नई दिल्ली : भारतीय भाषाओं के विकास को बजटीय प्रोत्साहन मिला है. युवाओं के बीच स्वदेशी भाषाओं और भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय बजट में यह खास प्रावधान किया गया है. भारत की क्षेत्रीय भाषाओं को पढ़ाने, बढ़ाने और युवाओं को इस ओर प्रोत्साहित करने के लिए 300.7 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है.
इस बार यह बीते वर्ष 2022-23 के मुकाबले 20 प्रतिशत अधिक है. वहीं अगर भारतीय ज्ञान प्रणाली यानी इंडियन नॉलेज सिस्टम की बात की जाए तो इसके फंड में 100 प्रतिशत की वृद्धि कर दी गई है. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक, केंद्र सरकार ने शैक्षिक संस्थानों में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं. इसके तहत शैक्षिक संस्थानों में क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी और व्यावसायिक पाठ्यक्रम शुरू करना शामिल है.
बजट दस्तावेज के अनुसार भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए अनुदान, वर्ष 2022-23 के 250 करोड़ के मुकाबले वर्ष 2023-24 में 300.7 करोड़ हो गया है. यदि 2021-22 से तुलना की जाए तो तब के 176.5 करोड़ के मुकाबले इस बार 70 प्रतिशत वृद्धि की गई है.
क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने में शामिल संस्था
जिन संस्थानों के माध्यम से क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है, उनमें केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान, उर्दू भाषा के प्रचार के लिए राष्ट्रीय परिषद और सिंधी भाषा के प्रचार के लिए राष्ट्रीय परिषद शामिल हैं। इसके अलावा केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान मैसूर, एक ऐसा संस्थान है जो तेलुगु, ओडिया, मलयालम और कन्नड़ सहित सभी भारतीय भाषाओं के प्रचार के लिए काम करता है.
इंडियन नॉलेज सिस्टम को 20 करोड़ का आवंटन
वहीं अगर भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) की बात करें तो योजना के लिए 2022-23 के 10 करोड़ रुपए के मुकाबले इस बार का बजट 20 करोड़ रुपए कर दिया गया है. भारतीय ज्ञान प्रणाली योजना के तहत, भारत के प्राचीन ज्ञान के तत्व और आधुनिक भारत में इसके योगदान को स्कूली पाठ्यक्रम और विश्वविद्यालय स्तर पर शामिल किया जा रहा है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने भारतीय ज्ञान प्रणाली के विषय में कहा है कि प्राचीन भारत में इतिहास, वाद-विवाद की कला, कानून, चिकित्सा आदि जैसे विभिन्न विषयों में शिक्षा ग्रहण करते समय न केवल अनुशासन के बाहरी आयामों पर बल्कि व्यक्तित्व के आंतरिक आयामों को समृद्ध करने पर भी जोर दिया जाता था.
वर्ष 2020 में, सरकार ने स्वदेशी ज्ञान के पहलुओं पर अंत: विषय अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए एआईसीटीई में आईकेएस डिवीजन की स्थापना की थी. एआईसीटीई का कहना है कि विद्यालयों के स्तर पर भारतीय खेलों को भी सम्मिलित किया जा रहा है. इसका उद्देश्य शारीरिक शिक्षा को बढ़ावा देते हुए विद्यालय स्तर पर अधिक समावेशी खेल स्थापित करना है. साथ ही इसका उद्देश्य बच्चों को भारत के विभिन्न कला रूपों को शिक्षित करने की परिकल्पना करना और देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की खोज करना है.
75 भारतीय खेलों को प्रोत्साहन
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के 2 वर्ष पूरे होने पर केंद्र सरकार ने 75 भारतीय खेलों को प्रोत्साहन देने का निर्णय लिया है. इन भारतीय क्रीड़ाओं में आट्या- पाट्या, खो-खो, लंगड़ी (हॉप्सकॉच), भाला फेंक, पतंग उदयन (पतंग-उड़ान), सीता उद्धर (कैदी का आधार), मदार्नी खेल (मार्शल का एक रूप) सम्मिलित हैं. विश अमृत संथाल कट्टी, गिल्ली डंडा को भी सम्मिलित किया गया है. वहीं शिक्षा मंत्रालय आयुर्वेद व धातुकर्म, परंपराओं पर भी फोकस कर रहा है. मंत्रालय के मुताबिक भारतीय कला परम्परा में ज्ञान और समर्पण की ओर प्रेरित करने की अनूठी क्षमता है, जो चेतना उपयोग करते हुए और स्वाभाविक रूप से उपलब्ध मानवीय भावों को जगाने में सक्षम है.
(आईएएनएस)