नई दिल्ली: दिल्ली की राऊज एवेन्यू कोर्ट में पूर्व मंत्री एमजे अकबर की ओर से पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ दायर मानहानि के मामले पर सुनवाई के दौरान एमजे अकबर ने कहा कि प्रिया रमानी की दलीलें कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं हैं. प्रिया रमानी की ओर से वकील गीता लूथरा ने कहा कि रमानी एमजे अकबर को मशहूर संपादक कहती थीं, लेकिन उन्होंने अपने बयानों में इस बयान को झूठलाने की कोशिश की. फिलहाल इस मामले की अगली सुनवाई 23 जनवरी को होगी.
2010 तक अकबर के ट्वीट को रिट्वीट करती थीं प्रिया रमानी
सुनवाई के दौरान लूथरा ने कहा कि प्रिया रमानी एमजे अकबर के ट्वीट्स 2010 तक सम्मानित संपादक के ट्वीट्स की तरह रीट्वीट करती थी. वह एमजे अकबर के ट्वीट की प्रशंसा करती थी, लेकिन प्रिया रमानी ने अपने ट्विटर हैंडल से सभी ट्वीट हटा दिए. लूथरा ने कहा कि प्रिया रमानी के लिए केवल एशियन एज में ही नौकरी करने का विकल्प नहीं था, बल्कि दूसरे पब्लिकेशन समूह भी मौजूद थे.
रमानी को निवारक कानूनों की जानकारी थी
लूथरा ने कहा कि जो पत्रकार रिपोर्टिंग करते हैं, उन्हें कानून भी जानना होता है. वह ये नहीं कह सकते हैं कि उन्हें कानून की जानकारी नहीं है. खुद प्रिया रमानी ने अपने बयान में ये कबूल किया है कि वे विशाखा के दिशानिर्देशों के बारे में जानती थीं. उसके बावजूद उसने अपनी शिकायत नहीं की. लूथरा ने कहा कि प्रिया रमानी ने एमजे अकबर के खिलाफ कहानी गढ़ी. अगर प्रिया रमानी के आरोपों में सच्चाई होती तो वह पहले से उपलब्ध उपायों का इस्तेमाल करती. 2012 में विशाखा दिशानिर्देश आए, 2013 में कानून भी बना. उसके बाद पत्रकार तरुण तेजपाल का केस भी आया, लेकिन रमानी ने कहीं शिकायत नहीं की.
नुकसान उस व्यक्ति से होता है जो सबसे पहले आग लगाता है
पिछले 18 जनवरी को सुनवाई के दौरान लूथरा ने कहा था कि प्रिया रमानी ने एमजे अकबर की छवि को खराब करने की कोशिश की, क्योंकि वह पहली व्यक्ति थीं, जिन्होंने आग भड़काई. गीता लूथरा ने कहा था कि घटना के बाद लोग क्या कहते हैं. इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन नुकसान उस व्यक्ति से होता है, जो सबसे पहले आग लगाता है. लूथरा ने कहा था कि 2018 में सारी बातें आईं, उसने ‘सॉरी बॉस वी फाउंड आवर वॉयर’ नामक शीर्षक से आलेख लिखा. लूथरा ने प्रिया रमानी के बयानों को उद्धृत करते हुए कहा था कि वह कहती हैं कि आलेख में किसी का नाम नहीं है.
एमजे अकबर की छवि खराब करने की कोशिश
लूथरा ने कहा था कि ट्वीट और आलेख के जरिये प्रिया रमानी ने कोई जनहित का कार्य नहीं किया. इसके पीछे निहित स्वार्थ था. उन्होंने एमजे अकबर की छवि को खराब करने की कोशिश की. आलेख में जो आरोप लगाए गए हैं, उसका कोई साक्ष्य या आधार नहीं है. एमजे अकबर के खिलाफ शिकारी (predator) शब्द का इस्तेमाल किया गया. कई लोग वरिष्ठ होते हैं, जिनके पास काफी ताकत होती है, लेकिन आप उन्हें शिकारी नहीं पुकार सकते हैं. जूनियर-सीनियर संबंधों को बताने के लिए कई दूसरे शब्द भी हैं.
2018 में दायर किया था मामला
एमजे अकबर ने 15 अक्टूबर 2018 को प्रिया रमानी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर किया था. उन्होंने प्रिया रमानी द्वारा अपने खिलाफ यौन प्रताड़ना का आरोप लगाने के बाद ये आपराधिक मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया है. 18 अक्टूबर 2018 को कोर्ट ने एमजे अकबर की आपराधिक मानहानि की याचिका पर संज्ञान लिया था. 25 फरवरी 2019 को कोर्ट ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और पत्रकार एमजे अकबर द्वारा दायर आपराधिक मानहानि के मामले में पत्रकार प्रिया रमानी को जमानत दी थी. कोर्ट ने प्रिया रमानी को दस हजार रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दी थी. कोर्ट ने 10 अप्रैल 2019 को प्रिया रमानी के खिलाफ आरोप तय किए थे.