नई दिल्ली: राजधानी में विधानसभा चुनाव की धमक महसूस की जा सकती है. इसी के साथ आम आदमी पार्टी 2020 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अपना मेनिफेस्टो बनाने में भी जुट गई है. लेकिन सवाल यह है कि क्या 2015 में किए गए सभी चुनावी वादे पूरे हुए? इसे लेकर ईटीवी भारत खास पड़ताल कर रहा है और इसी क्रम में हम सबसे पहले उन वादों की तहकीकात कर रहे हैं, जिन्हें आम आदमी पार्टी के 70 प्वाइंट एक्शन प्लान में पहले और दूसरे नंबर पर रखा गया था.
जनलोकपाल बिल अब भी जनता के लिए बना हुआ है सपना
आम आदमी पार्टी का जन्म जिस अन्ना आंदोलन से हुआ उसका आधार ही जनलोकपाल की मांग से जुड़ा था. आंदोलन खत्म हुआ, पार्टी बनी और पार्टी सत्ता में भी आई. अरविंद केजरीवाल ने पहली बार 28 दिसंबर 2013 और फिर दूसरी बार 14 फरवरी 2015 को ऐतिहासिक रामलीला मैदान से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए जिस सबसे पहले वादे का जिक्र किया, वह जनलोकपाल बिल ही था. मुख्यमंत्री के रूप में अरविंद केजरीवाल अपने 5 साल पूरे करने वाले हैं और आम आदमी पार्टी फिर से चुनाव में जाने वाली है, लेकिन जनलोकपाल अभी भी दिल्ली की जनता के लिए सपना ही है.
2015 में बनाया था 70 प्वाइंट एक्शन प्लान मेनिफेस्टो
2015 के विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी ने जिस 70 प्वाइंट एक्शन प्लान को अपने मेनिफेस्टो के रूप में जनता के सामने रखा था, उसमें भी पहले नंबर पर जनलोकपाल को जगह दी गई थी. इसमें कहा गया था कि सत्ता में आने के तुरंत बाद आम आदमी पार्टी जन लोकपाल बिल लेकर आएगी, जो भ्रष्टाचार के मामलों में एक तय समय सीमा के भीतर जांच करेगा, साथ ही दिल्ली के सरकारी कार्यालयों में सिटीजन चार्टर लाने की भी बात कही गई थी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो सका. इस 70 प्वांइट एक्शन प्लान में दूसरे नंबर पर जगह मिली थी स्वराज बिल को. पार्टी की तरफ से वादा किया गया था कि सत्ता में आने के तुरंत बाद आम आदमी पार्टी स्वराज कानून बनाएगी, जो सीधे तौर पर जनता के हाथ में सत्ता की चाबी देगा. इसके जरिए स्थानीय स्तर पर एक ऐसा फंड बनाने की भी बात कही गई थी जिसके जरिए जनता खुद स्थानीय विकास का खाका तैयार कर सकती थी. लेकिन यह वादा भी हकीकत नहीं बन सका.
ईटीवी भारत ने राष्ट्रीय प्रवक्ता ने की खास बातचीत
अपनी सभी वादों को पूरा कर लेने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी अपने घोषणापत्र के इन दो महत्वपूर्ण वादों को ही अमलीजामा क्यों नहीं पहना सकी, यह सवाल जब ईटीवी भारत ने आम आदमी पार्टी प्रवक्ता राघव चड्ढा के सामने रखा, तो उन्होंने सीधे तौर पर गेंद भाजपा नित केंद्र सरकार की झोली में डाल दिया. राघव ने कहा कि 'दिल्ली की संवैधानिक संरचना के अनुसार दिल्ली विधानसभा द्वारा पारित किए गए हर बिल को केंद्र सरकार को भेजना पड़ता है और दुःख का विषय है कि अरविंद केजरीवाल सरकार का कार्यकाल समाप्त होने को है, लेकिन केंद्र सरकार ने अभी तक उन बिलों पर मुहर नहीं लगाई और न ही अपनी सहमति दी. यह दिखाता है कि केंद्र सरकार स्वराज बिल और जनलोकपाल के विरोध में है.'
'18 बिल अभी भी केंद्र सरकार के पास लंबित है'
क्या ये बिल विधानसभा में रखे गए थे, क्या विधानसभा ने इन्हें पारित किया और क्या आम आदमी पार्टी सरकार की तरफ से इसे लेकर केंद्र सरकार को कोई रिमाइंडर भेजा गया. इन सवालों को लेकर ईटीवी भारत पहुंचा, दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल के पास. राम निवास गोयल ने बताया कि 'जनलोकपाल बिल को दिल्ली विधानसभा में 4 दिसंबर 2015 को पारित किया गया था और इस बिल सहित कुल 19 बिल दिल्ली विधानसभा के मौजूदा कार्यकाल में पारित हो चुके हैं. लेकिन इनमें से सिर्फ एक बिल पर केंद्र सरकार की मुहर लग सकी है, बाकी सभी 18 बिल अभी भी केंद्र सरकार के पास लंबित हैं.'
रामनिवास गोयल ने यह भी कहा कि जन लोकपाल बिल को लेकर कई बार वे केंद्र सरकार को रिमाइंडर दे चुके हैं. उसे केंद्र से पारित कराने को लेकर तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह से उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के साथ मुलाकात भी कर चुके हैं, लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से कोई सकारात्मक रुख नहीं देखने को मिला. क्या स्वराज बिल दिल्ली विधानसभा में आया था, इसके जवाब में रामनिवास गोयल ने बताया कि '4 अक्टूबर 2017 को हमने दिल्ली विधानसभा में अंतिम बिल पारित किया था. लेकिन जब इन बिलों पर केंद्र सरकार का कोई सकारात्मक रुख नहीं दिखा, उसके बाद हम कोई भी बिल विधानसभा में लेकर नहीं आए और इसीलिए स्वराज बिल भी विधानसभा में नहीं आ सका.'
गौरतलब है कि पहली बार 2013 में कांग्रेस पार्टी के समर्थन से बनी 49 दिनों की सरकार के बाद जब अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया, तो कारण यही बताया था कि इस गठबंधन सरकार के साथ रहते हुए वे जनलोकपाल बिल नहीं ला सकेंगे. उसके बाद फरवरी 2015 में चुनाव हुआ और आम आदमी पार्टी ऐतिहासिक रूप से 67 सीटें जीतकर आई. लेकिन 5 साल बीतने को है और अब भी लोकपाल और स्वराज कानून दूर की कौड़ी है. लोकपाल बिल का गेंद तो केंद्र की झोली में है, लेकिन स्वराज बिल बीते पांच सालों में आम आदमी पार्टी दिल्ली विधानसभा तक भी नहीं ला सकी.