नई दिल्ली: आईआईटी संस्थान अपने शोध कार्यों के लिए जाने जाते हैं और उनकी पहचान वहां के होनहार छात्रों से ही होती है. आईआईटी के छात्रों ने इस बार ऐसी तकनीक ईजाद की जो इस समय चर्चा का विषय बनी हुई है. आईआईटी के छात्रों ने महिलाओं के मासिक धर्म में इस्तेमाल किए जाने वाले सैनिटरी पैड्स को एक नए रूप में ईजाद किया है. छात्रों ने इसके लिए 'बनाना फाइबर' यानी केलों के रेशे का इस्तेमाल करके ऐसा अनोखा सेनेटरी पैड बनाया है.
हर एक महिला को हर महीने मासिक धर्म की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. इस दौरान महिलाओं को रक्त स्राव होता है और साथ ही काफी दर्द भी होता है.
ऐसी स्थिति में रक्त स्राव रोका नहीं जा सकता है, लेकिन ऐसी स्थिति में भी महिलाएं अपने घर-ऑफिस में काम कर पाएं. वो भी बिना किसी दिक्कत के, इसके लिए वे सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं.
'प्लास्टिक का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं'
हर इस्तेमाल के साथ ही इन पैड्स को फेंक दिया जाता है जिससे प्लास्टिक का उपयोग बढ़ता है और वातावरण को नुकसान पहुंचता है. ऐसे में आईआईटी के छात्रों ने रीयूजेबल पैड बनाया है.
इस पैड को बनाने वाले छात्र अर्चित अग्रवाल का कहना है कि इस सैनेटरी पैड को अलग तरह की तकनीक से बनाया गया है. बाजार में बिकने वाले आम सैनिटरी पैड के मुकाबले इसमें प्लास्टिक का इस्तेमाल बिल्कुल भी नहीं किया गया है.
साथ ही आम पैड्स के मुकाबले यह काफी पतला है और इसमें सोखने की क्षमता बहुत अधिक है. इसके अलावा यह पैड स्किन फ्रेंडली भी है, जिसके इस्तेमाल से त्वचा को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचता है.
'क्वाड्रेंट ट्रू लॉक तकनीक से बनाए गए ये पैड्स'
एक और छात्र हैरी सेहरावत ने बताया कि इस सेनेटरी पैड को 72 से भी ज्यादा बार धोकर सुखा कर दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि यह पैड 'क्वाड्रेंट ट्रू लॉक' तकनीक से बनाए गए हैं.
जिसकी वजह से इसकी तरल सोखने की क्षमता काफी ज्यादा है. महिलाएं इसे आसानी से साफ कर इस्तेमाल कर सकती हैं. उन्होंने कहा कि इसे बनाने में इस तरह की तकनीक का प्रयोग हुआ है जिससे कि ये बहुत ही जल्दी सूख जाते हैं.
'कपड़े जैसा है पैड का डिजाइन'
हैरी ने कहा कि गांव देहात की महिलाएं भी इसका आसानी से उपयोग कर सकें. इसलिए इसका आकार ऐसा रखा गया है जिससे उनको यह पैड से ज्यादा उनके इस्तेमाल किए जाने वाले कपड़े के पैड जैसा लगे.
पैड के लिए काफी रिसर्च वर्क किया
बीटेक फाइनल इयर के स्टूडेंट्स हैरी सेहरावत और अर्चित अग्रवाल ने बताया कि दिल्ली के अलग-अलग विभाग के प्रोफेसर्स के साथ विचार-विमर्श कर 8-10 छात्रों की टीम ने मिलकर इसे बनाया है.
उन्होंने कहा कि दिसंबर 2018 से ही उन्होंने इस पर काम करना शुरू कर दिया था और अब यह पूरी तरह से जांच के बाद मार्केट में उपलब्ध हो चुका है. इसे वेबसाइट के जरिए भी खरीदा जा सकता है.
एक सेट में दो तरह के पैड
पैड का एक सेट 199 रुपए में कस्टमर्स को दिया जाएगा जिसमें दो पैड होंगे, 1 दिन के लिए और दूसरा रात के लिए. उन्होंने बताया कि दोनों पैड के तरल सोखने की क्षमता अलग अलग होगी.
रक्त स्राव ज्यादा होने पर पहले पैड का इस्तेमाल किया जा सकेगा. वहीं कम स्राव होने पर दूसरे पैड को प्रयोग में लाया जा सकेगा.
ऑर्गेनिक तत्वों से बना इको फ्रेंडली पैड
उनका कहना है कि इस तरह अगर महिलाएं दो पैड में ही 2 साल तक माहवारी निकाल देती हैं तो पैड बार-बार खरीदने और फेंकने से वातावरण को होने वाले नुकसान से बचाया जा सकेगा.
उन्होंने बताया कि यह पूरी तरह से 'बनाना फाइबर' से बना है. इससे त्वचा को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता. साथ ही यह इको फ्रेंडली भी है.
सालाना निकलता है लाखों टन कचरा
वहीं, अगर आंकड़ों की मानें तो देश में हर एक महिला अपने जीवन काल में सैनिटरी पैड का प्रयोग करके करीब डेढ़ सौ किलो प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करती है. इससे लाखों टन कचरा सालाना निकलता है.
उन्होंने आगे बताया कि एक आम सेनेटरी पैड में प्लास्टिक का प्रयोग होता है जो जल्दी से धरती में घुलकर खत्म नहीं होती है. इससे पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचता है. ऐसे में यह उत्पाद ना केवल वातावरण को सुरक्षित रखेगा बल्कि महिलाओं के लिए भी काफी किफायती साबित होगा.
रीयूजेबल सेनेटरी पैड्स बनाने के लिए कच्चा माल केरल, तमिलनाडु, दिल्ली राज्यों से लाया जाता है.