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Banking Crisis : बैंकिंग संकट से अमेरिका में मंदी का डर, दुनियाभर में पड़ा इसका प्रभाव - बैंकिंग प्रणाली

अमेरिका में एक सप्ताह के अंदर ही दो बड़े बैंक फेल हो गए है. जिसका असर स्विटजरलैंड के क्रेडिट स्विस बैंक से लेकर जर्मनी के Deutsche Bank समेत दुनिया के अन्य बैंकों पर पड़ा. इस तरह अमेरिका और यूरोप जैसे दो बड़ी अर्थव्यवस्था में बैंकिंग प्रणाली की कमी उजागर हुई और आर्थिक मंदी का डर सताने लगा.

Banking Crisis
बैंकिंग संकट से अमेरिका में मंदी का डर
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Published : Apr 1, 2023, 2:07 PM IST

नई दिल्ली : मार्च महीने में एक सप्ताह के अंदर ही अमेरिका के दो बड़े बैंक सिलिकॉन वैली बैंक और सिग्नेचर बैंक डूब गए. इसके बाद स्विटजरलैंड का क्रेडिट स्विस बैंक भी डूबने की कगार पर पहुंच गया, जिसे बचाने के लिए UBS ने उसे खरीद लिया. इस तरह दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं अमेरिका और यूरोप में बैंकिंग प्रणाली की कमजोरी सामने आई. जिसने बैंक क्षेत्र में निवेश करने वाले निवेशकों के भावनाओं को आहत किया. फेडरल रिजर्व द्वारा पिछले सप्ताह जारी आकड़ों के अनुसार 10 मार्च को सिलिकॉन वैली बैंक (एसवीबी) के डूबने के बाद अमेरिकी इंवेस्टर्स ने छोटे क्षेत्रीय बैंकों से लगभग 120 बिलियन डॉलर वापस ले लिए.

बैंकिंग क्षेत्र के संकट ने दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में मंदी की आशंकाओं को जन्म दिया है. ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के विश्लेषकों ने इस बारे में कहा, 'चिंताएं बढ़ रही हैं कि वित्तीय स्थिति को मजबूत करने से अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी में चली जाएगी और अन्य जी 7 अर्थव्यवस्थाओं को भी प्रभावित करेगी.' गौरतलब है कि फेडरल रिजर्व ने अमेरिका में पिछले 4 दशक के उच्च महंगाई को कम करने के लिए रेपो रेट को बढ़ा दिया. जो अब तक जारी है. इससे देश में मुद्रा की आपूर्ति में कमी आई यानी कि लोगों के पास कैश लिक्वडिटी कम हुई.

पढ़ें : Silicon Valley Bank Crisis : दिवालिया हुए सिलिकॉन वैली बैंक को, फर्स्ट सिटीजन बैंक ने खरीदा

फेडरल रिजर्व द्वारा मौद्रिक नीति को कड़ा करने का असर ये हुआ कि लोन महंगे हो गए, जिससे होम लोन और बिजनेस लोन समेत अन्य लोन की मांग में गिरावट आई. लोगों की क्रय शक्ति घटी और सामानों की डिमांड में कमी देखी गई. जो अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए एक टर्निंग प्वॉइंट साबित हुआ. विदित हो कि साल 2008-09 में एक बड़े बैंक के डूबने के कारण ही अमेरिका में आर्थिक मंदी आई थी, जिसने पूरी दुनिया को अपने गिरफ्त में ले लिया था.

अमेरिकी बैंकिंग संकट से दुनियाभर में फैली चिंताएं- बैंकिंग संकट से बाजार में उत्पन्न हलचल के कम होने के संकेत दिख रहे हैं. ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिकी श्रम बाजार की मौजूदा ताकत, जो पूरे फाइनेंशियल कंडिशन और कंज्यूमर्स के भरोसे के लिए महत्वपूर्ण है, स्थिति को संभालने में मदद करेगी क्योंकि वेतन वृद्धि और रोजगार ठोस हैं और आमतौर पर ऐसा ही रहने की उम्मीद है. यहां तक कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक महंगाई को कम करने के लिए श्रम बाजार में एक और नियंत्रित गिरावट को हासिल करना चाहते हैं.

पढ़ें : Deutsche Bank Crisis : बैंकिंग संकट से जर्मनी भी नहीं रहा अछूता! डॉयचे बैंक के शेयर इतने टूटे

क्रेडिट सुइस के पतन और जर्मनी के डॉयचे बैंक जैसे अन्य बैंकों में तनाव ने अन्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं जैसे यूरोपीय देशों, कनाडा और जापान में चिंताओं को जन्म दिया है. जानकारों का मानना है कि यह अमेरिका में बैंकिंग क्षेत्र के संकट के जोखिम को उजागर करता है, भले ही यह छोटे अमेरिकी बैंकों पर केंद्रित हो, वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बड़े प्रभाव हो सकते हैं. इस बैंक संकट ने उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में बाजार को काफी नुकसान पहुंचाया. जिसका असर विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और जी7 देशों में व्यापक प्रभाव के साथ दुनिया भर में महसूस किया गया है. इसलिए दुनिया भर के अर्थशास्त्री और बैंकर बाजार की हलचल पर बारीकी से नजर रखें हुए है.

पढ़ें : US Bank Crisis: सात दिन में म्युचुअल फंडों में 6 फीसदी तक गिरावट, जानें भारतीय बैंकिंग क्षेत्र का हाल

नई दिल्ली : मार्च महीने में एक सप्ताह के अंदर ही अमेरिका के दो बड़े बैंक सिलिकॉन वैली बैंक और सिग्नेचर बैंक डूब गए. इसके बाद स्विटजरलैंड का क्रेडिट स्विस बैंक भी डूबने की कगार पर पहुंच गया, जिसे बचाने के लिए UBS ने उसे खरीद लिया. इस तरह दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं अमेरिका और यूरोप में बैंकिंग प्रणाली की कमजोरी सामने आई. जिसने बैंक क्षेत्र में निवेश करने वाले निवेशकों के भावनाओं को आहत किया. फेडरल रिजर्व द्वारा पिछले सप्ताह जारी आकड़ों के अनुसार 10 मार्च को सिलिकॉन वैली बैंक (एसवीबी) के डूबने के बाद अमेरिकी इंवेस्टर्स ने छोटे क्षेत्रीय बैंकों से लगभग 120 बिलियन डॉलर वापस ले लिए.

बैंकिंग क्षेत्र के संकट ने दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में मंदी की आशंकाओं को जन्म दिया है. ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के विश्लेषकों ने इस बारे में कहा, 'चिंताएं बढ़ रही हैं कि वित्तीय स्थिति को मजबूत करने से अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी में चली जाएगी और अन्य जी 7 अर्थव्यवस्थाओं को भी प्रभावित करेगी.' गौरतलब है कि फेडरल रिजर्व ने अमेरिका में पिछले 4 दशक के उच्च महंगाई को कम करने के लिए रेपो रेट को बढ़ा दिया. जो अब तक जारी है. इससे देश में मुद्रा की आपूर्ति में कमी आई यानी कि लोगों के पास कैश लिक्वडिटी कम हुई.

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फेडरल रिजर्व द्वारा मौद्रिक नीति को कड़ा करने का असर ये हुआ कि लोन महंगे हो गए, जिससे होम लोन और बिजनेस लोन समेत अन्य लोन की मांग में गिरावट आई. लोगों की क्रय शक्ति घटी और सामानों की डिमांड में कमी देखी गई. जो अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए एक टर्निंग प्वॉइंट साबित हुआ. विदित हो कि साल 2008-09 में एक बड़े बैंक के डूबने के कारण ही अमेरिका में आर्थिक मंदी आई थी, जिसने पूरी दुनिया को अपने गिरफ्त में ले लिया था.

अमेरिकी बैंकिंग संकट से दुनियाभर में फैली चिंताएं- बैंकिंग संकट से बाजार में उत्पन्न हलचल के कम होने के संकेत दिख रहे हैं. ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिकी श्रम बाजार की मौजूदा ताकत, जो पूरे फाइनेंशियल कंडिशन और कंज्यूमर्स के भरोसे के लिए महत्वपूर्ण है, स्थिति को संभालने में मदद करेगी क्योंकि वेतन वृद्धि और रोजगार ठोस हैं और आमतौर पर ऐसा ही रहने की उम्मीद है. यहां तक कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक महंगाई को कम करने के लिए श्रम बाजार में एक और नियंत्रित गिरावट को हासिल करना चाहते हैं.

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क्रेडिट सुइस के पतन और जर्मनी के डॉयचे बैंक जैसे अन्य बैंकों में तनाव ने अन्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं जैसे यूरोपीय देशों, कनाडा और जापान में चिंताओं को जन्म दिया है. जानकारों का मानना है कि यह अमेरिका में बैंकिंग क्षेत्र के संकट के जोखिम को उजागर करता है, भले ही यह छोटे अमेरिकी बैंकों पर केंद्रित हो, वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बड़े प्रभाव हो सकते हैं. इस बैंक संकट ने उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में बाजार को काफी नुकसान पहुंचाया. जिसका असर विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और जी7 देशों में व्यापक प्रभाव के साथ दुनिया भर में महसूस किया गया है. इसलिए दुनिया भर के अर्थशास्त्री और बैंकर बाजार की हलचल पर बारीकी से नजर रखें हुए है.

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