नई दिल्ली: हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी पर रोक लगा दी है. अब, सभी की निगाहें अमेरिकी फेडरल रिजर्व पर हैं. चूंकि फेड द्वारा रेट में बढ़ोतरी का असर भारतीय अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार पर पड़ता है, इसलिए हर कोई अमेरिकी सेंट्रल बैंक के अगले कदम का बेसब्री से इंतजार कर रहा है. 12 से 13 दिसंबर 2023 को को अमेरिकी फेडरल रिजर्व (फेड) की बैठक पर दुनिया भर के निवेशकों और अर्थशास्त्रियों ने नजर बनाई रखी है. ब्याज दरों और अन्य मौद्रिक नीति उपकरणों पर फेड के फैसले भारतीय अर्थव्यवस्था सहित वैश्विक वित्तीय बाजारों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं.
भारतीय अर्थव्यवस्था पर कैसे प्रभाव डालते हैं यूएस फेड के फैसले
इसको समझने के लिए सबसे पहले यूएस फेड और भारतीय अर्थव्यवस्था के बीच संबंधों को जानना होगा. हमें यह जानना होगा कि यूएस फेड की समीक्षा बैठक में होने वाले फैसले भारत को कैसे प्रभावित करते हैं. भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया के बाजारों की गहराई से जुड़ी हुई. खासतौर से अमेरिका से. अमेरिकी केंद्रीय बैंक जिसे हम फेडरल रिजर्व के नाम से भी जानते हैं और आम बोलचाल में यूएस फेड कहते हैं. यह ठीक उसी तरह काम करता है जैसे हमारे देश में भारतीय रिजर्व बैंक. अमेरिकी फैड की जिम्मेदारी है कि वह अमेरिका में महंगाई और कैश फ्लो को नियंत्रित रखे. जिसके लिए वह तमाम तरह के फैसले लेता है. जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था में ऋण प्रवाह पर भी असर पड़ता है.
अमेरिकी अर्थव्यवस्था में ऋण प्रवाह पर असर पड़ने का सीधा असर वहां के उद्योगों और भविष्य की संभावनाओं पर भी पड़ता है. जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था और बाजार सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं. अमेरिकी केंद्रीय बैंक के ब्याज दरों में बदलाव सेंटिमेंट और कैश फ्लो के स्तर पर भारत के आर्थिक परिवेश पर काफी असर डालते हैं. यह निवेशकों को भी सीधे तौर पर प्रभावित करता है क्योंकि फेड रिजर्व के फैसले में इस बात की झलक होती है कि आने वाले समय में ग्रोथ की गति क्या रहेगी. साल 2022 में 73.0 बिलियन डॉलर का निर्यात और 118.8 बिलियन डॉलर का कुल आयात हुआ था.
फेड बैठक के प्रमुख निर्णय और भारत पर प्रभाव
चल रही उच्च ब्याज दर न केवल भारत बल्कि दुनिया भर के बाजारों को भी प्रभावित करती है. विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों से अपना पैसा निकाल सकते हैं क्योंकि उन्हें यूएस 10-वर्षीय ट्रेजरी बांड जैसे विकल्प कम जोखिम के साथ अधिक लाभदायक लगते हैं. ब्याज दरों में वृद्धि से अमेरिकी बॉन्ड पर अधिक रिटर्न मिलता है. 2-वर्षीय ट्रेजरी 2006 के बाद से अपने शीर्ष स्तर पर पहुंच गई.
दरों में बढ़ोतरी पर रोक को लेकर डाउट का असर
व्यापारी इस बात पर भारी दांव लगा रहे हैं कि फेड अगले कई महीनों तक अपनी रातोंरात बेंचमार्क ब्याज दर को 5.25 -5.50 फीसदी रेंज में स्थिर रखेगा. लेकिन उन्हें यह भी उम्मीद है कि मई में दरों में कटौती शुरू हो जाएगी, 2024 के अंत तक पॉलिसी को 4.00 -4.25 फीसदी रेंज में ले जाने के साथ और कटौती होगी.
दर वृद्धि, भारतीय बाजार और अर्थव्यवस्था
फेड द्वारा दरों में बढ़ोतरी की अटकलों के कारण ही तेल और सोने की कीमत में गिरावट आई है. ये कहा जाता है कि यूएस छींकता है, तो हर किसी को सर्दी लग जाती है. इसलिए, दरों में बढ़ोतरी का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा. यदि फेड दरें बढ़ाता है, तो अमेरिका और भारत में ब्याज दरों के बीच का अंतर कम हो जाता है, जो मुद्रा व्यापार को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है. अमेरिका में डॉलर और अमेरिकी ट्रेजरी उपज आकर्षक हो गई है और भारतीय बाजार में पूंजी का आउटफ्लो दिखना शुरू हो जाएगा. विदेशी निवेशक भारत में निवेश करते हैं क्योंकि हमारी ब्याज दरें अमेरिका की तुलना में अधिक हैं. हालांकि, जब अमेरिका दरें बढ़ाता है, तो विदेशी निवेशक अपना पैसा अमेरिका में स्थानांतरित कर देंगे क्योंकि उन्हें अधिक रिटर्न मिलेगा.
जब विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से पैसा निकालते हैं, तो इससे रुपये का अवमूल्यन हो सकता है और आरबीआई को भारत में दरें बढ़ाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है. यदि रुपये में भारी गिरावट आती है, तो आरबीआई को घरेलू मुद्रा को बढ़ावा देने के लिए कुछ डॉलर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है. इससे विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आएगी.
दर वृद्धि और विभिन्न उद्योग
जिस उद्योग को ब्याज दरों में वृद्धि से लाभ होता है वह बैंकिंग उद्योग है. जब ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो बैंक अपनी जमा दरों की तुलना में अपने ऋण पोर्टफोलियो का पुनर्मूल्यांकन बहुत तेजी से करेंगे, जिससे उन्हें अपना शुद्ध ब्याज मार्जिन बढ़ाने में मदद मिलेगी. दूसरी ओर, उच्च ब्याज दरें रियल एस्टेट क्षेत्र के लिए नकारात्मक हैं क्योंकि संभावित खरीदार की ईएमआई बढ़ जाती है, जिससे मांग कम हो जाएगी.
रुपये में गिरवाट से इनको होगा फायदा
रुपये में गिरावट के कारण दरें बढ़ने से आईटी और फार्मा सेक्टर को भी फायदा होता है, फिर भी, यदि दरें बहुत अधिक बढ़ जाती हैं, तो इससे मंदी आ जाती है, जिससे वहां के बिजनेस पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इसलिए, टैकनोलजी खर्च के लिए अमेरिकी कंपनियों की भूख सीमित हो सकती है, जो भारत में आईटी सेवा कंपनियों की कमाई पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है.