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IIT के छात्रों ने केलों के रेशे से बनाया इको फ्रेंडली सैनिटरी पैड, जानिए खासियत

आईआईटी के छात्रों ने महिलाओं के मासिक धर्म में इस्तेमाल किए जाने वाले सैनिटरी पैड्स को एक नई तकनीक से बनाया है. छात्रों ने इसके लिए 'बनाना फाइबर' यानी केलों के रेशे का इस्तेमाल करके ऐसा अनोखा सेनेटरी पैड बनाया है. ये पैड दो साल तक इस्तेमाल किया जा सकेगा.

अनोखा सेनेटरी पैड etv bharat
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Published : Aug 21, 2019, 12:28 PM IST

Updated : Aug 21, 2019, 1:38 PM IST

नई दिल्ली: आईआईटी संस्थान अपने शोध कार्यों के लिए जाने जाते हैं और उनकी पहचान वहां के होनहार छात्रों से ही होती है. आईआईटी के छात्रों ने इस बार ऐसी तकनीक ईजाद की जो इस समय चर्चा का विषय बनी हुई है. आईआईटी के छात्रों ने महिलाओं के मासिक धर्म में इस्तेमाल किए जाने वाले सैनिटरी पैड्स को एक नए रूप में ईजाद किया है. छात्रों ने इसके लिए 'बनाना फाइबर' यानी केलों के रेशे का इस्तेमाल करके ऐसा अनोखा सेनेटरी पैड बनाया है.

IIT में छात्रों ने बनाया 'बनाना फाईबर' वाला सैनिटरी पैड

हर एक महिला को हर महीने मासिक धर्म की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. इस दौरान महिलाओं को रक्त स्राव होता है और साथ ही काफी दर्द भी होता है.

ऐसी स्थिति में रक्त स्राव रोका नहीं जा सकता है, लेकिन ऐसी स्थिति में भी महिलाएं अपने घर-ऑफिस में काम कर पाएं. वो भी बिना किसी दिक्कत के, इसके लिए वे सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं.

'प्लास्टिक का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं'
हर इस्तेमाल के साथ ही इन पैड्स को फेंक दिया जाता है जिससे प्लास्टिक का उपयोग बढ़ता है और वातावरण को नुकसान पहुंचता है. ऐसे में आईआईटी के छात्रों ने रीयूजेबल पैड बनाया है.

इस पैड को बनाने वाले छात्र अर्चित अग्रवाल का कहना है कि इस सैनेटरी पैड को अलग तरह की तकनीक से बनाया गया है. बाजार में बिकने वाले आम सैनिटरी पैड के मुकाबले इसमें प्लास्टिक का इस्तेमाल बिल्कुल भी नहीं किया गया है.

साथ ही आम पैड्स के मुकाबले यह काफी पतला है और इसमें सोखने की क्षमता बहुत अधिक है. इसके अलावा यह पैड स्किन फ्रेंडली भी है, जिसके इस्तेमाल से त्वचा को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचता है.

'क्वाड्रेंट ट्रू लॉक तकनीक से बनाए गए ये पैड्स'
एक और छात्र हैरी सेहरावत ने बताया कि इस सेनेटरी पैड को 72 से भी ज्यादा बार धोकर सुखा कर दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि यह पैड 'क्वाड्रेंट ट्रू लॉक' तकनीक से बनाए गए हैं.

जिसकी वजह से इसकी तरल सोखने की क्षमता काफी ज्यादा है. महिलाएं इसे आसानी से साफ कर इस्तेमाल कर सकती हैं. उन्होंने कहा कि इसे बनाने में इस तरह की तकनीक का प्रयोग हुआ है जिससे कि ये बहुत ही जल्दी सूख जाते हैं.

Eco-friendly sanitary pads made of banana fiber will be used for two years
आईआईटी के छात्रों ने बनाना फाइबर से बनाया सैनिटरी पैड

'कपड़े जैसा है पैड का डिजाइन'
हैरी ने कहा कि गांव देहात की महिलाएं भी इसका आसानी से उपयोग कर सकें. इसलिए इसका आकार ऐसा रखा गया है जिससे उनको यह पैड से ज्यादा उनके इस्तेमाल किए जाने वाले कपड़े के पैड जैसा लगे.

पैड के लिए काफी रिसर्च वर्क किया
बीटेक फाइनल इयर के स्टूडेंट्स हैरी सेहरावत और अर्चित अग्रवाल ने बताया कि दिल्ली के अलग-अलग विभाग के प्रोफेसर्स के साथ विचार-विमर्श कर 8-10 छात्रों की टीम ने मिलकर इसे बनाया है.

उन्होंने कहा कि दिसंबर 2018 से ही उन्होंने इस पर काम करना शुरू कर दिया था और अब यह पूरी तरह से जांच के बाद मार्केट में उपलब्ध हो चुका है. इसे वेबसाइट के जरिए भी खरीदा जा सकता है.

एक सेट में दो तरह के पैड
पैड का एक सेट 199 रुपए में कस्टमर्स को दिया जाएगा जिसमें दो पैड होंगे, 1 दिन के लिए और दूसरा रात के लिए. उन्होंने बताया कि दोनों पैड के तरल सोखने की क्षमता अलग अलग होगी.

रक्त स्राव ज्यादा होने पर पहले पैड का इस्तेमाल किया जा सकेगा. वहीं कम स्राव होने पर दूसरे पैड को प्रयोग में लाया जा सकेगा.

ऑर्गेनिक तत्वों से बना इको फ्रेंडली पैड
उनका कहना है कि इस तरह अगर महिलाएं दो पैड में ही 2 साल तक माहवारी निकाल देती हैं तो पैड बार-बार खरीदने और फेंकने से वातावरण को होने वाले नुकसान से बचाया जा सकेगा.
उन्होंने बताया कि यह पूरी तरह से 'बनाना फाइबर' से बना है. इससे त्वचा को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता. साथ ही यह इको फ्रेंडली भी है.


सालाना निकलता है लाखों टन कचरा
वहीं, अगर आंकड़ों की मानें तो देश में हर एक महिला अपने जीवन काल में सैनिटरी पैड का प्रयोग करके करीब डेढ़ सौ किलो प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करती है. इससे लाखों टन कचरा सालाना निकलता है.

उन्होंने आगे बताया कि एक आम सेनेटरी पैड में प्लास्टिक का प्रयोग होता है जो जल्दी से धरती में घुलकर खत्म नहीं होती है. इससे पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचता है. ऐसे में यह उत्पाद ना केवल वातावरण को सुरक्षित रखेगा बल्कि महिलाओं के लिए भी काफी किफायती साबित होगा.

रीयूजेबल सेनेटरी पैड्स बनाने के लिए कच्चा माल केरल, तमिलनाडु, दिल्ली राज्यों से लाया जाता है.

नई दिल्ली: आईआईटी संस्थान अपने शोध कार्यों के लिए जाने जाते हैं और उनकी पहचान वहां के होनहार छात्रों से ही होती है. आईआईटी के छात्रों ने इस बार ऐसी तकनीक ईजाद की जो इस समय चर्चा का विषय बनी हुई है. आईआईटी के छात्रों ने महिलाओं के मासिक धर्म में इस्तेमाल किए जाने वाले सैनिटरी पैड्स को एक नए रूप में ईजाद किया है. छात्रों ने इसके लिए 'बनाना फाइबर' यानी केलों के रेशे का इस्तेमाल करके ऐसा अनोखा सेनेटरी पैड बनाया है.

IIT में छात्रों ने बनाया 'बनाना फाईबर' वाला सैनिटरी पैड

हर एक महिला को हर महीने मासिक धर्म की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. इस दौरान महिलाओं को रक्त स्राव होता है और साथ ही काफी दर्द भी होता है.

ऐसी स्थिति में रक्त स्राव रोका नहीं जा सकता है, लेकिन ऐसी स्थिति में भी महिलाएं अपने घर-ऑफिस में काम कर पाएं. वो भी बिना किसी दिक्कत के, इसके लिए वे सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं.

'प्लास्टिक का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं'
हर इस्तेमाल के साथ ही इन पैड्स को फेंक दिया जाता है जिससे प्लास्टिक का उपयोग बढ़ता है और वातावरण को नुकसान पहुंचता है. ऐसे में आईआईटी के छात्रों ने रीयूजेबल पैड बनाया है.

इस पैड को बनाने वाले छात्र अर्चित अग्रवाल का कहना है कि इस सैनेटरी पैड को अलग तरह की तकनीक से बनाया गया है. बाजार में बिकने वाले आम सैनिटरी पैड के मुकाबले इसमें प्लास्टिक का इस्तेमाल बिल्कुल भी नहीं किया गया है.

साथ ही आम पैड्स के मुकाबले यह काफी पतला है और इसमें सोखने की क्षमता बहुत अधिक है. इसके अलावा यह पैड स्किन फ्रेंडली भी है, जिसके इस्तेमाल से त्वचा को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचता है.

'क्वाड्रेंट ट्रू लॉक तकनीक से बनाए गए ये पैड्स'
एक और छात्र हैरी सेहरावत ने बताया कि इस सेनेटरी पैड को 72 से भी ज्यादा बार धोकर सुखा कर दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि यह पैड 'क्वाड्रेंट ट्रू लॉक' तकनीक से बनाए गए हैं.

जिसकी वजह से इसकी तरल सोखने की क्षमता काफी ज्यादा है. महिलाएं इसे आसानी से साफ कर इस्तेमाल कर सकती हैं. उन्होंने कहा कि इसे बनाने में इस तरह की तकनीक का प्रयोग हुआ है जिससे कि ये बहुत ही जल्दी सूख जाते हैं.

Eco-friendly sanitary pads made of banana fiber will be used for two years
आईआईटी के छात्रों ने बनाना फाइबर से बनाया सैनिटरी पैड

'कपड़े जैसा है पैड का डिजाइन'
हैरी ने कहा कि गांव देहात की महिलाएं भी इसका आसानी से उपयोग कर सकें. इसलिए इसका आकार ऐसा रखा गया है जिससे उनको यह पैड से ज्यादा उनके इस्तेमाल किए जाने वाले कपड़े के पैड जैसा लगे.

पैड के लिए काफी रिसर्च वर्क किया
बीटेक फाइनल इयर के स्टूडेंट्स हैरी सेहरावत और अर्चित अग्रवाल ने बताया कि दिल्ली के अलग-अलग विभाग के प्रोफेसर्स के साथ विचार-विमर्श कर 8-10 छात्रों की टीम ने मिलकर इसे बनाया है.

उन्होंने कहा कि दिसंबर 2018 से ही उन्होंने इस पर काम करना शुरू कर दिया था और अब यह पूरी तरह से जांच के बाद मार्केट में उपलब्ध हो चुका है. इसे वेबसाइट के जरिए भी खरीदा जा सकता है.

एक सेट में दो तरह के पैड
पैड का एक सेट 199 रुपए में कस्टमर्स को दिया जाएगा जिसमें दो पैड होंगे, 1 दिन के लिए और दूसरा रात के लिए. उन्होंने बताया कि दोनों पैड के तरल सोखने की क्षमता अलग अलग होगी.

रक्त स्राव ज्यादा होने पर पहले पैड का इस्तेमाल किया जा सकेगा. वहीं कम स्राव होने पर दूसरे पैड को प्रयोग में लाया जा सकेगा.

ऑर्गेनिक तत्वों से बना इको फ्रेंडली पैड
उनका कहना है कि इस तरह अगर महिलाएं दो पैड में ही 2 साल तक माहवारी निकाल देती हैं तो पैड बार-बार खरीदने और फेंकने से वातावरण को होने वाले नुकसान से बचाया जा सकेगा.
उन्होंने बताया कि यह पूरी तरह से 'बनाना फाइबर' से बना है. इससे त्वचा को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता. साथ ही यह इको फ्रेंडली भी है.


सालाना निकलता है लाखों टन कचरा
वहीं, अगर आंकड़ों की मानें तो देश में हर एक महिला अपने जीवन काल में सैनिटरी पैड का प्रयोग करके करीब डेढ़ सौ किलो प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करती है. इससे लाखों टन कचरा सालाना निकलता है.

उन्होंने आगे बताया कि एक आम सेनेटरी पैड में प्लास्टिक का प्रयोग होता है जो जल्दी से धरती में घुलकर खत्म नहीं होती है. इससे पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचता है. ऐसे में यह उत्पाद ना केवल वातावरण को सुरक्षित रखेगा बल्कि महिलाओं के लिए भी काफी किफायती साबित होगा.

रीयूजेबल सेनेटरी पैड्स बनाने के लिए कच्चा माल केरल, तमिलनाडु, दिल्ली राज्यों से लाया जाता है.

Intro:नई दिल्ली ।

अपने शोध कार्य को लेकर जाने वाले आईआईटी के छात्र अक्सर ऐसी तकनीक ईजाद करते हैं जिससे आम जनता की मुश्किलों को आसान किया जा सके. वहीं इस बार आईआईटी के छात्रों ने महिलाओं द्वारा मासिक धर्म में इस्तेमाल किए जाने वाले सैनिटरी पैड्स को एक नए रूप में इज़ाद किया है. आईआईटी के छात्रों ने बनाना फाइबर का इस्तेमाल कर ऐसा सेनेटरी पैड बनाया है जिससे साफ कर दो साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है. उनका मानना है कि इस तरह के प्रोडक्ट इस्तेमाल करने से वातावरण को होने वाले नुकसान में कमी आएगी साथ ही प्लास्टिक के उत्पाद पर भी रोक लग सकेगी और यह महिलाओं के लिए काफी किफायती भी सिद्ध होगा.


Body:वातावरण संरक्षण को लेकर अक्सर ऑर्गेनिक उत्पादों की तरफ लोगों का रुख बढ़ रहा है. इसी वातावरण संरक्षण को संज्ञान में रखते हुए आईआईटी के छात्रों ने सैनिटरी पैड्स बनाए हैं. बता दें कि प्रत्येक महिला को हर माह मासिक धर्म की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है जिस दौरान रक्त स्राव को रोकने के लिए वे सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं. लेकिन हर इस्तेमाल के साथ ही इन पैड्स को फेंक दिया जाता हैं जिससे प्लास्टिक का उपयोग बढ़ कर वातावरण को क्षति पहुंचाता है. ऐसे में आईआईटी के छात्रों ने रीयूजएबल पैड बनाया है जिसमें प्लास्टिक की जगह बनाना फाइबर जैसे ऑर्गेनिक तत्वों का इस्तेमाल किया गया है. साथ ही इसे 2 साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है.

वहीं इस पैड को बनाने वाले छात्र अर्चित अग्रवाल का कहना है कि इस सेनेटरी पैड को इस तरह की तकनीक से बनाया गया है कि बाजार में बिकने वाले आम पैड के मुकाबले इसमें प्लास्टिक का बिल्कुल इस्तेमाल नहीं किया गया है. साथ ही साधारण पैड के मुकाबले यह काफी पतला है और इसमें सोखने की क्षमता बहुत अधिक है. इसके अलावा यह पैड स्किन फ्रेंडली भी है जिसके चलते त्वचा को बिना किसी तरह का नुकसान पहुंचाए इन्हें इस्तेमाल किया जा सकेगा.

वहीं छात्र हैरी सेहरावत ने बताया कि इस सेनेटरी पैड को 72 से अधिक बार धोकर सुखा कर दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि यह पैड 'क्वाड्रेंट ट्रू लॉक' तकनीक से बनाए गए हैं जिसकी वजह से इसकी तरल सोखने की क्षमता काफी अधिक है. महिलाएं इसे आसानी से साफ कर इस्तेमाल कर सकती हैं. उन्होंने कहा कि इसे बनाने में इस तरह की तकनीक का प्रयोग हुआ है जिससे यह बहुत ही जल्दी सूख जाते हैं . हैरी ने कहा कि गांव देहात की महिलाएं भी इसका सरलता से उपयोग कर सकें इसलिए इसकी संरचना इस हिसाब से रखी गई है जिससे यह पैड ज्यादा उनके द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे कपड़े के पैड से मिलता जुलता है.

बीटेक चौथे वर्ष के छात्र हैरी सेहरावत और अर्चित अग्रवाल ने बताया कि दिल्ली के अलग अलग विभाग के प्रोफेसर्स के साथ विचार-विमर्श कर 8 से 10 छात्रों की टीम ने मिलकर इसे बनाया है. उन्होंने कहा कि इस पर दिसंबर 2018 से ही उन्होंने काम करना शुरू कर दिया था जिसके बाद अब यह पूरी तरह से जांच के बाद मार्केट में उपलब्ध हो चुका है जिसे वेबसाइट के द्वारा खरीदा जा सकता है. वहीं दो पैड का सेट 199 रुपए में उपभोक्ताओं को दिया जाएगा जिसमें दो पैड होंगे, 1 दिन के लिए और दूसरा रात के लिए. उन्होंने बताया कि दोनों पैड के तरल सोखने की क्षमता अलग अलग होगी. रक्त स्राव ज्यादा होने पर पहले पैड का इस्तेमाल किया जा सकेगा. वहीं कम होने पर दूसरे पैड का. उनका कहना है कि इस तरह यदि दो पैड में ही महिलाएं 2 साल तक माहवारी निकाल देती है तो बार-बार पैड खरीदने और उन्हें फेंकने से वातावरण को जो नुकसान होता है उसे बचाया जा सकेगा. उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह से बनाना फाइबर से बना है इससे त्वचा को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचता. साथ ही यह इको फ्रेंडली भी है. वहीं आंकड़ों की मानें तो देश में प्रत्येक महिला अपने जीवन काल में सैनिटरी पैड का प्रयोग कर लगभग डेढ़ सौ किलो प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करती है जिससे लाखो टन कचरा सालाना निकलता है. छात्रों ने बताया कि एक सेनेटरी नैपकिन 4 प्लास्टिक के बराबर होता है जो जल्दी से धरती में घुलकर खत्म नहीं होता बल्कि वातावरण को नुकसान पहुंचाता है. ऐसे में यह उत्पाद ना केवल वातावरण को सुरक्षित रखेगा बल्कि महिलाओं के लिए भी काफी किफायती साबित होगा.


Conclusion:बता दें कि रीयूजएबल सेनेटरी पैड्स बनाने के लिए रॉ मटेरियल केरला, तमिलनाडु, दिल्ली आदि प्रदेशों से लाया जाता है.
Last Updated : Aug 21, 2019, 1:38 PM IST
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