात के मशहूर ‘गिर’ जंगल के बीच है अफ्रीकी गांव गुजरात के मशहूर ‘गिर’ जंगल के बीच इनका गांव बसा है, जिसे ‘जंबूर’ कहते हैं। आदिवासी जनजाति सिद्दी जिनके पारंपरिक तौर-तरीके हमारे देश की समृद्धि और परंपरागत विरासत को आज भी आगे बढ़ा रहे हैं। सिद्दी आदिवासी मूल रूप से अफ्रीका के बनतु समुदाय से जुड़े हैं। आज भी इनकी सभ्यता-संस्कृति में अफ्रीकी रीति-रिवाज की छाप स्पष्ट देखी जा सकती है। जो सभी टूरिस्ट गिर के शेरों को देखने के लिए आते हैं, वो इनके पारंपरिक डांस का आनंद लेते हैं। इन्हें गुजरात टूरिज्म के लिए बनी फिल्म खुशबू गुजरात की में भी दिखाया गया है।भारत में इनके आने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि आज से लगभग 750 साल पहले इन्हें पुर्तगाली गुलाम बनाकर भारत लाया गया था। जबकि कुछ का कहना है कि जूनागढ़ के तत्कालीन नवाब एक बार अफ्रीका गये और वहां एक महिला को निकाह करके साथ भारत लाये और वह महिला अपने साथ लगभग 100 गुलामों को भी लाई।Conclusion:अफ्रीका के बन्तु समुदाय से संबंध रखने वाले और गुजरात के जम्बूर गांव में रहने वाले कलाकारों ने अपनी पारंपरिक कांगो नृत्य की प्रस्तुति दी। और लोगों का मनोरंजन किया।
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