नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने सभी बाल विवाहों को अमान्य घोषित करने वाली याचिका पर केंद्र सरकार का रुख मांगा है.कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला की खंडपीठ ने कानून और न्याय मंत्रालय और राष्ट्रीय महिला आयोग को नोटिस जारी कर उनसे इस मुद्दे पर जवाब मांगा है. अब इस मामले की सुनवाई 13 सितंबर को होगी.
आयशा कुमारी नाम की एक महिला द्वारा पहले से लंबित याचिका में एक आवेदन पेश किए जाने के बाद नोटिस जारी किया गया था.आयशा ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि जब वह 16 साल की थी तो एक समारोह में एक लड़के से धोखे से उसकी शादी कर दी गई थी, जिसे वह घर पर एक सामान्य समारोह मानती थी.
यह तर्क दिया गया कि उनकी शादी कभी समाप्त नहीं हुई थी. बाद में उन्होंने 2016-2018 के बीच जीजीएसआईपीयू से बैचलर ऑफ एजुकेशन में स्नातक किया. इसके बाद वह केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (सीटीईटी) और फिर जामिया मिल्लिया इस्लामिया में मास्टर्स कोर्स के लिए बैठी.
प्रतिवादी ने 2020 में अपने घर पर उसे अपने साथ गुजरात ले जाने का दावा किया, यह दावा करते हुए कि वह उसकी पत्नी है, उसकी याचिका में आरोप लगाया गया. इसके बाद वह घर से भाग गई और दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की. याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि उसे अब अपने परिवार और ससुराल वालों से धमकियां मिल रही हैं. हालांकि कोर्ट ने पहले राज्य को नोटिस जारी किया था, लेकिन बाद में यह बताया गया कि बाल विवाह को शुरू से ही शून्य बनाने के लिए केंद्र सरकार को एक पार्टी बनाना आवश्यक है.
कोर्ट ने सोमवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र को नोटिस जारी करने के अलावा दिल्ली पुलिस को याचिकाकर्ता को सुरक्षा मुहैया कराने का भी निर्देश दिया. इस बीच, दिल्ली महिला आयोग (DCW) ने कहा कि वह उसे आश्रय प्रदान करेगी.
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याचिका में यह भी घोषणा करने की मांग की गई है कि बाल विवाह निषेध अधिनियम की धारा 3 (1) जो यह प्रदान करती है कि बाल विवाह को शून्य करने योग्य है, को असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन किया जाना चाहिए.