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शाही जामा मस्जिद:ना अमीर-ना गरीब, सब एक साथ दस्तरख्वान पर बैठकर करते हैं इफ्तार - शाही जामा मस्जिद एक साथ दस्तरखाना पर बैठकर करते हैं इफ्तार

दिल्ली की शाही जामा मस्जिद दो साल के बाद गुलजार हुई है. बीते दो सालों के दौरान कोरोना महामारी के चलते मस्जिदे पूरी तरह से बंद रही. इस दौरान लोगों ने घरों में ही नमाज अदा की. रमजान के दौरान भी लोगों ने घरों में ही खुदा की इबादत की. कोरोना का कहर कम होने के बाद इस साल रमजान के महीने में लोग मस्जिदों में इबादत कर रहे हैं. यही वजह है कि दिल्ली की जामा मस्जिद में भी रोजेदारों की खासा रौनक देखने को मिल रही है.

शाही जामा मस्जिद
शाही जामा मस्जिद
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Published : Apr 29, 2022, 7:09 PM IST

Updated : Apr 29, 2022, 10:48 PM IST

नई दिल्लीः दिल्ली की जामा मस्जिद में भी रोजेदारों की खासा रौनक देखने को मिल रही है. बीते दो सालों के दौरान कोरोना महामारी के चलते मस्जिदे पूरी तरह से बंद रही. इस दौरान लोगों ने घरों में ही नमाज अदा की. कोरोना का कहर कम होने के बाद इस साल रमजान के महीने में लोग मस्जिदों में इबादत कर रहे हैं. लगभग शाम 7:00 बजे रोजा इफ्तार का वक्त होता है. रोजा इफ्तार के वक्त से तकरीबन डेढ़ से दो घंटे पहले जामा मस्जिद के सहन में लोग इकट्ठा होने शुरू हो जाते हैं.

लोग अपने साथ इफ्तार का सामान और चटाइयां लेकर मस्जिद में पहुंचते हैं. छोटे-छोटे ग्रुप में जामा मस्जिद के सहन में रोज़ेदार इफ्तार करने के लिए बैठे होते हैं. इफ्तार का वक्त होने तक लोग इबादत करते हैं. जैसे ही इफ्तार का वक्त होता है रोजेदार इफ्तार करते हैं. जिसके बाद मस्जिद में नमाज अदा की जाती है. मर्द मस्जिद के मुख्य हिस्से में जमात के साथ नमाज अदा करते हैं जबकि औरतें मस्जिद के सहन में नमाज़ अदा करती हैं.

शाही जामा मस्जिद में लाैटी राैनक.
जामा मस्जिद में रोजा इफ्तार करने का एक अलग सुकून है. यही वजह है कि जहां एक तरफ जामा मस्जिद में इफ्तार करने के लिए इलाके के मकामी रोज़ेदार पहुंचते हैं तो वहीं दूसरी तरफ दूरदराज के शहरों से भी लोग इफ्तार करने जामा मस्जिद आते हैं. कई लोग तो मुरादाबाद, अमरोहा और गाजियाबाद आदि शहरों से भी जामा मस्जिद में इफ्तार करने के लिए पहुँचते है. जामा मस्जिद में जहां एक तरफ रोज़ेदार अपने साथ इफ्तारी का सामान लेकर पहुंचते हैं. तो वहीं दूसरी तरफ कई लोग ऐसे होते हैं जो अपने साथ इस इफ्तार नहीं ला पाते. ऐसे रोजेदारों के लिए जामा मस्जिद में खुसूसी तौर पर इफ्तार का इंतजाम किया जाता है.
इफ्तार का वक्त होने तक लोग इबादत करते हैं.
इफ्तार का वक्त होने तक लोग इबादत करते हैं.
रोजा इफ्तार के वक्त से तकरीबन डेढ़ से दो घंटे पहले जामा मस्जिद के सहन में लोग इकट्ठा होने शुरू हो जाते हैं.
रोजा इफ्तार के वक्त से तकरीबन डेढ़ से दो घंटे पहले जामा मस्जिद के सहन में लोग इकट्ठा होने शुरू हो जाते हैं.
रोजा इफ्तार के वक्त से तकरीबन डेढ़ से दो घंटे पहले जामा मस्जिद के सहन में लोग इकट्ठा होने शुरू हो जाते हैं.
रोजा इफ्तार के वक्त से तकरीबन डेढ़ से दो घंटे पहले जामा मस्जिद के सहन में लोग इकट्ठा होने शुरू हो जाते हैं.
दिल्ली की शाही जामा मस्जिद दो साल के बाद गुलजार हुई
दिल्ली की शाही जामा मस्जिद दो साल के बाद गुलजार हुई

इसे भी पढ़ेंः Ramadan 2022 : दो साल बाद लौटी जामा मस्जिद में रौनक, इफ्तारी के लिए पहुंच रहे लोग

मटिया महल इलाके के रहने वाले नसीरुद्दीन बताते हैं कि उनके नाना जान सन 1947 से पहले से जामा मस्जिद में रोजा इफ्तार करवाते आ रहे हैं. नाना जान के गुजर जाने के बाद यह जिम्मेदारी उनके मामू जान ने निभाई. मामू जान के दुनिया से रुखसत होने के बाद बीते 25 सालों जामा मस्जिद में इफ़्तयारी कराने की जिम्मेदारी नसीरुद्दीन निभा रहे हैं. नसीरुद्दीन बताते हैं की जामा मस्जिद में इफ़्तयार के लिए दस्तरखान लगता है. जिसमें वह तमाम लोग इफ्तार करते हैं जो अपने साथ इफ़्तयारी नहीं लाते. दस्तरखान पर अमीर गरीब सब एक साथ बैठकर एक इफ्तयारी करते हैं.

नई दिल्लीः दिल्ली की जामा मस्जिद में भी रोजेदारों की खासा रौनक देखने को मिल रही है. बीते दो सालों के दौरान कोरोना महामारी के चलते मस्जिदे पूरी तरह से बंद रही. इस दौरान लोगों ने घरों में ही नमाज अदा की. कोरोना का कहर कम होने के बाद इस साल रमजान के महीने में लोग मस्जिदों में इबादत कर रहे हैं. लगभग शाम 7:00 बजे रोजा इफ्तार का वक्त होता है. रोजा इफ्तार के वक्त से तकरीबन डेढ़ से दो घंटे पहले जामा मस्जिद के सहन में लोग इकट्ठा होने शुरू हो जाते हैं.

लोग अपने साथ इफ्तार का सामान और चटाइयां लेकर मस्जिद में पहुंचते हैं. छोटे-छोटे ग्रुप में जामा मस्जिद के सहन में रोज़ेदार इफ्तार करने के लिए बैठे होते हैं. इफ्तार का वक्त होने तक लोग इबादत करते हैं. जैसे ही इफ्तार का वक्त होता है रोजेदार इफ्तार करते हैं. जिसके बाद मस्जिद में नमाज अदा की जाती है. मर्द मस्जिद के मुख्य हिस्से में जमात के साथ नमाज अदा करते हैं जबकि औरतें मस्जिद के सहन में नमाज़ अदा करती हैं.

शाही जामा मस्जिद में लाैटी राैनक.
जामा मस्जिद में रोजा इफ्तार करने का एक अलग सुकून है. यही वजह है कि जहां एक तरफ जामा मस्जिद में इफ्तार करने के लिए इलाके के मकामी रोज़ेदार पहुंचते हैं तो वहीं दूसरी तरफ दूरदराज के शहरों से भी लोग इफ्तार करने जामा मस्जिद आते हैं. कई लोग तो मुरादाबाद, अमरोहा और गाजियाबाद आदि शहरों से भी जामा मस्जिद में इफ्तार करने के लिए पहुँचते है. जामा मस्जिद में जहां एक तरफ रोज़ेदार अपने साथ इफ्तारी का सामान लेकर पहुंचते हैं. तो वहीं दूसरी तरफ कई लोग ऐसे होते हैं जो अपने साथ इस इफ्तार नहीं ला पाते. ऐसे रोजेदारों के लिए जामा मस्जिद में खुसूसी तौर पर इफ्तार का इंतजाम किया जाता है.
इफ्तार का वक्त होने तक लोग इबादत करते हैं.
इफ्तार का वक्त होने तक लोग इबादत करते हैं.
रोजा इफ्तार के वक्त से तकरीबन डेढ़ से दो घंटे पहले जामा मस्जिद के सहन में लोग इकट्ठा होने शुरू हो जाते हैं.
रोजा इफ्तार के वक्त से तकरीबन डेढ़ से दो घंटे पहले जामा मस्जिद के सहन में लोग इकट्ठा होने शुरू हो जाते हैं.
रोजा इफ्तार के वक्त से तकरीबन डेढ़ से दो घंटे पहले जामा मस्जिद के सहन में लोग इकट्ठा होने शुरू हो जाते हैं.
रोजा इफ्तार के वक्त से तकरीबन डेढ़ से दो घंटे पहले जामा मस्जिद के सहन में लोग इकट्ठा होने शुरू हो जाते हैं.
दिल्ली की शाही जामा मस्जिद दो साल के बाद गुलजार हुई
दिल्ली की शाही जामा मस्जिद दो साल के बाद गुलजार हुई

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मटिया महल इलाके के रहने वाले नसीरुद्दीन बताते हैं कि उनके नाना जान सन 1947 से पहले से जामा मस्जिद में रोजा इफ्तार करवाते आ रहे हैं. नाना जान के गुजर जाने के बाद यह जिम्मेदारी उनके मामू जान ने निभाई. मामू जान के दुनिया से रुखसत होने के बाद बीते 25 सालों जामा मस्जिद में इफ़्तयारी कराने की जिम्मेदारी नसीरुद्दीन निभा रहे हैं. नसीरुद्दीन बताते हैं की जामा मस्जिद में इफ़्तयार के लिए दस्तरखान लगता है. जिसमें वह तमाम लोग इफ्तार करते हैं जो अपने साथ इफ़्तयारी नहीं लाते. दस्तरखान पर अमीर गरीब सब एक साथ बैठकर एक इफ्तयारी करते हैं.

Last Updated : Apr 29, 2022, 10:48 PM IST
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