नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल (West Bengal) सरकार के मुख्य सचिव की प्रतिनियुक्ति (Chief Secretary Deputation) को लेकर केंद्र (Center) और राज्य सरकार (State Government) के बीच तनातनी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. पिछले दिनों प्रधानमंत्री (Prime Minister) की बैठक में ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के साथ आधे घंटे की देरी से पहुंचने की वजह से पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अलापन (Chief Secretary IAS Alapan Bandopadhyay) चर्चा में बने हुए हैं. साथ ही उनको लेकर अब केंद्र और राज्य के बीच टकराव भी बढ़ गया है. केंद्रीय प्रतिनियुक्ति (Deputation) पर भेजे जाने के बावजूद पश्चिम बंगाल सरकार उन्हें रिलीज करने को तैयार नहीं है. दरअसल, अधिकारियों की तैनाती (Posting of officers) और नियुक्ति को लेकर राज्य और केंद्र सरकार के बीच टकराव नया नहीं है.
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खासतौर से तब जब राज्य में अलग राजनीतिक पार्टी की सरकार हो. केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली (Delhi) की बात करें तो पिछले छह सालों में केंद्र की दिल्ली सरकार (Delhi Government) के साथ अनेकों आला अधिकारियों की भिड़ंत होती रही है. इनमें से करीब एक दर्जन तो आईएएस (IAS) अधिकारी है. इनमें से अधिकतर ने सरेंडर कर दिया या अपना तबादला (Transfer) केंद्र सरकार या दूसरे राज्यों में करवा लिया. जिनमें केजरीवाल सरकार (Kejriwal Government) में सेवा दे चुके राजेंद्र कुमार, शकुंतला गैमलीन, परिमल राय, अंशु प्रकाश शामिल हैं.
दिल्ली में भी कई अधिकारियों का हो चुका है आमना-सामना
साल 2018 में दिल्ली सरकार (Delhi Government) के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश कम बोलने वाले, नरम दिल नौकरशाह माने जाते थे. ऐसे आरोप हैं कि दिल्ली सरकार ने अपने विभागों में पार्टी के जिन लोगों को सलाहकार के तौर पर रखा हुआ, उनका हमेशा विभाग के अधिकारियों से टकराव होता रहा है. कई मामलों में मामला बदतमीजी तक पहुंच गया है. लेकिन ये अधिकारी छोटे स्तर के थे, इसलिए वे चुप रहे.
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कई मुख्य सचिव से हो चुकी है दिल्ली सरकार की भिड़ंत
पिछले छह सालों में दिल्ली सरकार की करीब एक दर्जन आईएएस (IAS) अधिकारियों के साथ भिड़ंत हो चुकी है. इनमें से तीन तो दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव थे. इसके अलावा प्रिंसिपल सेक्रेटरी से लेकर अन्य आला अधिकारी शामिल हैं. इन अफसरों में डॉ. एमएम कुट्टी, केके शर्मा, अमरनाथ, अश्विनी शर्मा, जयदेव सारंगी, धर्मपाल, केशव चंद्रा, अनिंदो मजूमदार, चंद्राकर भारती और शकुंतला गैमलीन शामिल हैं.
अधिकार के दुरुपयोग का आरोप
सूत्रों की मानें तो दिल्ली सरकार ने अपने हिसाब से योजनाओं या निर्णयों को लागू करने के आदेश जारी किए, लेकिन इन अधिकारियों ने दिल्ली सरकार को केंद्र शासित प्रदेश मानते हुए चलाने की बात कही. जिसके बाद अधिकारियों पर हमले बढ़े, उनके कार्यालयों में ताले जड़ दिए गए.
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तनातनी का पहला मौका नहीं
केंद्र और राज्य सरकार के बीच अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों को लेकर तनातनी का यह पहला मौका नहीं है. भारतीय संविधान में संघीय गणराज्य की परिकल्पना और उसकी स्थापना के बावजूद राज्यों की स्वायत्तता का पूरा ख्याल रखा गया है. अखिल भारतीय सेवाएं भी उसी कड़ी में आती हैं जहां इन अधिकारियों की नियुक्ति तो केंद्रीय स्तर पर होती है लेकिन तैनाती उनके कैडर राज्य में होती है और फिर उनके स्थानांतरण और इस तरह के दूसरी प्रशासनिक जिम्मेदारी राज्यों पर होती है.
क्या कहते हैं पूर्व मुख्य सचिव ओमेश सहगल
दिल्ली सरकार के पूर्व मुख्य सचिव ओमेश सहगल कहते हैं, जहां तक सवाल केंद्र सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच पनपे मौजूदा विवाद का है तो नियमों के मुताबिक, जब तक राज्य में तैनात किसी अधिकारी को संबंधित राज्य सरकार रिलीव नहीं कर देती, तब तक केंद्र सरकार उनकी प्रतिनियुक्ति नहीं कर सकती. ऑल इंडिया सर्विसेज 1969 के नियम 7 के अनुसार राज्य सरकार के तहत काम करने वाले सिविल अधिकारियों पर केंद्र कोई एक्शन भी नहीं ले सकता.
'केन्द्र राज्य की सहमति जरूरी'
यदि किसी विशेष स्थिति में एक्शन लेने की नौबत आ जाए तो इसके लिए भी केंद्र और राज्य दोनों की सहमति जरूरी होती है. ऑल इंडिया सर्विस एक्ट के नियमों के अनुसार, हर राज्य को एक न्यूनतम संख्या में (जो उसकी काडर शक्ति का करीब 25 फीसदी होती है) आईएएस (IAS) और आईपीएस (IPS) अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए भेजना होता है. इस संख्या को राज्य का सेंट्रल डेपुटेशन रिजर्व (CDR) कहा जाता है. राज्यों में तैनात अधिकारियों की संख्या के आधार पर ही सीडीआर का कोटा तय होता है.
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'दिल्ली में अलग है स्थिति'
हालांकि पूर्ण राज्य का दर्जा ना होने के चलते दिल्ली में यह स्थिति कुछ अलग है लेकिन संवैधानिक जानकारों का कहना है कि जब तक अफसरों की तैनाती राज्य में होती है तो तकनीकी रूप से वो संबंधित राज्य सरकार के ही अधीन होते हैं.